विश्वास की शक्ति से लक्ष्य प्राप्ति संभव

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- प्रस्तुति : डॉ. किरण रमण

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किसी गाँव में एक पंडितजी रहा करते थे। कथा-प्रवचन उनकी आजीविका थी। उनके गाँव के पास से ही एक नदी बहती थी, जिसके उस पार के गाँव से एक ग्वालिन नित्य पंडितजी को दूध दे जाया करती थी। नदी पर नाव की कोई नियमित व्यवस्था नहीं थी, इसलिए ग्वालिन रोज ठीक समय पर दूध नहीं ला पाती थी। एक दिन पंडितजी ने ग्वालिन को देर से दूध लाने के कारण डाँट दिया।

ग्वालिन दुःखी होकर बोली, 'मैं क्या करूँ? मैं तो मुँह-अँधेरे ही घर से निकल पड़ती हूँ, पर नदी पर आकर माँझी के लिए रुकना पड़ता है। माँझी सवारी भरनेके लिए रुका रहता है। पंडितजी से उसकी अक्सर बकझक होती रहती है। एक दिन दूध देकर जाते समय पंडितजी के प्रवचन के शब्द उसके कानों में पड़े, 'भगवान के नाम में इतनी शक्ति है कि व्यक्ति उनका नाम लेकर सहज ही भवसागर से पार हो सकता है।' ग्वालिन को अपनी समस्या का समाधान मिल गया।

दूसरे दिन से पंडितजी को सुबह ठीक समय पर दूध मिलने लगा। एक दिन पंडितजी ने आश्चर्यपूर्वक ग्वालिन से पूछा- 'क्या बात है? अब तो ठीक समय पर दूध दे जाती हो। क्या कोई नाव खरीद ली है?' वह बोली- 'खरीदने की क्या बात महाराज? मैं गरीब औरत, भला कहाँ से नाव खरीदूँ? आपने जो उपाय बताया था, बस उसी से काम हो गया।'
केवल किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेने से ही काम नहीं बनता। जब तक उस ग्वालिन के समान सरल हृदय से भगवन्नाम में विश्वास नहीं होता, तब तक वे नहीं मिलते। ग्वालिन के पास केवल विश्वास की शक्ति थी, और विश्वास की शक्ति असंभव को भी संभव बना देती है।


' मैंने?' पंडितजी ने विस्मय में आकर पूछा- 'मैंने तुम्हें कौनसा उपाय बताया?' ग्वालिन ने हँसकर कहा- 'उस दिन प्रवचन में आपने कहा था न, कि भगवान का नाम लेकर लोग भवसागर पार हो जाते हैं। बस, उसी से मेरा काम हो गया।'

' क्या मतलब?' पंडितजी अचरज में आकर चीख उठे- 'हँसी न करो! क्या तुम सचमुच ही भगवान का नाम लेकर नदी को पार कर लेती हो? बिना किसी नौका के सहारे?' वे ग्वालिन की बात पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे। अंत में बोले- 'क्या तुम मुझे दिखा सकती हो कि कैसेनदी को पार करती हो?' ग्वालिन पंडित महाशय को साथ ले गई और नदी के जल पर चलना शुरू कर दिया।

कुछ दूर जाकर उसने पीछे लौटकर देखा- पंडितजी घुटने भर पानी में धोती उठाए आश्चर्य से बुत बने खड़े हैं। उनकी ऐसी बुरी दशा देखकर ग्वालिन बोली- 'यह कैसी बात है, महाराज! मुँह से तो आप भगवान का नाम ले रहे हैं, पर साथ ही धोती को गीली होने से बचाने के लिए उसे ऊपर उठा रहे हैं! ऐसे में कैसे नदी पार करेंगे?

इस प्रसंग का तात्पर्य यही है कि केवल किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेने से ही काम नहीं बनता। जब तक उस ग्वालिन के समान सरल हृदय से भगवन्नाम में विश्वास नहीं होता, तब तक वे नहीं मिलते। ग्वालिन के पास केवल विश्वास की शक्ति थी, और विश्वास की शक्ति असंभव को भी संभव बना देती है।
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