श्रीराम सबके आदर्श...!

विश्व जनमानस में आज भी है श्रीराम

Webdunia
- आचार्य गोविन्द वल्लभ जोश ी
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त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतरण अयोध्या में हुआ। लाखों वर्षों बाद श्रीराम आज भी भारतीय जनमानस ही नहीं, विश्व जनमानस में रमे हुए हैं। इसका सबसे प्रबल पक्ष यह है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी मानवीय मर्यादाओं का परित्याग नहीं किया। जीवन में चाहे कितनी ही विषम परिस्थितियां आई हों उनका धैर्य कभी भी डिगा नहीं। राम के राज्याभिषेक की सारी तैयारियां हो चुकी थीं लेकिन दिन निकलते ही सब पलट गया।

श्रीराम जब अपने पिता दशरथ महाराज को प्रातः प्रणाम करने पहुंचते हैं तो उन्हें वहां मूर्छित अवस्था में देखते हैं। पास में ही श्रृंगारहीन मलिन-मुख माता कैकयी को प्रणाम करके पिता की इस अवस्था का कारण पूछते हैं। माता से पता चलता है कि उन्होंने पूर्व निर्धारित दो वरदानों में से पहले में भरत को अयोध्या का राज्य और दूसरे में राम को चौदह वर्ष का वनवास।

माता कैकयी के शब्दों को सुनकर श्रीराम तनिक भी विचलित नहीं हुए अपितु प्रसन्न भाव से माता-पिता को प्रणाम कर उनकी आज्ञा का पालन करते हुए दंडक वन की ओर प्रस्थान कर देते हैं।

वर्तमान में सामान्य सत्ता के लोभ में कितने प्रपंच और घात-प्रतिघात राष्ट्र में दिखाई देते हैं। पांच वर्ष के लिए मिलने वाली सत्ता की उधेड़बुन में राजनेता एक-दूसरे का चरित्र हनन तक करने में हिचकिचाते नहीं हैं। लेकिन श्रीराम जिनको बिना किसी जनमत के उत्तराधिकार में कौशल्याधिपति का वह सिंहासन मिल रहा था जो देवलोक के इंद्र के लिए भी संभव नहीं था।

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श्रीमद्भागवत्‌ में व्यास जी भगवान के इसी स्वरूप को नमन करते हुए लिखते हैं- ' तक्त्वा सुदुस्त्यजसुरेप्सित राज्यलक्ष्मीं, धर्मष्ठआर्यवचसायदगादरण्यं, मायामृगं दयितयेप्सितमन्वधावत्‌, वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम्‌।'

वन पथ पर श्रीराम केवल चौदह वर्ष बिताने के लिए नहीं गए थे अपितु उस समय भारत की आंतरिक सुरक्षा सीमापार के शत्रुओं की घुसपैठ से इतनी चरमराने लगी थी कि उसका उपाय करना जरूरी हो गया थाष श्रीराम ने वनवास के दौरान वहां की आदिवासी वीर जाति के सहयोग से एक ऐसी वानरी सेना का गठन किया जिसने समुद्र से घिरी हुई सभी प्रकार से सुरक्षित लंका में घुसकर रावण की समग्र शक्तियों को ध्वस्त कर दिया।

इतना ही नहीं, श्रीराम ने जीती हुई लंका विभीषण को सौंप दी, जबकि आज संसार के कुछ देश अपने शक्तिमद से दूसरे देशों में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उतावले हैं। इन परिस्थितियों में राम का चिंतन प्रसांगिक हो जाता है। जब लंका विजय के बाद वहां का वैभव लक्ष्मण को दिखाते हुए श्रीराम कहते हैं- हे! लक्ष्मण सोने से लदी हुई यह भव्य लंका मुझे बिलकुल भी रुचिकर नहीं लग रही है क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। वस्तुतः श्रीराम का समग्र जीवन आदर्शों से ओतप्रोत था।

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आज समाज में नारी उद्धार, पतितोद्धार, दलितोद्धार सहित अनेक बातें आगे आ रही हैं, जिनकी शुरुआत श्रीराम ने कर दी थी। समाज के अपमान से पत्थर की तरह जड़वत्‌ पड़ी हुई गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को भगवान श्रीराम ने अपने पति के साथ ससम्मान रहने का न्याय दिलाया।

इसी प्रकार एक नाव चलाने वाले केवट को श्रीराम ने अपने गले लगाकर छोटे-बड़े और स्वामी-सेवक के भेद को मिटाकर दलितोद्धार का सूत्रपात किया। शबर जाति की महिला शबरी जिसे समाज अछूत कहकर तिरस्कार करता था, उसकी कुटिया में जाकर उसके जूठे बेर खाने से बड़ा अछुतोद्धार का कोई उदाहरण इतिहास में मिल सकता है?

वस्तुतः श्रीराम देश-काल की सीमा से परे सार्वकालिक सार्वभौमिक और सर्वशक्तिमान आदर्श महापुरुष हैं। वह सबके हैं, सब में हैं और सबके साथ हैं।

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