संस्कारधानी में दुर्गा पूजा का गौरवमयी इतिहास

आराधना के अठारह दशक

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जबलपुर के संस्कारधानी में बंगभाषियों द्वारा मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा का प्राचीन इतिहास गौरवमयी है। 18वीं सदी से प्रारंभ दुर्गा पूजा का सफर अब तक चला आ रहा है। जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब भी जबलपुर में दुर्गा पूजन का आयोजन होता था। इस पूजन में अंग्रेज समेत हर वर्ग के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। हालाँकि उन दिनों दुर्गा पूजा उच्चवर्गीय घरों में संपन्न होती थी, लेकिन उसका स्वरूप सार्वजनिक होता था। लोगों के मनोरंजन के लिए लखनऊ से नृत्यांगनाओं को बुलाया जाता था। इस कार्यक्रम का लाभ हर वर्ग के लोग उठाते थे...

आज भी है सुरक्षित चाँदी की घट : एक बार विजयादशमी के दिन ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम जबलपुर भ्रमण के लिए आए थे। उन्होंने तुलाराम चौक पर मूर्ति विसर्जन के बाद कलश, जिसमें नर्मदा जल भरकर लाया जाता है उसकी अगवानी की। उस दौरान माँ दुर्गा के समक्ष स्थापित किया जाने वाला चाँदी का घट आज भी सुरक्षित रखा है।

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विधि-विधान से होता है पूजन : दुर्गा पूजा की शुरुआत महालय के दिन से ही हो जाती है, लेकिन पूजा-पाठ पष्ठी से शुरू होता है। देश की प्रमुख नदियों और समुद्र का पानी, प्रमुख स्थानों की मिट्टी लाकर माँ की पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की पूजा शेर पर सवार दस भुजा धारिणी महिषासुर मर्दिनी के रूप में होती है। उनके दायें ओर लक्ष्मी-गणेश एवं बायें ओर कार्तिकेय-सरस्वती रहते हैं।

नवमी को कन्या पूजन के अलावा गन्ना, भूरा कुम्हड़ा एवं केले की बलि चढ़ाई जाती है। दशमी के दिन विधि-विधान से पूजा कर प्रतिमा को विसर्जित करने नर्मदा ले जाया जाता है। 1992 से संस्कारधानी में बंगभाषियों द्वारा सामूहिक विसर्जन शोभायात्रा निकाली जाने लगी।

बंगाली क्लब की स्थापना 1923 में हुई : बंगाली परिवारों की संख्या में बढ़ोत्तरी के चलते शहर के मध्य में 1923 में सिटी बंगाली क्लब की स्थापना की गई, जिसे सभी के लिए उपलब्ध कराया गया। क्लब का नामकरण स्व.पीसी बोस की पत्नी सिद्धि बाला बोस के नाम पर लाइब्रेरी की स्थापना के साथ किया गया। स्व. बोस तत्कालिक नगरपालिका के अध्यक्ष एवं बाबू अंबिका चरण बैनर्जी सचिव थे। उनके पुत्र देवीचरण बैनर्जी, पौत्र विमलचन्द और सुजीत बैनर्जी इस पूजा को निरन्तर जारी रखने में सहयोग दे रहे हैं।

बंगभाषियों का धार्मिक स्थल : सन्‌ 1923 से सिटी बंगाली क्लब बंगभाषियों का धार्मिक स्थल बन गया है। जिसमें वर्षभर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। क्लब में सर्वप्रथम सेशन जज जीसी चटर्जी ने अपनी माता की स्मृति में तारीगिनि दुर्गा मंडल का निर्माण करवाया। विमलचन्द्र बैनर्जी ने दुर्गा पूजा को यहाँ स्थापित करने में सहयोग दिया, जो आज भी जारी है।

वर्तमान समय में अंबिकाचरण के प्रपौत्र सुजीत बैनर्जी ने सिटी बंगाली क्लब के सचिव रहते हुए 1989 से 1997 तक दुर्गा पूजा के विस्तार हेतु नया परिसर निर्माण कर अखिल भारतीय स्तर के कलाकारों को बुलाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं बंगाल के कलाकारों द्वारा मंडप सज्जा करवाई।

दत्त साहेब के बाड़े से हुई शुरुआत: जबलपुर में बंग पूजा की शुरुआत 1829 में गलगला स्कूल के पास स्थित दत्त साहेब के बा़ड़े से पारिवारिक समारोह के रूप में हुई। राय बहादुर का खिताब जीतने वाले बब्बा साहेब ने इस पूजा का श्रीगणेश किया। इसके दूसरे वर्ष से समीप में रहने वाले बाबू अंबिका चरण बैनर्जी के गलगला स्थित निवास पर (जो वर्तमान में जयश्री बैनर्जी का पैतृक निवास है) आयोजित की जाने लगी। यह पूजा कई वर्षों तक यहीं पर आयोजित की जाती रही।

पूजा के दौरान होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए बनारस और लखनऊ की नृत्यांगनाओं को आमंत्रित किया जाता था। उस समय पर्दा प्रथा का चलन होने से महिलाएं पर्दे के पीछे बैठकर नृत्य देखा करती थीं। इन कार्यक्रमों में सेठ गोकुलदास, परमानंद भाई पटेल जैसे घराने भी परिवार समेत शरीक होते थे। अंबिकाचरण बैनर्जी के निधन के पश्चात उनके पुत्र देवीचरण बैनर्जी ने इस पूजा को जारी रखा, जिनके देहान्त के बाद उनके पुत्र विमलचन्द्र बैनर्जी इस परंपरा को कायम रखे हुए हैं।

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