'सीखनी है गर फकीरी'

Webdunia
- विवेक हिरदे

ND

आबिदा अपने संजीदा सूफी अंदाज में जब राबिया की पंक्तियाँ गाती है, तो जीवन-दर्शन के नितांत नवीन अर्थ सामने आते हैं। आबिदा गाती है,
' सीखनी है गर फकीरी
तो पनिहारन से सीख
बतियाती है सहेलियों से
ध्यान गागर के बिच।'

यहाँ पनिहारन है गृहस्थाश्रम की तमाम जिम्मेदारियाँ उठाता और साथ-साथ परमपिता के पूजन-आराधन में लिप्त एक गृहस्थ, सहेलियाँ हैं जीवन-यात्रा में संपर्क में आने वाले विविध लोग, क्रियाकलाप, जबकि गागर है सिर पर साक्षात प्रभु का साया। मनुष्य-योनि में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और नाजुक दौर है गृहस्थाश्रम।

सभी समस्याओं और जिम्मेदारियों से तालमेल बिठाते हुए प्रभुभक्ति में लीन रहना एक गृहस्थ हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि कलियुग में मनुष्य संसार के भवसागर में अपनी जीवनरूपी नैया यदि भौतिकता की एक पतवारसे खेता रहेगा तो गोल-गोल ही घूमता रहेगा, परंतु जैसे ही वह अपने दूसरे हाथ में अध्यात्म या प्रभुभक्ति की पतवार भी थाम लेगा तो तत्काल तर जाएगा।

इसलिए गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी गृहस्थ को कुछ हद तक फकीरी भी सीखना चाहिए, जिससे उसका जीवन संयमित, संतुलित और स्थिर रह सके।

Show comments

मंगला गौरी व्रत कब रखा जाएगा, क्या है माता की पूजा का शुभ मुहूर्त

भविष्य मालिका की भविष्यवाणी के अनुसार तीसरा विश्‍व युद्ध कब होगा, भारत में लगेगा मिलिट्री शासन?

सावन सोमवार से संबंधित आरती चालीसा सहित महत्वपूर्ण जानकारी

अमरनाथ यात्रा शुरू, बालटाल और नुनवान आधार शिविरों से पहला जत्था रवाना

कैलाश मानसरोवर भारत का हिस्सा क्यों नहीं है? जानिए कब और कैसे हुआ भारत से अलग?

07 जुलाई 2025 : आपका जन्मदिन

07 जुलाई 2025, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Aaj Ka Rashifal: जानें श्रीहरि के आशीर्वाद से आज किन राशियों की चमकेगी किस्मत, पढ़ें 06 जुलाई 2025 का राशिफल

06 जुलाई 2025 : आपका जन्मदिन

06 जुलाई 2025, रविवार के शुभ मुहूर्त