धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद, जानिए एक विश्‍लेषण

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न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं...सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जाएंगे। यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं, फिर इनका शोक क्यों करते हो।- गीता
विद्वानों अनुसार धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद, इन तीनों तरह के शब्दों के अलग-अलग अर्थ हैं। फिर भी इसके विषय में कुछ भी कहना विवाद का विषय ही माना जाता रहा है। वर्तमान में इस तरह के शब्दों के मायने बदल गए हैं।  अब इसे अंग्रेजी में होली वार कहा जाता है अर्थात पवित्र युद्ध।
 
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धर्मयुद्ध: विश्व इतिहास में महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि महाभारत काल में जो युद्ध लड़ा गया था वह किसी धर्म या संप्रदाय के लिए नहीं बल्कि सत्य और न्याय के लिए युद्ध किया गया था। हालांकि कुछ लोग मान सकते हैं कि यह युद्ध भूमि विवाद पर था।
 
आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी। तभी से कलियुग का आरम्भ माना जाता है।
 
दुर्योधन इत्यादि को समझाने का कई बार प्रयत्न किया गया था। एक बार महाराज द्रुपद के पुरोहित उसे समझाने गए। दूसरी बार देश के प्रमुख ऋषियों और भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र और गांधारी ने भी समझाने का प्रयत्न किया और तीसरी बार श्रीकृष्ण स्वयं हस्तिनापुर गए थे। इस सबके उपरांत जब सत्य, न्याय और धर्म के पथ को उसने ठुकरा दिया तब फिर दुर्योधन और उसके सहयोगियों को शरीर से वंचित करने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं बचा। कहा जाता है कि सत्य और न्याय की रक्षा के लिए युद्ध न करने वाला या युद्ध से डरने वाला पापियों का सहयोगी कहलाता है।
 
महाभारत में जिस धर्मयुद्ध की बात कही गई है वह किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं बल्कि अधर्म के खिलाफ युद्ध की बात कही गई है। अधर्म अर्थात सत्य, अहिंसा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्याय के विरुद्ध जो खड़ा है उसके‍ खिलाफ युद्ध ही विकल्प है।
 
विभीषण के अलावा अन्य ऋषियों ने रावण को समझाया था कि पराई स्त्री को उसकी सहमति के बिना अपने घर में रख छोड़ना अधर्म है, तुम तो विद्वान हो, धर्म को अच्छी तरह जानते हो, लेकिन रावण नहीं माना। समूचे कुल के साथ रावण का नाश हुआ। पहले न्यायालय नहीं होते थे जो न्याय का पक्ष लेना वाला ही धर्मसम्मत आचरण वाला माना जाता था।
 
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 क्रूसेड : क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ख्रिस्त धर्म की रक्षा के लिए युद्ध। ख्रिस्त धर्म अर्थात ईसाई या क्रिश्चियन धर्म के लिए युद्ध। अधिकतर लोग इसका इसी तरह अर्थ निकालते हैं लेकिन सच क्या है यह शोध का विषय हो सकता है।
 
ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलिस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच सात बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है। इसे इतिहास में सलीबी युद्ध भी कहते हैं। यह युद्ध सात बार हुआ था इसलिए इसे सात क्रूश युद्ध भी कहते हैं।
 
उस काल में इस भूमि पर इस्लाम की सेना ने अपना आधिपत्य जमा रखा था, जबकि इस भूमि पर मूसा ने अपने राज्य की स्थापना की थी। इस तरह इस भूमि पर यहूदी भी अपना अधिकार चाहते थे। तो, यह युद्ध भी महाभारत के युद्ध की तरह भूमि के अधिकार का युद्ध माना जा सकता है। ईसाई, यहूदी और मुसलमान तीनों ही धर्म के लोग आज भी उस भूमि के लिए युद्ध जारी रखे हुए हैं।
 
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जिहाद : जिहाद या जेहाद अरबी में इसके दो अर्थ हैं- सेवा और संघर्ष। इसका मूल शब्द जहद है, जिसका अर्थ होता है 'संघर्ष'। जिहाद के अर्थ 'जद्दो जेहद करना।' से भी लगाया जाता है। अक्सर लोग इसका गलत अर्थ निकालते हैं। इस्लामिक विद्वान मानते हैं कि जिहाद का अर्थ धर्म के लिए पवित्र युद्ध करना नहीं होता। यह तो आतंरिक अनुशासन लाने और अन्याय के खिलाफ संघर्ष होता हैं।
 
जिहाद के दो प्रकार के माने गए हैं :- 1.जिहाद अल-अकबर (बड़ा जिहाद) और 1.जिहाद अल असगर (छोटा जिहाद)। पहला जिहाद खुद के ‍भीतर की बुलाइयों के खिलाफ संघर्ष करना है, तो दूसरा जिहाद सामाजिक बुराइयों और अन्याय के खिलाफ है।
 
वैसे तो पवित्र पुस्तक कुरान में जिहाद का जिक्र मिलता है। जिहाद तो मोहम्मद सल्ल. के समय से ही जारी है, किंतु 11वीं सदी की शुरुआत में क्रूसेडरों ने जब यरुशलम के लिए मोर्चाबंदी की तो पहली बार मुसलमानों को जिहाद के लिए इकट्ठा किया गया। यहीं से जिहाद के पवित्र मायने बदल गए। सीरिया को एकजुट कर मुसलमानों ने ईसाइयों को खदेड़कर इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की। तभी से जिहाद शब्द व्यापक पैमाने पर प्रचलन में आया और इसका उद्येश्य बदल गया।
 
जिहाद की व्याख्या, अर्थ या विचार को विवादित ही माना जाता रहा है। अरबी भाषा के इस शब्द के अर्थ का आज अनर्थ हो चला है। किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं हजरत मोहम्मद साहब ने मानव बुराइयों और जालिमों के खिलाफ जिहाद किया था।
 
जिहाद की व्याख्या, अर्थ या विचार को विवादित ही माना जाता रहा है। किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं हजरत मोहम्मद साहब स. ने मानव बुराइयों और जालिमों के खिलाफ जिहाद किया था।
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