Mosque temple dispute : कहते हैं कि 7वीं सदी सदी के बाद तुर्क और अरब के लुटेरों ने भारत पर कई आक्रमण किए थे। इस दौरान उन्होंने मंदिरों को लूटा और तोड़ा साथ ही कई लोगों का धर्मान्तरण भी किया गया। मान्यता है कि यहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण स्थानों पर बने मंदिरों को तोड़कर उन्हें मस्जिद की शक्ल दी गई। बताया जाता है कि करीब 1800 ऐसी मस्जिदें हैं। आओ जानते हैं उनमें से 10 खास मस्जिदों के बारे में संक्षिप्त जानकरी।
1. ज्ञानवापी मस्जिद, काशी : द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। इसे सबसे पहले 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। लेकिन एक बार फिर बनने के बाद इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से मंदिर का निर्माण किया गया, जिसे 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर तुड़वाकर ज्ञानवापी मस्जिद बना दी गई। इसी के पास 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था।
2. शाही मस्जिद ईदगाह, मथुरा : मथुरा में भगवान कृष्ण की जन्मभूमि है और उसी जन्मभूमि के आधे हिस्से पर बनी है शाही मस्जिद ईदगाह। सबसे पहले कृष्ण मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। इसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला। फिर ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जूदेव बुंदेला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य मंदिर बनवाया। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1660 में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी, जो कि आज भी विद्यमान है।
3. बिना नींव की मस्जिद, उज्जैन : मुस्लिम पक्ष मानते हैं कि यह मस्जिद 800 साल पहले जिन्नातों ने बनाई थी। कुछ कहते हैं कि यह 12वीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश द्वारा बनवाई गई थी। हिन्दू पक्ष का दावा है कि यह पहले भोजशाला थी, जिससे राजा भोज ने 1026 में तब बनाया था जब उन्होंने लुटेरे मोहम्मद गजनवी को हरा दिया था। उज्जैन ने संत महामंडलेश्वर अतुलेशानंद महाराज ने यहां की वीडियोग्राफी करने की मांग की है और यह भी कहा जा रहा है कि यहां पर खंभे और दीवारों पर स्थित मूर्तियों को धीरे-धीरे घीसा जा रहा है और हिन्दू अवशेषों को मिटाया जा रहा है।
4. कमाल मौलाना मस्जिद, धार : मध्यप्रदेश के धार में स्थित है कमाल मौलाना मस्जिद, जिसे हिन्दू पक्ष भोजशाला मानता है। राजा भोज सरस्वती के उपासक थे इसलिए उन्होंने धार में सरस्वती का एक भव्य मंदिर बनवाया था। राजाभोज ने सन् 1034 में मां सरस्वती की अनूठी मूर्ति का निर्माण कराकर भोजशाला में प्रतिष्ठित किया था। इतिहासकार शिवकुमार गोयल अनुसार 1305 में इस भोजशाला मंदिर को अलाउद्दीन खिलजी ने ध्वस्त कर दिया था। खिलजी द्वारा ध्वस्त कराई गई भोजशाला के एक भाग पर 1401 में दिलावर खां गौरी ने मस्जिद बनवाई थी। सन् 1514 में महमूद शाह खिलजी ने शेष भाग पर भी मस्जिद बनवा दी। हिन्दू जनता ने अनेक ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत कर यहां फिर से भोजशाला का निर्माण करने की मांग रखी है, लेकिन मामला अब कोर्ट में है। कहते हैं कि कि 1875 में यहां पर की गई खुदाई में सरस्वती देवी की एक प्रतिमा निकली थी। इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया था जो अब लंदन के संग्रहालय में रखी है। हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में इस प्रतिमा को लंदन से से वापस लाए जाने की मांग भी की गई है।
5. ढाई दिन का झोपड़ा : अजमेर में दरगाह के पास एक स्ट्रक्चर है जिसे ढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है। पहले यहां एक संस्कृत पाठशाला थी। पिछले 800 वर्षों से यह परिसर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम से विख्यात है। यह नाम इसलिए रखा गया है, क्योंकि पहले परिसर के 3 मंदिरों को ढाई दिन के भीतर मस्जिद के रूप में बदल दिया गया था। यह मस्जिद वर्तमान में राजस्थान के अजमेर में स्थित है। पहले यह संस्कृत पाठशाला थी। इसे मोहम्मद गौरी ने मस्जिद में तब्दील कर दिया। इसे मस्जिद का लुक देने के लिए अबु बकर ने डिजाइन तैयार किया था। अब लोग इसे ढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं।
माना जाता है कि ख्वाजा साहब (1161 ईस्वी) की दरगाह से एक फर्लांग आगे त्रिपोली दरवाजे के पार पृथ्वीराज चौहान के एक पूर्वज द्वारा बनवाए गए 3 मंदिरों के परिसर में एक संस्कृत पाठशाला थी जिसकी स्थापना पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज विग्रहराज तृतीय ने लगभग 1158 ईस्वी में की थी। वह साहित्य प्रेमी था और स्वयं नाटक लिखता था। उनमें से एक हरकेली नाटक काले पत्थरों पर उत्कीर्ण किया गया, जो अजमेर स्थित अकबर किला के राजपुताना संग्रहालय में आज भी संग्रहित है।
6. जामा मस्जिद, अहमदाबाद : गुजरात के पाटन जिले के सिद्धपुर में रुद्र महालय स्थित है। सरस्वती नदी के तट पर बसा सिद्धपुर एक प्राचीन नगर है। इस मंदिर को 943 ईस्वी में मूलाराज सोलंकी ने बनवाना प्रारंभ किया था। 1140 ईस्वी में सिद्धराज जयसिंह के काल में निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। वर्ष 1094 में सिद्धराज ने रुद्र महालय का विस्तार करके 'श्रीस्थल' का 'सिद्धपुर' नामकरण किया था। 1410-1444 के दौरान अलाउद्दीन खिलजी ने इसका कई बार विध्वंस करवाया और उसके बाद अहमद शाह ने इसे तुड़वाया था। विभिन्न आततायी आक्रमणकारी लुटेरे बादशाहों ने 3 बार इसे तोड़ा और लूटा। इसके बाद एक भाग में मस्जिद बना दी। इसके एक भाग को आदिलगंज (बाजार) का रूप दिया। इस बारे में वहां फारसी ओर देवनागरी में शिलालेख हैं। वर्तमान में रुद्रमहल के पूर्व विभाग के तोरण द्वार, चार शिव मंदिर और ध्वस्त सूर्य कुंड हैं। यह पुरातत्व विभाग के अधीन है।
7. देवल मस्जिद, बोधन, निजामाबाद, तेलंगाना : कहते हैं कि देवल मस्जिद पहले हिंदू-जैन मंदिर था, जिसका निर्माण राष्ट्रकूट के राजा इंद्र तृतीय ने 9वीं और 10वीं सदी के मध्य में कराया था। लेकिन तुगलक ने इस मंदिर को तोड़कर पहले खंडित किया और बाद में उसे मस्जिद का आकार दे दिया। मंदिर के शिखर को नष्ट करके और इसकी जगह प्लास्टर के गुंबदों को लगा दिया गया। इंद्रनारायण स्वामी मंदिर का मस्जिद में परिवर्तन वर्ष 1323 में हुआ था जब मुहम्मद बिन तुगलक ने बोधन किले पर कब्जा कर लिया था। पहले ये यह काकतीय कमांडर सीतारामचंद्र शास्त्री के संरक्षण में था।
8. अदीना मस्जिद पंडुवा- पश्चिम बंगाल : पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में स्थित अदीना मस्जिद कभी हिंदू-बौद्ध मंदिर हुआ करता था। बांग्लादेश सीमा पर बनी यह मस्जिद एक समय भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी मस्जिद हुआ करती थी। 14वीं सदी की यह मस्जिद बंगाल सल्तनत की खास मस्जिद थी। मस्जिद के यह खंडहर यहां के पुराने शहर पंडुआ में हैं। बंगाल सल्तनत में इलयास शाही राजवंश के दूसरे सुल्तान सिकंदर शाह के काल में इस मस्जिद का निर्माण हुआ था।
9. कुबत−उल−इस्लाम मस्जिद, दिल्ली : हिन्दू दावों के अनुसार कुतुब मीनार को पहले विष्णु स्तंभ कहा जाता था। इससे पहले इसे सूर्य स्तंभ कहा जाता था। इसके केंद्र में ध्रुव स्तंभ था जिसे आज कुतुब मीनार कहा जाता है। यह एक वेधशाला थी जो वराहमिहिर की देखरेख में चंद्रगुप्त द्वितिय के आदेश से बनी थी। ऐसा भी कहते हैं कि समुद्रगुप्त ने दिल्ली में एक वेधशाला बनवाई थी, यह उसका सूर्य स्तंभ है। कालान्तर में अनंगपाल तोमर और पृथ्वीराज चौहान के शासन के समय में उसके आसपास कई मंदिर और भवन बने, जिन्हें मुस्लिम हमलावरों ने दिल्ली में घुसते ही तोड़ दिया था। मुस्लिम दावे के अनुसार गुलाम वंश के पहले शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1199 में कुतुब मीनार का निर्माण शुरू करवाया था और उसके दामाद एवं उत्तराधिकारी शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने 1368 में इसे पूरा किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने वहां 'कुबत−उल−इस्लाम' नाम की मस्जिद का निर्माण भी कराया और इल्तुतमिश ने उस सूर्य स्तंभ में तोड़-फोड़कर उसे मीनार का रूप दे दिया था। कुतुब मीनार की चारदीवारी में खड़ा लौह स्तंभ सच बयां कर देता है।
10. जामा मस्जिद, मांडव, मध्य्रदेश : संपूर्ण मांडव को परमारवंश के राजा ने बसाया था। यहां के सभी महल और स्मारक परमारवंशियों ने बनवाए थे। मांडू मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित एक पर्यटन स्थल है। तेरहवीं शती में मालवा के सुलतानों ने इसका नाम शादियाबाद यानि 'खुशियों का शहर' रख दिया था। यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिन्डोला महल, शाही हमाम और आकर्षक नक्काशीदार गुम्बद वाली मस्जिद सभी को इस्लामिक लुक देकर उन पर अरबी में इबारतें लिख दी गई। परमार शासकों द्वारा बनाए गए इस नगर में जहाज और हिंडोला महल खास हैं। होशंगशाह की मस्जिद, जामी मस्जिद, नहर झरोखा, बाज बहादुर महल, रानी रूपमति महल और नीलकंठ महल सभी परमारकालीन स्थापत्य कला की छाप है। होशंगशाह मालवा का प्रथम सुलतान था जिसने राजाभोज द्वारा बनाए गए स्मारकों, स्तंभों, बावड़ियों, मंदिरों आदि सभी भव्य स्थलों तो तोड़ा और कुछ का इस्लामिकरण किया। माण्डव में मलिक मुगिस की मस्जिद एवं दिलावर खां की मस्जिद स्थित है। जिनका निर्माण भी हिन्दू एवं जैन मंदिरों की सामग्रियों से ही हुआ था। यह सामग्री धार व मालवा के अन्य हिन्दू देवालयों एवं जैन मंदिरों से माण्डव में लाई गई थी। हालांकि यह दोनों ही मस्जिद अब नष्ट प्रायः है। इस बाद के उल्लेख मांडव के राममंदिर में लगी एक पट्टीका में मिलता है कि किस तरह मांडव में विध्वंस और कत्लेआम किया गया था।