16 फरवरी को संत रविदास जयंती, पढ़ें उनकी अनमोल रचनाएं
भारत के महान कवि, संत रविदास जयंती (sant ravidas jyanati) इस वर्ष 16 फरवरी 2022 (16 February 2022) को मनाई जा रही है। यह दिन माघ मास के पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला गुरु रविदास का जन्मदिवस है। हालांकि उनकी जन्मतिथि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। उन्हें रैदास (Raidas) के नाम से भी जाना जाता है। यहां पढ़ें उनके द्वारा रचित अनमोल रचनाएं (Great Poet)...
1. तुम चंदन हम पानी-sant ravidas poems
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती,
जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा,
ऐसी भक्ति करै रैदासा।
2. निरंजन देवा
अबिगत नाथ निरंजन देवा।
मैं का जांनूं तुम्हारी सेवा।। टेक।।
बांधू न बंधन छांऊं न छाया,
तुमहीं सेऊं निरंजन राया।।1।।
चरन पताल सीस असमांना,
सो ठाकुर कैसैं संपटि समांना।।2।।
सिव सनिकादिक अंत न पाया,
खोजत ब्रह्मा जनम गवाया।।3।।
तोडूं न पाती पूजौं न देवा,
सहज समाधि करौं हरि सेवा।।4।।
नख प्रसेद जाकै सुरसुरी धारा,
रोमावली अठारह भारा।।5।।
चारि बेद जाकै सुमृत सासा,
भगति हेत गावै रैदासा।।6।।
3. तुम्हारी आस
जो तुम तोरौ रांम मैं नहीं तोरौं।
तुम सौं तोरि कवन सूं जोरौं।। टेक।।
तीरथ ब्रत का न करौं अंदेसा,
तुम्हारे चरन कवल का भरोसा।।1।।
जहां जहां जाऊं तहां तुम्हारी पूजा,
तुम्ह सा देव अवर नहीं दूजा।।2।।
मैं हरि प्रीति सबनि सूं तोरी,
सब स्यौं तोरि तुम्हैं स्यूं जोरी।।3।।
सब परहरि मैं तुम्हारी आसा,
मन क्रम वचन कहै रैदासा।।4।।
4. पार गया
पार गया चाहै सब कोई।
रहि उर वार पार नहीं होई।। टेक।।
पार कहैं उर वार सूं पारा,
बिन पद परचै भ्रमहि गवारा।।1।।
पार परंम पद मंझि मुरारी,
तामैं आप रमैं बनवारी।।2।।
पूरन ब्रह्म बसै सब ठाइंर्,
कहै रैदास मिले सुख सांइंर्।।3।।
5. मन ही पूजा
राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊं ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊं ॥टेक॥
थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भंवर जल मीन बिगारी ॥1॥
मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
विष अमृत दोउ एक संगा ॥2॥
मन ही पूजा मन ही धूप ।
मन ही सेऊं सहज सरूप ॥3॥
पूजा अरचा न जानूं तेरी ।
कह रैदास कवन गति मोरी ॥4॥
6. दरसन दीजै राम
दरसन दीजै राम दरसन दीजै।
दरसन दीजै हो बिलंब न कीजै।। टेक।।
दरसन तोरा जीवनि मोरा,
बिन दरसन का जीवै हो चकोरा।।1।।
माधौ सतगुर सब जग चेला,
इब कै बिछुरै मिलन दुहेला।।2।।
तन धन जोबन झूठी आसा,
सति सति भाखै जन रैदासा।।3।।
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