सिंधारा दोज क्या है और क्यों मनाया जाता है ये पर्व?

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Sindhara Dooj 2023: सिंधारा दौज/ सिंधारा दूज का पर्व प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा की जाती है। शाम में, देवी को मिठाई और फूल अर्पण कर श्रद्धा के साथ गौरी पूजा की जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार यह व्रत 18 अगस्त 2023, दिन गुरुवार को किया जाएगा। सिंधारा दूज को सौभाग्य दूज, गौरी द्वितिया या स्थान्य वृद्धि के रूप में भी जाना जाता है। यह पर्व चैत्र माह में भी आता है। 
 
मान्यतानुसार द्वितीया तिथि को सुमंगल कहा जाता है, जिसके देवता ब्रह्मा जी है। यह तिथि भद्रा संज्ञक तिथि है। भाद्रपद में यह शून्य संज्ञक होती है। यह सोमवार और शुक्रवार को मृत्युदा होती है और बुधवार के दिन दोनों पक्षों की द्वितीया में विशेष सामर्थ आ जाती है और यह सिद्धिदा हो जाती है, इसमें किए गए सभी कार्य सफल होते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और संपूर्ण परिवार के स्वास्थ्य की कामना से यह व्रत करती हैं। द्वितीया या सिंधारा दूज के दिन छोटा बैंगन व कटहल खाना निषेध बताया गया है।
 
सिंधारा दोज के दिन व्रतधारी महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और आभूषण पहनती हैं। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे के साथ उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं। चूड़ियां इस उत्सव का खास अंग है। वास्तव में, नई चूड़ियां खरीदना और अन्य महिलाओं को इसका उपहार देना इस उत्सव की एक दिलचस्प परंपरा है।
 
दरअसल, मुख्य रूप से यह बहुओं का त्योहार है। इस दिन सास अपनी बहुओं को भव्य उपहार प्रस्तुत करती हैं, जो अपने माता-पिता के घर में इन उपहारों के साथ आती हैं। सिंधारा दूज के दिन, बहूएं अपने माता-पिता द्वारा दिया गया 'बाया' लेकर वापस अपने ससुराल आती हैं। 'बाया' में फल, व्यंजन, मिठाइयां और धन शामिल होता है। शाम को गौरी माता/ देवी पार्वती की पूजा करने के बाद, वह अपनी सास को यह 'बाया' भेंट करती हैं। 
 
सिंधारा दूज के दिन लड़कियां अपने मायके जाती हैं और इस दिन बेटियां मायके से ससुराल भी आती हैं। मायके से बाया लेकर बेटियां ससुराल आती हैं। तीज के दिन शाम को देवी पार्वती की पूजा करने के बाद 'बाया' सास को दे दिया जाता है। इस तरह यह पर्व मनाया जाता है। इसके अगले दिन भाद्रपद कृष्ण तृतीया तिथि पर हरियाली तीज मनाई जाती है। 

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