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रशिया में कौन से धर्म के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है?

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 9 जुलाई 2024 (11:28 IST)
Russia religion
Russian religion : प्राचीन काल से ही रशिया और भारत के लोगों के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। एक हजार वर्ष पहले रूस ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। माना जाता है कि इससे पहले यहां असंगठित रूप से भारतीय धर्म प्रचलित था। धीरे धीरे लोग मूल धर्म को छोड़कर मनमानी पूजा और प्रार्थना करने लगे थे। पुजारियों का बोलबाला हो गया। यही कारण था कि 10वीं शताब्दी के अंत में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग मनमानी पूजा छोह़कर छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें।ALSO READ: प्रधानमंत्री मोदी रूस पहुंचे, राष्ट्रपति पुतिन के साथ करेंगे शिखर वार्ता
 
इस तरह रशिया में आया ईसाई धर्म:-
उस समय व्लादीमिर के सामने दो नए धर्म थे। एक ईसाई और दूसरा इस्लाम, क्योंकि रूस के आस-पड़ोस के देश में भी कहीं इस्लाम तो कहीं ईसाइयत का परचम लहरा चुका था। राजा के समक्ष दोनों धर्मों में से किसी एक धर्म का चुनाव करना था, तब उसने दोनों ही धर्मों की जानकारी हासिल करना शुरू कर दी। उसने जाना कि इस्लाम की स्वर्ग की कल्पना और वहां हूरों के साथ मौज-मस्ती की बातें तो ठीक हैं लेकिन स्त्री स्वतंत्रता पर पाबंदी, शराब पर पाबंदी और खतने की प्रथा ठीक नहीं है। इस तरह की पाबंदी के बारे में जानकर वह डर गया। खासकर उसे खतना और शराब वाली बात अच्छी नहीं लगी। ऐसे में उसने इस्लाम कबूल करना रद्द कर दिया। उसने ईसाई धर्म अपनाने के लिए यूनानी वेजेन्टाइन चर्च से बातचीत करनी शुरू कर दी। वेजेन्टाइन चर्च कैथोलिक ईसाई धर्म से थोड़ा अलग है और उसे मूल ईसाई धर्म या आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म कहा जाता है। इस तरह रूस के एक बहुत बड़े भू-भाग पर ईसाई धर्म की शुरुआत हुई।
 
रूस की कियेव रियासत के राजा व्लादीमिर ने जब आर्थोडॉक्स ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया और अपनी जनता से भी इस धर्म को स्वीकार करने के लिए कहा तो उसके बाद भी कई वर्षों तक रूसी जनता अपने प्राचीन देवी और देवताओं की पूजा भी करते रहे थे। बाद में ईसाई पादरियों के निरंतर प्रयासों के चलते रूस में ईसाई धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सका है और धीरे-धीरे रूस के प्राचीन धर्म को नष्ट कर दिया गया।

रशिया में कौन से धर्म के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है?
एक रिपोर्ट के अनुसार रशिया में करीब 142 मिलियन लोग रहते हैं, जिसमें से 71 फीसदी लोग ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन हैं। 5 फीसदी लोग मुसलमान हैं। 15 फीसदी लोग वो हैं, जिनका किसी भी धर्म में विश्वास नहीं है। बचे 9 फीसदी लोगों में बौद्ध, प्रोटेस्टेंट्स ईसाई, रोमन कैथलिक, यहूदी, हिंदू, बहाई आदि धर्म को मानने वाले लोग हैं। हालांकि वर्तमान में हिंदू धर्म यहां का तेजी से बढ़ता धर्म बन गया है। ALSO READ: कजाकिस्तान में क्यों तेजी से फैल रहा सनातन हिंदू धर्म?
 
ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन लोग अन्य ईसाई धर्म के लोगों से अलग होते हैं। र्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के पैट्रिआर्च (कुलपति) को ही मानते हैं और इनके त्योहार जूलियन कैलेंडर पर आधारित होते है। ये ईसा मसीह के अलाव किसी को भी नहीं मानते हैं। 
 
दरअसल ईसाई धर्म में  तीन डिविजन है, जिसमें कैथलिक, प्रोटेस्टेंट्स और ऑर्थोडॉक्स हैं। ऑर्थोडॉक्स का अर्थ है परंपरावादी।
 
रशिया के प्राचीन देवता:
प्राचीनकाल के रूस में लोग प्रकृति-पूजा के साथ देवी और देवताओं की पूजा भी करते थे। प्रकृति-पूजकों के लिए तो सूरज भी ईश्वर था और वायु भी ईश्वर थी और प्रकृति में होने वाला हर परिवर्तन, प्रकृति की हर ताकत को वे ईश्वर की हरकत ही समझते थे। वे अग्नि, सूर्य, पर्वत, वायु या पवित्र पेड़ों की पूजा किया करते थे जैसा कि आज भारत में हिन्दू करता है। हालांकि वे प्रकृति को सम्मान देने के अलावा यह भी मानते थे कि कोई एक ईश्‍वर है जिसके कारण संपूर्ण संसार संचालित हो रहा है।ALSO READ: Religion: दुनिया के 7 बड़े धर्मों में क्या है आपसी रिश्ता?
 
सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता। आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था। यह हिंदू धर्म के इंद्र से मिलता जुलता है। कोई भी संधि या समझौता करते हुए इन पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं और उन्हीं की पूजा मुख्य पूजा मानी जाती थी। विद्वानों का कहना है कि प्राचीनकाल में रूसियों द्वारा की जाने वाली प्रकृति की यह पूजा बहुत कुछ हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों और रस्मों से मिलती-जुलती थी।
 
प्राचीनकाल में रूस के 2 और देवताओं के नाम थे- रोग और स्वारोग। सूर्य देवता के उस समय के जो नाम हमें मालूम हैं, वे हैं- होर्स, यारीला और दाझबोग।
 
सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं जिनके नाम हैं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना कहीं इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा नहीं हुआ? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता कहीं हिन्दी का 'जीव' या 'शिव' ही तो नहीं? 'जीव' यानी हर जीवंत आत्मा। रूस में यह जीवन की देवी थी।ALSO READ: Religious : दुनिया के ये 6 धर्म विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं?
 
रूस में आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। कुछ मूर्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज्यादा समानता है। रूस के प्राचीन धर्म के बहुत से निशान अभी भी रूसी संस्कृति में बाकी रह गए हैं।
 
वोल्गा क्षेत्र में मिली विष्णु की मूर्ति : कुछ वर्ष पूर्व ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना (Staraya Maina) गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईस्वी सन् का बताया गया। यह गांव 1700 साल पहले एक प्राचीन और विशाल शहर हुआ करता था। स्ताराया मायना का अर्थ होता है गांवों की मां। उस काल में यहां आज की आबादी से 10 गुना ज्यादा आबादी में लोग रहते थे। 2007 को यह विष्णु मूर्ति पाई गई। 7 वर्षों से उत्खनन कर रहे समूह के डॉ. कोजविनका कहना है कि मूर्ति के साथ ही अब तक किए गए उत्खनन में उन्हें प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं।
 
महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता-जुलता है। अर्जुन के बाद बाद सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है। हिन्दी के प्रख्यात विद्वान डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार रूसी भाषा के करीब 2,000 शब्द संस्कृत मूल के हैं।ALSO READ: दुनिया के वे 10 प्राचीन धर्म जो अब हो गए हैं लुप्त

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