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इजराइल के दुश्मन क्यों है ईरान सहित सभी मुस्लिम देश?

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 22 मई 2025 (12:50 IST)
Iran and Israel conflict: इजराइल एक यहूदी देश है। इसके पहले यह भूमि मु्स्लिमों के कब्जे में थी और इसके पहले ईसाइयों के कब्जे में भी और उसके पहले यह रोमनों के कब्जे में थी और उसके पहले यहूदियों का यहां पर शासन था। 1948 में एक नया यहूदी देश बनाया गया और अब फिलिस्तीन एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और इजराइल एक यहूदी बहुल देश है, इसमें यरुशलम को लेकर तीनों धर्मों में विवाद है। फिलिस्तीन और इजरायल दोनों ही जेरूसलम को अपनी राजधानी मानते हैं और दोनों ही इस पर अपना हक जाते हैं।
 
धार्मिक पृष्ठभूमि: 
करीब 3 हजार वर्ष पूर्व हजरत मूसा के नेतृत्व में मिस्र से पलायन के बाद सभी यहूदी इजरायल की राजधानी यरुशलम में एकत्रित हुए और एक यहूदी राज्य की स्थापना की। यहां पर उन्होंने महान राजा सोलेमन के जमाने में एक विशालकाय यहूदी मंदिर बनाया। वर्तमान में इस मंदिर के एक हिस्से पर मुस्लिमों की पवित्र मस्जिद अल अक्सा है जिसे मुस्लिमों के कब्जे वाले काल के दौरान बनाया गया। इसके पहले ईसा मसीह ने यरूशलेम में उपदेश देकर यहूदी और रोमनों को भड़का दिया जिसके चलते उन्हें यहां पर उन्हें सूली पर लटका दिया गया। 
 
ईसाई मानते हैं कि यरूशलेम में यहूदियों ने साजिश करके ईसा मसीह को सूली पर लटकाया था इसलिए यह स्थान ईसाइयों के लिए महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर मुस्लिम मानते हैं कि यरुशलम में स्थित अल अक्सा मस्जिद वह स्थान हैं जहां से हजरत मुहम्मद जन्नत की तरफ गए थे और अल्लाह का आदेश लेकर पृथ्वी पर लौटे थे। इस मस्जिद के पीछे की दीवार और परिसर ही यहूदियों के लिए पवित्र जगह है जहां खड़े होकर वे प्रार्थना करते हैं। पहले यहूदी शासन के अंतर्गत ईसाई, यहूदी और मुस्लिम अपने-अपने क्षेत्र में रहते थे और कभी कभार ही छुटपुट दंगे होते रहते थे लेकिन 1096-99 में ईसाइयों ने यहूदियों का दमन करके संपूर्ण क्षेत्र पर कब्जा करके शासन प्रारंभ कर दिया। इसके बाद मुस्लिम लड़ाके जैंगी के नेतृत्व में दमिश्क में एकजुट हुए और उन्होंने यरुशलम पर हमला करके खूब कत्लेआम किया और अंतत: इस्लामिक शासन को स्थापित किया। इसके बाद 1144 में दूसरा युद्ध हुआ फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ। इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा।
 
17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के उन बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू हुआ जहां इस्लाम ने जबरन कब्जा कर रखा था। अंग्रेजों का शासन प्रारंभ हुआ। इसके बाद जर्मन में जब हिटलर ने यहूदी नरसंहार का तांडव किया था तब भी मानव जाति का सबसे बड़ा पलायन हुआ था। इस घटना को होलोकॉस्ट (1933–1945) के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इस दौरान 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी गई थी और लाखों को पलायन करके फिलिस्तीन में बसना पड़ा था। इसके बाद 19वीं सदी में कई मुल्कों के लिए नए सवेरे की तरह शुरू हुई। इसके चलते ही 1939 द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया तो कई नए मुल्कों का जन्म हुआ।
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पहला नकबा:
दूसरे विश्व युद्ध के बाद 14 मई 1948 को फिलिस्तीन का विभाजन करके यहूदियों के लिए एक नया देश इजराइल बनाया गया। इसके बाद यहूदियों को जो भूमि दी गई थी उस भूमि को फिलिस्तीन को खाली करना था। इस बंटवारे के बाद 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी लोगों को अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। 15 मई का दिन दुनियाभर में मौजूद फिलिस्तीनियों के लिए साल का सबसे दुख भरा दिन होता है। वो इस दिन को 'नकबा' कहते हैं। 15 मई 1948 को फिलिस्तीनियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ था।
 
इसके बाद अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में 1979 की ईरानी क्रांति के बाद देश और दुनिया की राजनीति बदल गए। इजराइल के खिलाफ ईरान एक कट्टरपंथी सोच के साथ आगे बढ़ने लगा। इसके बाद ईरान, पाकिस्तान सहित अन्य मुस्लिम मुल्कों में मुस्लिमों के मन में मदरसों के माध्यम से इजरायल और यहूदियों के खिलाफ नफरत भरने का कार्य किया जाता रहा है। यह नफरत तब और चरम पर हो जाती है जबकि इजराइल किसी आतंकवादी हमले का क्रूरता से जवाब देता है। 
 
दूसरा नकबा:
हमास के आतंकवादियों ने जिस बर्बर तरीके से इजरायल में हमला करके कत्लेआम किया उससे इजरायल का क्रोध अब सातवें आसमान पर है। गाजा पर लगातार एयर स्ट्राइक के चलते 50 हजार से ज्यादा लोग मौत की नींद सो गए हैं। इस बीच इजरायल ने अब गाजा पट्टी के 11 लाख लोगों को दक्षिण की ओर जाने को कहा है। इससे गाजा में भीषण पलायन की स्थिति हो गई है और लोग सामान के साथ दक्षिण की ओर जा रहे हैं। फिलिस्तीन लोग इसे दूसरा नकबा कह रहे हैं। गाजा की आबादी 23 लाख है, जिसमें से 11 लाख से ज्यादा लोग उत्तरी गाजा में रहते हैं। अब इसराइल गाजा पर कब्जे का प्लान बना चूका है। यह जंग अब और बढ़ेगी क्योंकि यदि इसमें ईरान यदि अडंगा लगाने का कार्य करेगा तो इसराइल ने स्पष्ट कर दिया है कि ईरान पर वह हमले करेगा। 

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