पूजा क्या है, जानिए

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-डॉ. रामकृष्ण सिंगी 
पूजा अपने इष्टदेव से सामीप्य का एहसास करने की एक सरल कर्मकांडीय विधि है। सरल लौकिक विचारों से संजोकर यह एक ऐसी अर्चना प्रणाली तैयार की गई है कि जो हमें कुछ समय के लिए इस सांसारिक जीवन की गतिविधियों से अलग हटाकर एक आध्यात्मिक संसार में पहुंचा देती है, जहां तन्मयता है, भावना है, पवित्रता का आभास है, विभोर और तृप्त कर देने वाला मनोभाव है।



इस कर्मकांडीय प्रक्रिया को सुगम, पवित्रता और आत्मिक संतोष की चाह वाले ईश्वरीय आशीर्वाद पाने की ललक वाले लोग अपनी दैनिक जीवनचर्या का भाग बना लेते हैं और इसका सुखद परिणाम भी यह होता है कि दिनभर आत्मा में एक पवित्रता का आभास होता रहता है और यह भी कि हमने अपना दिन एक ऐसे शुभ कार्य से प्रारंभ किया है कि जिसके परिणाम निरंतर मंगलकारी होंगे। ईश्वरीय कृपा की छत्रछाया हम पर होगी, हमारी मनोवृत्ति अनीतिकर कार्यों से बची रहेगी और हमारा संपूर्ण दैनिक व्यवहार शुभ व संतोषजनक होगा।

शास्त्रों में विभिन्न प्रकार की पूजा के सुझाव दिए गए हैं, जैसे षोडषोपचार पूजा, पंचोपचार पूजा आदि। सोलह उपचारों यानी साधनों, युक्तियों, प्रक्रियाओं या चरणों में की जाने वाली पूजा जिसमें किसी मूर्ति, चित्र या अन्य प्रतीक में अपने इष्टदेव की उपस्थिति मानकर उसे उसी प्रकार से स्थापन, स्नान, अर्घ्य, वस्त्र, श्रृंगार, भोग, सुवास आदि अर्पित कर सम्मानित किया जाता है, जैसा कि हम किसी पूज्य अतिथि को लोकिक व्यवहार में करते हैं। फिर स्तुति, प्रार्थना, भजन, आरती द्वारा आत्मनिवेदन कर उनसे आशीर्वाद मांगा जाता है।

अपनी श्रद्धा और सुविधानुसार इस प्रक्रिया के पश्चात जप व पाठ जोड़ दिए जाते हैं, जो हमें मानसिक तृप्ति और ज्ञान को विस्तार का वरदान देते हैं। इससे धर्मग्रंथों के पठन की निरंतर रुचि बनी रहती है और उत्तरोत्तर अधिक जानने, सुनने व समझने की उत्कंठा जागृत होती है।
 
जिन गृहस्थियों में नित्य पूजन का नियमित क्रम चलता है, वहां स्वयमेव एक ऐसा दिव्य वातावरण निर्मित हो जाता है, जो पवित्र जीवन व्यवहार का प्रेरक होता है। उसी से अनीतिकर कार्यों से बचने और मर्यादित जीवन जीने का भाव सुदृढ़ होता है। साथ ही प्रार्थना और आरती के स्वर वातावरण में गूंजकर उत्साह व आशावादिता का संचार करते हैं।
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