अद्भुत है विचार की शक्ति

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- प्रो. राजाराम गुप्त ा

विचार कर्म के प्रासाद की नींव है। विचार का प्रभाव अद्भुत है। यह विचार ही है जो अर्जुन को गाण्डीव उठाने के लिए प्रेरित करता है और नरेन्द्र को विवेकानंद बना देता है। चिंतन-मनन के बाद विचार ही आचरण का रूप लेता है।

' विचार' शब्द के मन में आते ही मन में विचार आता है कि आखिर ये विचार हैं क्या? मन में उठने वाली विविध भावनाओं, कामनाओं एवं स्मृतियों की उत्ताल तरंगें हैं विचार, जिनमें मन डूबता उतराता रहता है। चेतना एवं चिंतन से उद्भूत सोच के स्पंदनों की हलचल है। विचार जो कभी मन को आह्लादित करते हैं तो कभी उद्वेलित। विचार कर्म के प्रासाद की नींव है। विचार बहुत बड़ा शक्तिपुंज है, इसमें अनंत ऊर्जा निहित है। विचार का अद्भुत प्रभाव होता है व्यक्ति पर। विचार ही मनुष्य को ऊपर उठाते हैं और विचार ही मनुष्य के पतन का कारण बनते हैं। विचार से समाज और राष्ट्र जुड़ते हैं और विचार से ही टूटते हैं ।

विचार से हताश मन में आशा का संचार होता है। एक विचार से अर्जुन जैसा योद्धा रणक्षेत्र से पलायन करना चाहता है, किंतु भगवान श्रीकृष्ण के चमत्कारिक विचारों के प्रभाव से वही अर्जुन गाण्डीव उठाकर युद्ध के लिए तैयार हो जाता है। यह है विचार की शक्ति। संसार में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं, उनके मूल में क्रांतिकारी विचार ही रहे हैं। विचारों से ही कर्म की पृष्ठभूमि तैयार होती है। कर्म की प्रेरणा हमें विचारों से ही मिलती है। किसी भी विषय या कार्य पर मनुष्य पहले चिंतन-मनन करता है, उसके बाद ही कर्म का स्वरूप, प्रारूप एवं राह निर्धारित करता है।

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं बढ़ते अपराधों पर भी विचार-संस्कृति से ही काबू पाया जा सकता है। कठोर से कठोर शासन एवं सख्त से सख्त कानून भी इन पर पूरा नियंत्रण नहीं कर सकता है। केवल विचार परिवर्तन से ही अपराधों एवं रिश्वतखोरी से निजात पाई जा सकती है। इसी उद्देश्य को लेकर आजकल कारागृहों में संतजनों के प्रवचन कराए जा रहे हैं। व्यक्ति के जैसे विचार होंगे, वैसा ही उसका आचरण होगा, उसके कर्म भी वैसे ही होंगे। गौतम गीता में कहा गया है- विचार हि मनुष्याणां प्रतिमानाः परन्तप। विचारो यादृशो यस्य मर्त्यो मर्वात तादृशः॥ अर्थात 'हे परन्तप! विचार ही मनुष्य के प्रतिनिधि हैं, जिस मनुष्य के जैसे विचार हैं वैसा ही वह होता है।

विचार की बड़ी महत्ता है। जिन राष्ट्रों में स्वाधीनता आंदोलन चले, वहां पहले विचार-क्रांति जन्मी। तत्पश्चात ही मैदानी कार्रवाई शुरू हुई। नरेन्द्र को विवेकानन्द बनाने में रामकृष्ण परमहंस के विचारों ने ही चमत्कार किया। सिकन्दर सीधे ही विश्व-विजय के लिए नहीं निकल पड़ा। पहले उसके मन में इस प्रकार की विजय प्राप्त करने का विचार आया था तदनंतर ही वह उस दिशा में प्रवृत्त हुआ। कर्म का अंकुरण विचाररूपी बीज से होता है। विचार जितने उच्च और आदर्श होंगे, कर्म उतने ही श्रेष्ठ होंगे। मन विचार का गर्भस्थल है। मन जितना शुद्ध, सात्विक, पवित्र और निर्मल होगा, उतने ही पवित्र एवं उत्तम विचार उसमें आकार लेंगे।

जिस परिवार एवं राष्ट्र में व्यक्तियों के विचारों में श्रेष्ठता और समन्वय होगा, वे निश्चित ही समुन्नत होंगे। अच्छे विचार शांति लाते हैं और शांति उन्नति की पहली शर्त है। मनोविद् डी. डब्ल्यू. टायलर ने थिंकिंग एण्ड क्रिएटीविटी में लिखा है कि विचारों के अनुरूप ही मनुष्य का स्वभाव एवं आचार बन जाता है। स्पष्ट है कि श्रेष्ठ विचारों से ही आदर्श एवं चरित्रवान व्यक्तित्व का निर्माण होगा। इन व्यक्तियों के आदर्श कर्मों से एक श्रेष्ठ, सशक्त एवं आदर्श राष्ट्र का सपना साकार हो सकेगा। प्रत्येक व्यक्ति को अपने मानस में उच्च विचारों के बीज बोने चाहिए। इसी में व्यक्ति का, समाज का, देश का एवं विश्व का हित है।

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