इस्कॉन में चंदन यात्रा उत्सव का आनंद

मन की शांति के लिए शुरू हुई चंदन यात्रा

Webdunia
- हर्ष
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भगवान को भी गर्मी लगती है। कम से कम भक्त तो भगवान के बारे में ऐसा ही सोचते हैं। और सोचे क्यों न, संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी जब अपने प्रिय भक्त माधवेन्द्र पुरी से गर्मी की शिकायत करेंगे तो फिर भला वे परेशानी समझकर गर्मी दूर करने के लिए प्रयास क्यों नहीं करेंगे?

इसलिए चैतन्य महाप्रभु के गुरु ईश्वर पुरी के गुरु माधवेन्द्र पुरी जब भगवान को चंदन का लेप लगाते हैं तो भगवान के साथ-साथ उनके भक्तों को भी शीतलता की गहरी अनुभूति होती है। अक्षय तृतीया के दिन से शुरू होने वाले इस चंदन लेप की परंपरा ने हाल ही के वर्षों में 'चंदन यात्रा उत्सव' का रूप ले लिया है। अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) के लगभग सभी केंद्रों में विश्व भर में भगवान श्रीकृष्ण को चंदन लेप लगाया जाता है।

' भगवान को चंदन की शीतलता देकर एक प्रकार से भक्त उन्हें उनके तापों को हरने का निवेदन करते हैं।' पंजाबी बाग, इस्कॉन से केशव मुरारी भक्तों का पक्ष रखते हैं। पंजाबी बाग के राधा राधिकारमण मंदिर में आने वाले भक्तों की बढ़ती कतार भी उनकी बात की पुष्टि करती है। भक्त मंदिर में आकर चंदन घिसते हैं और कृष्ण बलराम, राधा राधिकारमण व अन्य विग्रहों को यह शीतलकारी लेप लगाया जाता है।

अक्षय तृतीया के दिन जब भगवान का चंदन लेप श्रृंगार किया गया तो उन्हें भंवरे व राधा-रानी को फूल का रूप दिया गया था। फूलों की पोशाकों में भगवान का दिव्य रूप इतना अद्भुत लग रहा था मानो वे अपने दिव्यधाम गोलोक से ही सीधे उतरे हों। मुरली मनोहर की इस दिव्य छटा को देखने के लिए सुबह मंगल भारती से जो तांता लगा वो रात मंदिर बंद होने तक जारी रहा।

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गौडीय संप्रदाय के प्रमुखतम आचार्य माधवेन्द्र पुरी ने भगवान के माधुर्य रस पर प्रकाश डाला है। चंदन यात्रा की परंपरा के प्रवर्तन में उनका बहुत योगदान है। गोवर्धन प्रवास के समय एक बार गोपाल ने स्वप्न में दर्शन देकर उन्हें प्रकट करने का अनुरोध किया। माधवेन्द्र पुरी ने गांव वालों की मदद से उस स्थान को खोदा और वहां मिले गोपाल जी के अर्चाविग्रह को गोवर्धन पर्वत पर स्थापित किया। कुछ दिन बाद गोपाल ने पुरी को कहा कि जमीन में बहुत समय तक रहने के कारण उनका शरीर जल रहा है। सो वे जगन्नाथ पुरी से चंदन लाकर उसके लेप से उनके शरीर का ताप कम करें।

करीब 2 हजार किमी. की यात्रा कर पुरी जगन्नाथ पुरी गए। ओडिशा व बंगाल की सीमा पर वे रेमुन्ना पहुंचे जहां गोपीनाथ जी का मंदिर था। रात को उस मंदिर में गोपीनाथ को खीर का प्रसाद लगाते देखकर पुरी ने सोचा कि अगर वे उस खीर को खा पाते तो वैसी ही खीर अपने गोपाल को भी खिलाते। ऐसा सोचकर वे रात को सो गए। उधर भगवान गोपीनाथ ने पुजारी को रात में स्वप्न में बताया कि मेरा एक भक्त यहां आया है, उसके लिए मैंने खीर चुराई है, उसे वह दे दो। भगवान की भक्त के लिए यह चोरी इतनी प्रसिद्ध हुई कि उनका नाम ही खीर-चोर गोपीनाथ पड़ गया।

अगले दिन माधवेन्द्र पुरी के जगन्नाथ पुरी पहुंचने से पहले ही यह खीर चोर की खबर चारों तरफ फैल गई। जगन्नाथ पुरी में माधवेन्द्र पुरी ने भगवान जगन्नाथ के पुजारी से मिलकर अपने गोपाल के लिए चंदन मांगा। पुजारी ने पुरी को महाराजा पुरी से मिलवा दिया और महाराजा ने अपने क्षेत्र की एक मन (करीब 37 किलो) विशेष चंदन लकड़ी अपने दो विश्वस्त अनुचरों के साथ पुरी को दिलवा दी।
जब पुरी गोपीनाथ मंदिर के पास पहुंचते तो गोपाल फिर उनके स्वप्न में आए और कहा कि वो चंदन गोपीनाथ को ही लगा दें क्योंकि गोपाल और गोपीनाथ एक ही हैं। माधवेन्द्र पुरी ने गोपाल के निर्देशानुसार चंदन गोपीनाथ को ही लगा दिया। तब से इस लीला के सम्मान में चंदन यात्रा उत्सव आरंभ हुआ।

इस्कॉन, पंजाबी बाग में यह चंदन यात्रा अक्षय तृतीया से अलग 21 दिन तक चलेगी। एकादशी (14 मई) व नृसिंह चतुर्दशी (16 मई) को भी मंदिर में अर्चा विग्रहों का पूर्ण रूप से चंदन श्रृंगार किया जाएगा। केशव मुरारी बताते हैं 'जो भी भगवान की इस लीला में उन्हें चंदन भेंट करता है, भगवान उसके भौतिक क्लेशों को मिटा देते हैं।' अगर आप भी भौतिक क्लेशों के ताप से पीड़ित हैं तो फिर भगवान के पास भी आपकी इस तकलीफ का इलाज है, बस आपके वहां पहुंचने तक की देर है।

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