कब-कब करें दान जानिए

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दान के लिए तीन समय होते हैं... 
 

(1) नित्य दान – जो प्राणी नित्य सुबह उठ कर अपने नित्या कर्म में देवता के ही एक स्वरूप उगते सूरज को जल भी अर्पित कर दे उसे ढेर सारा पुण्य मिलता है। उस समय जो स्नान करता है, देवता और पितर की पूजा करता है, अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, पानी, फल, फूल, कपड़े, पान, आभूषण, सोने का दान करता है, उसके फल असीम है। जो भी दोपहर में भोजन कि वस्तु दान करता है, वह भी बहुत से पुण्य इकट्ठा कर लेता है। इसलिए एक दिन के तीनों समय कुछ दान जरूर करना चाहिए। कोई भी दिन दान से मुक्त नहीं होना चाहिए। 
 
अगर कोई भी एक पखवाड़े या एक महीने के लिए कुछ भी भोजन दान नहीं करता है, तो मैं भी उसे उतने ही समय के लिए भूखा रखता हूं। मैं उसे एक ऐसी बीमारी में डाल देता हूं जिसमें कि वह कुछ भी आनंद नहीं ले सकते है। जो कुछ भी नहीं दान नहीं कर पाता है, उसे कई व्रत रखने चाहिए।
 
 (2) नैमित्तिक दान - नैमित्तिक दान के लिए कुछ विशेष नैमित्तिक अवसर और समय होते हैं। अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, संक्रांति, माघ, अषाढ़, वैशाख और कार्तिक पूर्णिमा, सोमवती अमावस्या, युग तिथि, गजच्छाया, अश्विन कृष्ण त्रयोदशी, व्यतिपात और वैध्रिती नामक योग, पिता की मृत्यु तिथि आदि को नैमित्तिक समय दान के लिए कहा जाता है। जो भी देवता के नाम से कुछ भी दान करता है उसे सारे सुख मिलते हैं।
 
(3) काम्या दान - जब एक दान व्रत और देवता के नाम पर कुछ इच्छा की पूर्ति के लिए किया जाता है, उसे दान के लिए काम्या समय कहा जाता है।

 
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