एक बार पार्वतीजी ने भगवान भोलेनाथ से प्रश्न किया, 'हे प्रभु, कुछ धनाढ्य व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो आर्थिक रूप से संपन्न होने पर भी अपने अर्थ का उपभोग नहीं कर पाते। इसका कारण क्या है?'
भोलेनाथ ने उत्तर में कहा, 'देवी, जो व्यक्ति अनिच्छा से किसी दबाव में दान देते हैं और दान धर्म के निर्वाह पालन में कंजूसी करते हैं तथा जिन्हें अपने दिए दान पर बाद में पश्चाताप होता है, वे अगले जन्म में अपनी संपदा का उपभोग नहीं कर पाते। वे केवल एक सैनिक की भाँति अपनी संपत्ति की रक्षा करने और उसकी वृद्धि में ही लगे रहते हैं।'
महेश्वर आगे कहते हैं, 'जो धनवान व्यक्ति दान और परोपकार के कार्य करने को तत्पर रहता है, वह अगले जन्म में अधिक संपत्ति का मालिक न होने पर भी सुखों का आनंदपूवर्क उपभोग करने का पात्र होता है।'
दरिद्रनारायण के कल्याण के लिए, देश के विकास के लिए, समाज के उत्थान के लिए या ऐसे ही किसी पावन उद्देश्य के लिए दान करें, पर अपनी क्षमतानुसार दान धर्म का पालन अवश्य करें।