किसी कर्म के प्रति हमारी दृष्टि यह होनी चाहिए कि हम उसे अच्छे से अच्छा करें। इन दिनों इस भावना का सर्वत्र अभाव दिखाई पड़ता है। कर्म को किसी भी प्रकार से निपटाने की भावना अहितकर है। कर्म में पूर्णता हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
आज जब हमारा देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा है, सही समय पर सही तरीके से कार्य करने की बड़ी आवश्यकता है। दुर्भाग्यवश आज ऐसा नहीं हो रहा। हम जो भी कर्म करें उसे पूर्णता के साथ करें। यही ईश्वर की सच्ची सेवा है।
कर्म करते हुए कई कठिनाइयां भी आती हैं, किंतु ऐसे समय में हमें शांत भाव से अपने भीतर देखना चाहिए। तब रास्ता निकल आएगा।
कर्म से पलायन करके कोई भी व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माण नहीं कर सकता। न वह जीवन में सफल हो सकता है और न सुखी रह सकता है। कर्म करते हुए हमारी दृष्टि वर्तमान पर होनी चाहिए।
न तो हमें अतीत में देखना है और न भविष्य की चिंता करनी है। अपने वर्तमान कर्म को संभालने से भविष्य अपने आप संवर जाएगा।
आज हिन्दुस्तान का आकाश शब्दों के शोर से भरा हुआ है, किंतु हमें केवल बड़ी-बड़ी बातें ही नहीं करनी चाहिए बल्कि अधिक से अधिक कर्म करना चाहिए। यही भाग्य निर्माण की सच्ची राह है। यही समय की पुकार भी है।
गीता में तीन प्रकार के कर्म बताए गए हैं- सात्विक, राजसी और तामसिक। तामसिक कर्मों से जीवन की अधोगति होती है और सात्विक कर्मों से सद्गति।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि निःस्वार्थ कर्म हमें व्यक्तिगत रोगों से भी छुटकारा देता है।