काशी में जगमगा उठे दीपक

लाखों दीपकों से जगमगा उठा वाराणसी

Webdunia
- अमितांशु पाठक
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देव दीपावली के ऐतिहासिक पर्व पर गुरुवार की शाम काशी के प्रसिद्ध गंगा घाट लाखों-लाख दीपकों की ज्योति से जगमगा उठे। गंगा तट पर लगभग तीन किलोमीटर की परिधि में अर्धचंद्राकार घाटों पर शाम होते ही काशी में देव-दीपावली पर्व पर दीपों की ज्योति में घाट नहा उठे। गंगा की धारा में भी बहते हुए अनगिनत दीप 'पृथ्वी पर उतरे स्वर्ग लोग' जैसा दृश्य उपस्थित कर रहे थे।

पिछले लगभग दो दशकों से पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र बन चुके देव दीपावली महोत्सव में शामिल होने और गंगा तट पर अनगिनत दीपों की रोशनी में नहाए समूचे दृश्य को आंखों में समा लेने के लिए लाखों लोगों की भीड़ घाटों पर उमड़ पड़ी थी। शाम होते ही दीपों के प्रज्ज्वलन का सिलसिला शुरू होते ही 'हर-हर महादेव गंगे' और धार्मिक गीत संगीत की ध्वनि से पूरा वातावरण सांस्कृतिक धार्मिक भावना से सराबोर हो गया।

धर्म-अध्यात्म और राष्ट्रीय भावना के इस पर्व पर काशी के प्रमुख घाटों पर उमड़ी देशी-विदेशी दर्शकों की भीड़ के कारण तिल रखने की भी जगह नहीं थी। लोगों ने शाम से ही घाटों पर बैठकर घंटों उस ऐतिहासिक क्षण की प्रतीक्षा की जब देव दीपावली के दीपों के प्रकाश से पूरा क्षेत्र आलौकित हो उठा।

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प्रचलित कथाओं के अनुसार काशी के राजा दिलेदास द्वारा काशी में देवताओं के प्रवेश पर लगाई गई रोक को कार्तिक पूर्णिमा पर हटा लिए जाने तथा त्रिपुर नामक राक्षस पर देवताओं की विजय के अवसर पर देव दीपावली देवताओं द्वारा मनाई गई थी।

देव दीपावली के अवसर पर मुख्य कार्यक्रम काशी के प्रमुख दशाश्वमेध घाट और राजेंद्र प्रसाद घाट पर महाआरती का आयोजन किया गया। दोनों ही स्थानों पर 21-21 आरती दीपों से गंगा की आरती संपन्न हुई। शहीदों की याद में दीपक जलाए गए और उन्हें सलामी दी गई। गंगा की धारा में हजारों नावों और बजड़ों (दो मंजिली बड़ी नावों) पर बैठे दर्शनार्थियों ने इस अद्भुत दृश्य को देखा।

वाराणसी के सभी होटल लॉज और धर्मशालाएं पहले से ही बुक थीं। नावों के लिए लोगों को हजारों रुपए की मल्लाहों द्वारा मुंह मांगी कीमत अदा करनी पड़ी। दशाश्वमेध घाट के अतिरिक्त काशी अर्धचंद्राकार रूप में विस्तृत प्रायः सभी घाटों पर दीप प्रज्जवलित किए गए। इस अवसर पर दीपों के माध्यम से पुरखों और पितरों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। पंचगंगा घाट स्थित हजारा दीप फलक पर 1001 दीप जलाए गए।

मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली की रात देवता पृथ्वी पर उतरते हैं। इसलए देवाराधना का यह पर्व आध्यात्मिक-धार्मिक लोगों की आस्था और आकर्षण का केंद्र बन गया। देव दीपावली पर इस बार गंगा घाटों के साथ ही गंगा के उस तार रेत पर भी लाखों दीपक जलाए गए। बीच में बहती गंगा में झिलमिलाती दीपों की छाया अविस्मरणीय दृश्य उपस्थित कर रही थी।

देव दीपावली पर रात्रि भर चलने वाले संगीत कार्यक्रमों का शुभारंभ सायंकाल दशाश्वमेध एवं राजेन्द्र प्रसाद घाट पर दीपदान एवं गंगा आरती के बाद प्रारंभ हुआ था।

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