चैत्र माह में श्रीगणेश की जत्रा

चैत्र के व्रतों का है विशेष महत्व

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भविष्य पुराण में कहा गया है कि चैत्र कृष्ण चतुर्थी को जो चिंतामण गणेश का पूजन-अर्चन, व्रत करते हैं उनको भगवान श्रीगणेश सारे संकटों से छुटकारा दिलाते है।

' यदा संकेशितो मत्यों नानादुःखैश्च दारुणैः, तदा कृष्णे चतुर्थ्यां वै पूजनीयो नणाधिपः।'

23 मार्च को मनाई गई संकष्ट चतुर्थी के इस व्रत में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है। अर्थात्‌ तृतीया के बाद जिस रात्रि में चंद्रमा का उदय हो रहा हो उसी दिन इस व्रत को करना चाहिए।

प्रातः स्नान करके दाहिने हाथ में रोली अक्षत पुष्प और जल लेकर यह संकल्प करते हुए गणेश के सम्मुख जल अर्पित करना चाहिए। 'वर्तमान में इससे पहले और आने वाले समय में हमें कोई भी कष्ट न हो इसी कारण हम संकष्टी चतुर्थी का व्रत कर रहे हैं।' हो सके तो संकल्प के बाद दिन भर मौन व्रत धारण करना चाहिए। शाम को पुनः स्नान कर गणेशजी की प्रतिमा के पास चौकी में धूप-दीप जलाकर गणेश जी का पूजन कर आरती करनी चाहिए। घी के दीपक से महाआरती एवं लड्डू का भोग लगाकर व्रत खोलना चाहिए।

चैत्र माह में होने वाली चिंतामण की जत्रा का पुराणोक्त महत्व है। बुधवार को चिंतामण की चैत्रीय जत्रा प्रारंभ हुई। इस वर्ष चार जत्रा है। इस अवसर पर लंबोदर का दरबार सजाया जाएगा, वहीं भक्त मोदक का प्रसाद भी मिलेगा।

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ज्योतिषाचार्य पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि चिंतामण की जत्रा प्राचीन है और प्रत्येक जत्रा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेखित है कि जो श्रद्घालु चैत्र की जत्रा में चिंतामण के दर्शन कर लेता है, उनकी समस्त मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

इस वर्ष होने वाली चार जत्रा में पहली 23 मार्च को संपन्न हुई, दूसरी 30 मार्च, तीसरी 6 अप्रैल और 13 अप्रैल को चिंतामण गणेश की विशेष जत्रा होगी। जहाँ बड़ी संख्या में श्रद्घालु श्रीगणेश के दर्शन के लिए पहुँचे, वहीं भगवान गणेश की जय-जयकार की अनुगूँज भी हुई। चमचमाती पगड़ी में चिंतामण गणेश सजे और मोगरे की कलियों से दरबार महक उठा। इसके अलावा पूरा मंदिर परिसर भी पुष्पों से आच्छादित किया गया।

जत्रा में चिंतामण के दर्शन करने का विशेष फल मिलता है। यही कारण है कि दूर-दूर से भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। माना जाता है कि भगवान चिंतामण गणेश की महिमा अपरंपार है। दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है। प्राचीन काल से ही चैत्र माह में जत्रा होती है।

इस अवसर पर गणेश को लड्‍डू और दूध का भोग लगाकर श्रद्घालुओं को दूध और लड्‍डूओं का प्रसाद वितरित किया जाता है।

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