जीवन में अहंकार का त्याग जरूरी

- अनामिका राजपूत

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अहंकार मनुष्य को गर्त में ले जाता है। अहंकार की रुचि दिखाने में होती है। प्रतिभा का प्रदर्शन भी होना चाहिए, परंतु यदि प्रतिभा में जुगनू-सी चमक हो तो अहंकार पैदा होगा और यदि सूर्य-सा प्रकाश हो तो प्रतिभा का निरहंकारी स्वरूप सामने आएगा।

इस बात को हम श्रीराम व रावण के व्यक्तित्व से भी समझ सकते हैं- रावण के अनुचित प्रस्ताव पर सीताजी ने कटु वचन में कहा था-'आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान' अर्थात श्रीराम सूर्य के समान हैं और रावण जुगनू है।

श्रीराम भी जुगनू पर टिप्पणी कर उसे दंश का प्रतीक बता चुके हैं। जुगनू की सारी सक्रियता अंधकार भरी रात में होती है। श्रीराम को सूर्य और रावण को जुगनू क्यों कहा गया है? प्रकाश दोनों में हैं, लेकिन अंतर उद्देश्य और उपयोग का है। जुगनू अपनी चमक से अपने ही व्यक्तित्व को चमकाता है। उसके प्रकाश से किसी को लाभ नहीं होता। सूर्य का प्रकाश सबके लिए है।

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सूर्य को खुली आँखों से देखना कठिन है, लेकिन इसमें भी एक संदेह है। वह कह रहा है कि मुझे क्या देख रहे हो, मेरे प्रकाश से लाभ उठाओ, जबकि अहंकारी कहता है कि मुझे देखो। ऐसे अहंकार से बचना हो तो बुद्धि पर ही न टिकें, बल्कि हृदय की ओर यात्रा करें।

बुद्धि के क्षेत्र में तर्क है, हृदय के स्थल में प्रेम और करुणा है। अहंकार यहीं से गलना शुरू होता है। अपनी प्रतिभा के बल पर आप कितने ही लोकप्रिय और मान्य क्यों न हो, पर अहंकार के रहते अशांत जरूर रहेंगे। अहं छोड़ने का एक आसान तरीका है मुस्कराना। अहंकार का त्याग करके मनुष्य ऊँचाई को प्राप्त कर सकता है। अतः मुस्कराइए, सबको खुशी पहुँचाइए और अहंकार को भूल जाइए।

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