पूजन का अंतकर्म आरती

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- डॉ. किरण रमण

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आरती के महत्व को विज्ञानसम्मत भी माना जाता है। आरती के द्वारा व्यक्ति की भावनाएँ तो पवित्र होती ही हैं, साथ ही आरती के दीये में जलने वाला गाय का घी तथा आरती के समय बजने वाला शंख वातावरण के हानिकारक कीटाणुओं को निर्मूल करता है। इसे आज का विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है।

आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है।

मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्‌ कृतं पूजनं हरेः ।
सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥

' हे शिवे! भगवान का मंत्ररहित एवं क्रिया (आवश्यक विधि-विधान) रहित पूजन होने पर भी आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।

साधारणतया पाँच बत्तियों वाले दीप से आरती की जाती है, जिसे 'पंचप्रदीप' कहा जाता है। इसके अलावा एक, सात अथवा विषम संख्या के अधिक दीप जलाकर भी आरती करने का विधान है।
  आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है। मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत्‌ कृतं पूजनं हरेः । सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे॥ भगवान का मंत्र-क्रिया रहित पूजन होने पर आरती कर लेने से पूर्णता आ जाती है।      


आरती कैसे करें
आरती में इष्ट-आराध्य के गुण-कीर्तन के अलावा उनका मंत्र भी सम्म्लित किया जाता है। भक्त मुख से तो भगवान का आरती के माध्यम से गुणगान करता है तथा हाथ में लिए दीपक से उनके मंत्र के अनुरूप आरती घुमाता है।

प्रत्येक देवता का अपना मंत्र होता है जिसके द्वारा उनका आह्वान किया जाता है। आरती करने वाले को दीपक इस प्रकार से घुमाना चाहिए कि उससे उसके इष्ट-देवता का मंत्र बन जाए।

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परंतु यदि मंत्र बड़ा हो तो कठिनाई होती है अतः हमारे ऋषियों ने मंत्र की जगह सिर्फ ' ॐ' की आकृति बनाने का भी विधान बताया है, क्योंकि ' ॐकार' सभी मंत्रों का बीज है इसलिए प्रत्येक मंत्र से पहले ' ॐकार' को जोड़ा जाता है अर्थात भक्त हाथ में लिए दीये को इस प्रकार घुमाए कि उससे हवा में मंत्र की आकृति बन जाए। इस प्रकार आरती में भगवान का गुण-कीर्तन एवं मंत्र-साधना दोनों का मिश्रण होने से 'सोने पे सुहागा' जैसा हो जाता है।

भक्त जिस देवता को अपना इष्ट मानता हो उनके मंत्र में जितने अक्षर हों उतनी बार आरती घुमानी चाहिए।

आरती के महत्व को विज्ञानसम्मत भी माना जाता है। आरती के द्वारा व्यक्ति की भावनाएँ तो पवित्र होती ही हैं, साथ ही आरती के दीये में जलने वाला गाय का घी तथा आरती के समय बजने वाला शंख वातावरण के हानिकारक कीटाणुओं को निर्मूल करता है। इसे आज का विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है।

सफलता प्रदायक दीप-अर्च न

दीपक के समक्ष निम्न श्लोक के वाचन से शीघ्र सफलता मिलती है :

दीपो ज्योतिः परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनादनः ।
दीपो हरतु मे पापं सांध्यदीप ! नमोऽस्तु ते ॥
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं सुखसम्पदम्‌ ।
शत्रु बुद्धिविनाशं च दीपज्योतिर्नमोस्तु ते ॥

दीपक की लौ की दिशा पूर्व की ओर रखने से आयुवृद्धि, पश्चिम की ओर दुःखवृद्धि, दक्षिण की ओर हानि और उत्तर की ओर रखने से धनलाभ होता है। लौ दीपक के मध्य लगाना शुभफलदायी है। इसी प्रकार दीपक के चारों ओर लौ प्रज्वलित करना भी शुभ है।

' विष्णुधर्मोत्तर पुराण' के अनुसार जो धूप, आरती को देखता है, वह अपनी कई पीढ़ियों का उद्धार करता है।
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