यह कैसी विडंबना?

- डॉ. सत्यनारायण गोयनका

Webdunia
ND

किसी ने मुझे 'विश्व हिन्दू परिषद' के अध्यक्ष अशोक सिंहलजी द्वारा लिखित पुस्तक 'श्रीमद्भगवतगीता ही आदि मनुस्मृति' की एक प्रति भेजी। पढ़कर मन आल्हादित हो उठा। आजकल की प्रचलित मनुस्मृति को उनके द्वारा अस्वीकृत किया गया, यही अपने आपमें बहुत महत्वपूर्ण थी।

सचमुच यह 'मनुस्मृति' ही एक पुस्तक है, जिसके कारण भारत के दो बड़े समुदायों में इतना बड़ा कटुतापूर्ण विग्रह उठ खड़ा हुआ, जिससे देश की बहुत बड़ी हानि हुई। इसके कारण ही भारत रत्न बाबासाहेब आम्बेडकर को इस पुस्तक को सार्वजनिक रूप से जलाने का निर्णय लेना पड़ा।

सिंहलजी द्वारा वर्तमान मनुस्मृति को नकारा जाना ही मेरे लिए उल्लास का कारण बना। उनकी उपरोक्त पुस्तक पढ़कर मेरे निकट संपर्क में आने वाले 'विश्व हिन्दू परिषद' के सहसचिव विपश्यी साधक बालकृष्ण नायक को मैंने जो पत्र लिखा, उसका मुख्य अंश इस प्रकार है : -

' लोक-प्रचलित 'मनुस्मृति' ने हमारे समाज में ऊँच-नीच का जो अमानुषिक, अनैतिक और अधार्मिक विभाजन का गर्हित विधान प्रस्तुत किया, उसे मन-ही-मन गलत समझते हुए भी अपने यहाँ का कोई नेता खुलकर इसका विरोध नहीं कर सका।

कम-से-कम ऐसा मेरे देखने में तो नहीं आया, बल्कि अपने यहाँ के एक शीर्षस्थ नेता ने तो इसे लोगों की भावना का प्रतीक बताया और इस प्रकार इसे न्यायपूर्ण और मान्य सिद्ध करना चाहा, जो कि मुझे अत्यंत अनुचित ही नहीं, दुःखद प्रतीत हुआ। अशोक सिंहलजी ने इस दिशा में सही कदम उठाया है और मौजूदा मनुस्मृति को गलत साबित कर, समाज-कल्याण का अत्यंत प्रशंसनीय काम किया है।

ND
किसी विशिष्ट जाति की माता की कोख से जन्म लेने मात्र से किसी व्यक्ति को उच्च और महान मान कर पूजें, भले वह तमोगुणी हो और निकृष्टकर्मी हो और किसी अन्य जाति की माँ की कोख से जन्म लेने मात्र से किसी व्यक्ति को नीच और अस्पृश्य मानें, भले वह सतोगुणी हो और उत्कृष्टकर्मी हो। यह विचारधारा हमारी गौरवमयी उदात्त मानवी संस्कृति की धवल विमल चादर पर ऐसी कलंक-कालिमा है, जो किसी भी राष्ट्रप्रेमी का सिर लज्जा से नीचा करती है। इस कलंक-कालिमा को दूर किए बिना हम अपना सिर ऊँचा नहीं उठा सकते।

यह कितनी अमानुषिक विचारधारा है कि किसी पालतू कुत्ते, बिल्ली, गाय, बैल और घोड़े आदि आदि पशु को अथवा तोता, मैना आदि पक्षी को छू कर, सहला कर, पुचकार कर, थपथपा कर हम अपवित्र नहीं हो जाते, परंतु नहा-धो कर स्वच्छ हुए और सदाचार का जीवन जीते हुए किसी मानवपुत्र को छूने से ही नहीं, उसकी छाया पड़ने से भी हम अपवित्र हो जाते हैं। इन पशु-पक्षियों के प्रवेश से हमारे मंदिर, देवालय अपवित्र नहीं हो जाते, परंतु एक स्वच्छ मानवपुत्र के प्रवेश से अपवित्र हो जाते हैं। यह कैसी विडंबनाभरी विकृत मानसिकता है। इसके रहते हम कैसे गर्व कर सकते हैं अपनी गौरवमयी उदात्त संस्कृति पर।

राष्ट्रहित के लिए उचित यही है कि आधुनिक काल में प्रचलित मनुस्मृति के प्रकाशन और वितरण पर रोक लगा दी जाए और अपने धर्म-ग्रंथों में जहाँ-जहाँ जात-पात को, ऊँच-नीच को, छूत-अछूत को बढ़ावा देने का वर्णन है अथवा जो भी अन्य अशोभनीय धर्मविरोधी वर्णन हैं, उन्हें क्षेपक कहकर निकाल दिया जाए। निकाल न सके तो आम जनता तक यह संदेश तो पहुँचे कि हमारे धर्मग्रंथों में यह जो अनुचित बातें आई हैं, वे सब क्षेपक हैं। हमें मान्य नहीं हैं।

सिंहलजी की पुस्तक पढ़कर मेरे में आह्लाद उमड़ा उसका कारण यही था कि हमारे देश के एक प्रतिष्ठित नेता द्वारा किसी गलत मान्यता को सुधारने की सही प्रकार की पहल तो हुई। मैं यह भी खूब समझता हूँ कि कुछ कट्टरपंथी लोग उनका विरोध भी करेंगे। ऐसे विरोध का सामना सिंहलजी जैसा सबल नेता ही कर सकता है।

समाज व राष्ट्र को जोड़े रखने के लिए इस प्रकार के अन्य कई लोकहितकारी कदम उठाने आवश्क है। इस दिशा में यह जो महत्वपूर्ण पहला कदम उठा है वह अत्यंत सराहनीय है। इस कल्याणकारी पहल को बढ़ावा मिले, इस निमित मेरी प्रबल मंगल कामना है।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

दुनिया में कितने मुस्लिम इस्लाम धर्म छोड़ रहे हैं?

ज्येष्ठ माह के 4 खास उपाय और उनके फायदे

नास्त्रेदमस ने हिंदू धर्म के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी?

भारत ने 7 जून तक नहीं किया पाकिस्तान का पूरा इलाज तो बढ़ सकती है मुश्‍किलें

क्या जून में भारत पर हमला करेगा पाकिस्तान, क्या कहते हैं ग्रह नक्षत्र

सभी देखें

धर्म संसार

शुक्र का मेष राशि में गोचर, जानिए 4 राशियों का राशिफल

Aaj Ka Rashifal: जानें 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा 30 मई का दिन (पढ़ें अपनी राशि)

POK कब बनेगा भारत का हिस्सा, जानिए सटीक भविष्यवाणी

30 मई 2025 : आपका जन्मदिन

30 मई 2025, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त