योग ही है जीवन का योग

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योग कहां नहीं है- योग सर्वत्र है। यह स्थापित सत्य है। योग का अर्थ जोड़ना है। गणित की शुरुआत भी योग से होती है। जिंदगी का गणित भी योग से ही शुरू होता है। 
 
एक से दो फिर दो से तीन-चार और इस प्रकार विस्तार, कोई सीमा ही नहीं है। एक से दो होना भी योग की ही बात है। जिसका जहां योग होता है वहां वह जुड़ता है। तभी तो कहा जाता है जोड़ियां स्वर्ग में तय होती हैं।

हम भी जोड़ियों को मिलाते हैं, जमाते हैं पर यह भूल जाते हैं कि हम तो माध्यम मात्र हैं। रामजी सबकी जोड़ियां मिलाते हैं। योग सर्वत्र है। 
 
जब योग होता है तब संयोग होता है। संयोग में जो योग है, अद्भुत है, सुखदायक है। इस तर्ज पर 'हमसे मिले तुम हो सजन, तुमसे मिले हम..।' जब ऐसा होता है तो यह भी होता है- 'दूरी न रहे कोई, तुम इतने करीब आओ/ मैं तुममें समा जाऊं, तुम मुझमें समा जाओ।' इस मिलन का आनंद आलौकिक है। 






 
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