समाज में पंथवाद के कारण बिखराव

जीना सिखाता हूँ, जैनत्व नहीं

Webdunia
- कौशल जैन
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जो साधु समाज को पंथवाद या परम्परावाद के नाम से तोड़ता है उसने न तो अहिंसा को समझा है न ही स्यादवाद को जाना है। कभी-कभी तो हँसी आती है कि वीतराग चोला पहनकर भी हम बच्चों की तरह लड़ते-लड़ाते हैं या तो उन्होंने महावीर को नहीं जाना है या वे जानना नहीं चाहते। बड़ा दुःख होता है कि पहले संत आते थे तो समाज जु़ड़ता था और आज संत आते हैं तो कई बार समाज टूटता है।

आज समाज में संगठन का अभाव है। आपस में इतना टकराव व मनमुटाव है कि समाज का ढाँचा खोखला होता जा रहा है। युवा वर्ग युवा संतों के सान्निध्य में फिर से अध्यात्म की ओर बढ़ रहा है। उक्त विचार मुनिश्री पुलकसागरजी महाराज ने व्यक्त किए। प्रस्तुत है चर्चा के कुछ अंश :

प्रश्न- बिन्दु-सिन्धु महामिलन से आपका तात्पर्य क्या है?
उत्तर- गुरु सिन्धु है और शिष्य बिन्दु, इन दोनों के मिलन को ही बिन्दु-सिन्धु मिलन कहा गया है। बिन्दु जैसे सिन्धु में मिलकर अपना अस्तित्व मिटा देती है वह स्वयं सिन्धु हो जाती है। यही बिंदू-सिंधु मिलन है।

प्रश्न- धर्म के प्रति आपका आकर्षण किस कारण बढ़ा कि आप धर्मगुरु हो गए?
उत्तर- परिवार में धार्मिक संस्कार बचपन से ही मिले। पहले जैन धर्म में मेरी उतनी आस्था नहीं थी, लेकिन आचार्य विद्यासागरजी ने मन को झकझोर दिया और मेरी जैन धर्म के प्रति आस्था बलवती हो गई।

प्रश्न - संत बनने की प्रेरणा किससे मिली।
उत्तर- मेरी सांसारिक जीवन की दादी जो वर्तमान में आर्यिका देवमती माताजी हैं उनसे प्रेरणा मिली। वर्तमान में मुनि जयसागरजी महाराज मेरे सांसारिक जीवन के बड़े भाई हैं तथा एक चाची भी आर्यिका माताजी है। परिवार के पाँच सदस्य सांसारिक जीवन त्याग कर संन्यासी जीवनयापन कर रहे हैं।

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प्रश्न- पंचकल्याणक अधिक खर्चीले होते जा रहे हैं। क्या हम खर्च में कटौती कर कमजोर तबके के उत्थान में ध्यान नहीं दे सकते?
उत्तर- अभी हमारे समाज की सोच कमजोर वर्ग के उत्थान की ओर कम, मंदिर निर्माण की ओर ज्यादा है। हम इसे बदलने का प्रयास कर रहे हैं। यह सच है कि सोच एक दिन में नहीं बदली जा सकती। पंचकल्याण का हम विरोध तो नहीं कर सकते, पर इतना जरूर कर सकते हैं कि खर्चों को कम कर पैसा समाजोत्थान में लगे।

प्रश्न- आपकी और तरुणसागरजी की प्रवचन शैली में काफी समानता है, इसका कारण क्या है?
उत्तर- मैंने जो भी सीखा है तरुणसागरजी के साथ सीखा है। मैं तीन साल तक उनके साथ रहा। मेरे दीक्षा गुरु पुष्पदंतसागरजी हैं तो शिक्षा गुरु तरुणसागरजी हैं।

प्रश्न- आपकी प्रेरणा से पुष्पगिरी में निर्मित हो रहे वात्सल्य धाम के पीछे उद्देश्य क्या है? क्या यह सिर्फ जैन वर्ग के लिए ही है ।
उत्तर- पुष्पगिरी तीर्थ पर जो वात्सल्य धाम निर्मित हो रहा है उसे निराश्रित धाम कहिए। जहाँ पर काँपते हाथों को लाठी, जवानों को सपने और जिनको कोख अच्छी नहीं मिली उनको गोद अच्छी मिलेगी। प्रमुखता जैन समाज को ही दी जाएगी। जैन समाज से मतलब कोई मजहब या सम्प्रदाय नहीं है। मामूली आचरण जिन्हें जैनाचरण कहा जाता है वह उन्हें दिया जाएगा।

प्रश्न- पुष्पगिरी में 2011 में होने वाले पंचकल्याण की रूपरेखा क्या है एवं इसके निर्माण के पीछे उद्देश्य क्या है?
उत्तर- पुष्पगिरी कोई धार्मिक आस्था मात्र का तीर्थ नहीं है। यह एक मानव कल्याणकारी योजना है और पूरे भारत में मानव उत्थान की 24 योजनाएँ यदि एक स्थान पर हैं तो वह केवल पुष्पगिरी तीर्थ पर हैं। जैसा कि मैंने कहा- जैन समाज आत्मकल्याण की ज्यादा सोचता है मानव कल्याण की कम। उसी सोच को बदलने का विनम्र प्रयास है यह पुष्पगिरी तीर्थ।

प्रश्न- आप समाज को कोई संदेश देना चाहेंगे।
उत्तर- हर समाज में संगठन का अभाव है। समाज में आपस में इतना टकराव व मनमुटाव है कि समाज का ढाँचा खोखला हो चुका है। एकता, समन्वय, सहिष्णुता का अभाव। मेरा प्रयास यही है कि मैं ऐसे समाज का निर्माण करूँ जहाँ जातिवाद, पंथवाद और असमानता से मुक्ति मिले। हमने केवल जीना सिखा है जैनत्व से नाता तोड़ लिया है। महावीर स्वामी कहते हैं- जियो और जीने दो।

प्रश्न- आज का युवा भ्रमित क्यों हो रहा है?
उत्तर- युवा या कोई भी व्यक्ति जो भ्रमित हो रहा है उसके पीछे उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि प्रमुख कारण है। उसका उठना- बैठना किसके साथ है, वह कहाँ आ- जा रहा है, यदि इन बातों पर शुरू से ही ध्यान दें तो शायद उसे हम डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बना सकते हैं नहीं तो लादेन तो है ही। वैसे अब युवाओं में भी अध्यात्म के प्रति रुझान बढ़ा है।

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