कलयुग के भगवान का निवास स्थान

शबरीमाला श्री धर्मषष्ठ मंदिर

Webdunia
WDWD
- शशिमोह न

शबरीमाला मंदिर...प्रभु अयप्पा (धर्म षष्ठ) का निवास स्थान माना जाता है। इस विश्वविख्यात मंदिर की महिमा का जितना गुणगान किया जाए, कम ही है। यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। माना जाता है की मक्का-मदीना के बाद यह विश्व का दूसरा बड़ा तीर्थ स्थान है, जहाँ करोड़ों की संख्या में तीर्थयात्री दर्शन के लिए आते हैं।

यदि पिछले साल के आँकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पिछले साल नवंबर से जनवरी माह के बीच ही पाँच करोड़ तीर्थयात्रियों ने इस मंदिर में प्रभु अयप्पा के दर्शन किए।

जन श्रुति
प्रभु अयप्पा को भगवान शिव और विष्णु का पुत्र माना जाता है। अनुश्रुति है कि भगवान विष्णु के मोहनी अवतार में उनके रूप पर भोलेनाथ आसक्त हो गए थे। उन्हीं के रास से भगवान अयप्पा का जन्म हुआ...जिनकी विद्वत्ता औऱ पराक्रम अद्धितीय माने जाते हैं।
भगवान अयप्पा का यह धाम केरल और तमिलनाडु की सीमा पर पश्चिमी घाट की पहाड़ियों पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थान का दर्जा मिला हुआ है। पूणकवन के नाम से प्रसिद्ध १८ पहाड़ियों के बीच स्थित यह पवित्र धाम चारों ओर से घने वन और छोटी-बड़ी पहाडि़यों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि महर्षि परशुराम ने शबरीमाला पर भगवान अयप्पा की साधना के लिए उनकी मूर्ति स्थापित की थी।


मंडल पूजा ( 15 नवंबर) और मकराविलक्कु ( 14 जनवरी) ये शबरीमाला के प्रमुख उत्सव हैं। मलयालम पंचांग (माह) के पहले पाँच दिनों और विशु माह (अप्रैल महीने) में ही इस मंदिर के पट खोले जाते हैं अन्यथा सालभर मंदिर के पट बंद ही रहते हैं।

Bhika SharmaWD
उत्सवों के दौरान भक्त घी से प्रभु अयप्पा की मूर्ति का अभिषेक करते हैं। इसका उद्देश्य परमात्मा से जीवात्मा का मिलन होता है। यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को ‘स्वामी तत्वमस ी ’ के नाम से संबोधित किया जाता है। इस संबोधन का अर्थ संस्कृत सूक्त ‘अहं ब्रह्मआस्म ि ’ से काफी मिलता है। अर्थात यहाँ आने वाले भक्त स्वयं को भगवान का अभिन्न अंग मानते हैं।

शबरीमाला की सर्वाधिक महत्वपू्र्ण पूजा है ‘मकराविल क’ । इस पूजा के अंत में श्रद्धालु पहाड़ी के शीर्ष पर आसमान में फैली पवित्र ज्योति ‘मकरज्योत ि ’ के दर्शन करते हैं।

WDWD
यहाँ आने वाले भक्तों को कुछ खास बातों का विशेष ख्याल रखना होता है। जैसे मंडलपूजा के समय 41 दिनों तक विभिन्न परहेज रखने होते हैं। इस समय श्रद्धालुओं को तामसिक प्रवृत्तियों और मांसाहार से बचना होता है।

यहाँ आने वाले तीर्थयात्री मुख्यतः जत्थे में आते हैं जिनका नेतृत्व एक खास व्यक्ति करता है। इस व्यक्ति विशेष के हाथों में कपड़ों की एक पोटली होती है जिसे ‘इरामुडी केट्ट ू ’ कहा जाता है। बाकी हिन्दू मंदिरों से अलग यहाँ पर सभी जाति के श्रद्धालु आ सकते हैं, पर 10 से 50 आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश निषेध है।

WDWD
इतना ही नहीं, इस मंदिर के पास एक ऐसा स्थान है जो तत्कालीन मुस्लिम धर्मानुयायी ववर (वावरउन्डा) को समर्पित है, जो प्रभु अयप्पा के सहयोगी माने जाते थे। इस मंदिर की इस खास विशेषता के कारण यह मंदिर विभिन्न धर्मानुयायियों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है।

कब जाएँ-
इस तीर्थस्थान में जाने के लिए नवंबर से जनवरी का समय सबसे उपयुक्त है। मंदिर के अनुयायी यहाँ 41 दिन कड़ी तपस्या करते हैं। तपस्या के दौरान वे मांसाहार, काम और तामसिक प्रवृत्तियों से बचते हुए प्रभु आराधना में अपने को लीन कर देते हैं। इस समयावधि में स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है। ये तीर्थयात्री अपने साथ इरमू टिकटी नामक दो खाने वाला झोला रखे रहते हैं, जिसमें घी और पूजा की सामग्री रखी जाती है।

WDWD
मुख्य समयावधि नवंबर से जनवरी के मध्य का समय होता है। मंदिर की सारी व्यवस्था ट्रेवनकोर देवासवम बोर्ड करता है। यहाँ पर निवास के लिए कई होटल और धर्मशालाएँ हैं, लेकिन इनमें काफी पहले से बुकिंग करानी होती है।


कैसे पहुँचें शबरीमाला-
यहाँ पहुँचने के लिए आप पंपा तक किसी भी वाहन से जा सकते हैं। पंपा के बाद लगभग चार किलोमीटर तक पैदल चढ़ाई चढ़नी होती है। यह पक्का रास्ता है जिसके आस-पास विश्रामशालाएँ, दवाई और मूलभूत वस्तुओं की छोटी-छोटी दुकानें हैं। इसके साथ ही ध्यान रखें- बीमार और अस्वस्थ लोगों को इस चढ़ाई की अनुमति नहीं है।

WDWD
शबरीमाला के पास के रेलवे स्टेशन हैं कोट्टयम और चेंगान्नूर (93 किलोमीटर)। सभी ट्रेंने यहाँ पर त्रिवेंद्रम से एरनाकुलम के रास्ते होकर आती हैं। तिरुअनंतपुरम के आंतरिक हवाईअड्डे से शबरीमाला कुल 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। साथ ही कोच्चि के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से इसकी दूरी 200 किलोमीटर की है।

इस मंदिर के प्रवेश की समयावधि में तीर्थयात्री यहाँ पर विभिन्न साधनों से चालक्यम गाँव से होकर या इरुमेली के घने जंगलों के बीच से होकर भी आ सकते हैं, जिसमें उन्हें करीमाला की पहाड़ियों की पैदल यात्रा (करीब 50 किलोमीटर) करनी पड़ सकती है।
Show comments

Dussehra ke Upay: दशहरे पर करें रात में ये 5 अचूक उपाय और सभी समस्याओं से मुक्ति पाएं

Navratri Special : उत्तराखंड के इस मंदिर में छिपे हैं अनोखे चुम्बकीय रहस्य, वैज्ञानिक भी नहीं खोज पाए हैं कारण

Navratri 2024: कौन से हैं माता के सोलह श्रृंगार, जानिए हर श्रृंगार का क्या है महत्व

Diwali date 2024: विभिन्न पंचांग, पंडित और ज्योतिषी क्या कहते हैं दिवाली की तारीख 31 अक्टूबर या 1 नवंबर 2024 को लेकर?

Shardiya navratri Sandhi puja: शारदीय नवरात्रि में संधि पूजा कब होगी, क्या है इसका महत्व, मुहूर्त और समय

Weekly Horoscope October 2024: इस हफ्ते किन राशियों का चमकेगा भाग्य, जानें 07 से 13 अक्टूबर का साप्ताहिक राशिफल

Weekly Panchang 2024: साप्ताहिक कैलेंडर हिन्दी में, जानें 07 से 13 अक्टूबर के शुभ मुहूर्त

विजयादशमी पर सोना पत्ती क्यों बांटी जाती है? जानें इस अनोखी परंपरा का महत्व

Aaj Ka Rashifal: 06 अक्टूबर का राशिफल, जानें आज क्या कहती है आपकी राशि

Navratri chaturthi devi Kushmanda: शारदीय नवरात्रि की चतुर्थी की देवी कूष्मांडा की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और शुभ मुहूर्त