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नासिक का कालाराम मंदिर

WD Feature Desk
-अभिनय कुलकर्णी
दक्षिण काशी के नासिक में किसी समय प्रभु रामचंद्र का प्रवास रहा था। प्रभु श्रीराम ने जहाँ-जहाँ पग धरे वह भूमि पवित्र हो गई। उनके पदचिह्नों के रूप में अनेक मंदिर आज भी नासिक में नजर आते हैं। धर्मयात्रा की कड़ी में इस बार हम आपको लेकर चलते हैं नासिक के पंचवटी में स्थापित 'कालाराम' मंदिर।
 
यूँ तो नासिक में प्रभु श्रीराम के कई मंदिर हैं। कालाराम, गोराराम, मुठे का राम, यहाँ तक कि महिलाओं के लिए विशेषराम आदि, परंतु इन सभी में 'कालाराम' की अपनी ही विशेषता है। ये मंदिर ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्व रखता ही है, साथ ही इसकी बनावट में ‍इस तरह का आकर्षण है कि जो मंत्रमुग्ध कर देता है।
 
पेशवा के सरदार रंगराव ओढ़ेकर द्वारा यह मंदिर 1782 में काले पाषाणों से नागर शैली में निर्मित कराया गया था। मंदिर में विराजित प्रभु श्रीराम की मूर्ति भी काले पाषाण से बनी हुई है, इसलिए इसे 'कालाराम' कहा जाता है। प्रभु श्रीराम के साथ ही यहाँ सीता व लक्ष्मण की भी आकर्षक प्रतिमाएँ विराजमान हैं।पूरा मंदिर 74 मीटर लंबा और 32 मीटर चौड़ा है। मंदिर की चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं। इस मंदिर के कलश तक की ऊँचाई 69 फीट है तथा कलश 32 टन शुद्ध सोने से निर्मित किया हुआ है। पूर्व महाद्वार से प्रवेश करने पर भव्य सभामंडप नजर आता है, जिसकी ऊँचाई 12 फीट होने के साथ यहाँ चालीस खंभे है। यहाँ विराजमान श्री हनुमानजी मंदिर में वे प्रभु श्रीराम के चरणों की ओर देखते हुए प्रतीत होते हैं।
कहा जाता है कि ये मंदिर पर्णकुटी के स्थान पर बनाया गया है, जहाँ पूर्व में नाथपंथी साधु निवास करते थे। कहते हैं कि साधुओं को अरुणा-वरुणा नदियों पर प्रभु की मूर्ति प्राप्त हुई और उन्होंने इसे लकड़ी के मंदिर में विराजित किया था। तत्पश्चात 1780 में माधवराव पेशवा की मातोश्री गोपिकाबाई की सूचना पर इस मंदिर का निर्माण करवाया गया। उस काल के दौरान मंदिर निर्माण में 23 लाख का खर्च अनुमानित बताया जाता है।
 
मंदिर परिसर में सीता गुफा है। कहा जाता है कि माता सीता ने यहाँ बैठकर साधना की थी। मंदिर के नजदीक से गोदावरी नदी बहती है, जहाँ प्रसिद्ध रामकुंड है। मंदिर की भव्य छटा देखते ही बनती है। धर्मयात्रा में इस बार की यात्रा कैसी लगी, हमें जरूर बताएँ।
 

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