आस्था औऱ अंधविश्वास की इस कड़ी में हम आपको दिखा रहे हैं मालवा के आदिवासी अंचल की एक अनूठी प्रथा चूल। होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी पर इस परंपरा को मालवा अंचल के आदिवासी क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें-
सदियों से चली आ रही इस परंपरा में सबसे पहले महिलाएँ बड़ के पेड़ की पूजा करती हैं। इसके उपरांत एक-एक कर धधकते हुए अंगारों पर चलती हैं। सबसे पहले ये महिलाएँ सती देवी और गल देवता से मनौती माँगती हैं। मनौती पूरी हो जाने के बाद लगातार पाँच साल तक चूल पर चलकर देवी के प्रति आभार व्यक्त करती हैं।
महिलाओं द्वारा चूल फिराने की इस प्रथा के पीछे एक किंवदंती है। कहते हैं कि राजा दक्ष ने माँ सती का अनादर किया था। इस कारण माता सती अग्निकुंड में कूद गई थीं। यहाँ भी महिलाएँ सती देवी से मन्नत माँगने हेतु उन्हें याद करने के लिए चूल पर चलती हैं।
परंपरा के तहत तीन से चार फुट लंबे और एक फुट गहरे गड्ढे में धधकते हुए अंगारे रखे जाते हैं। मन्नतधारियों के निकलने से पहले यहाँ घी डालकर अग्नि को अधिक ज्वलनशील बनाया जाता है। इसके बाद शुरू होता है मन्नतधारियों का इस अग्निपथ से गुजरने का सिलसिला... जो धुलेंडी के दिन सुबह से शुरू होता है और सूरज ढलने तक चलता रहता है।
ऐसी ही एक महिला सोना ने वेबदुनिया को बताया कि उन्होंने अपने बड़े भाई की शादी और बच्चे के लिए मन्नत माँगी थी। भैया की शादी हो गई औऱ इस साल उन्हें बेटा हुआ है।
मन्नत पूरी हो गई अब मैं मान उतारने आई हूँ। मान उतारने का मेरा यह पहला साल है। इसके बाद मैं अगले चार साल तक लगातार चूल पर चलूँगी। यहाँ आई महिलाओं को विश्वास था कि यहाँ माँगी मन्नत जरूर पूरी होती है। पिछले तीन साल से लगातार चूल पर चल रही शांतिबाई ने हमें बताया कि चूल के जलते अंगारों से भी इनके पैर नहीं जलते हैं। किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं होती है ।
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महिलाओं द्वारा चूल फिराने की इस प्रथा के पीछे एक किंवदंती है। कहते हैं कि राजा दक्ष ने माँ सती का अनादर किया था। इस कारण माता सती अग्निकुंड में कूद गई थीं।
यहाँ भी महिलाएँ सती देवी से मन्नत माँगने हेतु उन्हें याद करने के लिए चूल पर चलती हैं। आप इस परंपरा के बारे में क्या सोचते हैं हमें बताइएगा।