- श्रुति अग्रवा ल आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हमारी मंजिल थी उज्जैन के पास का रलायता गाँव। हमने सुना था इस गाँव में रहने वाली एक बुढ़िया कैसी भी पथरी हो, मुँह से निकाल देती है। इस बात को खँगालने के लिए हमने अपना सफर शुरू किया। जैसे ही हमने उज्जैन के बाहर बने कालियादेह पैलेस को पार किया, सोचा किसी से रलायता गाँव का रास्ता पूछ लिया जाए।
जल्द ही हमें एक गड़रिया दिखा। जैसे ही हमने गडरिए से रलायता गाँव का पता पूछा। गड़रिए ने हमसे ही उल्टा सवाल किया- क्या आपको पथरी निकलवानी है। हमने कहा हाँ, कुछ ऐसा ही समझें। उसने कहा- फिर भटकते क्यों हैं, सामने की सड़क पकड़ लें। रास्ते में जो भी मिले, उससे आगे का रास्ता पूछ लेना। ठीक जगह पहुँच जाएँगे।
हमने उसकी सलाह पर अमल किया और कुछ देर में ही हम सीताबाई की ड्योढ़ी पर थे। यहाँ पहुँचने से पहले हमने अपने ड्राइवर को समझा दिया था कि उसे भी मरीज बनकर सीताबई से मिलना होगा। यहाँ पहुँचते ही हमने देखा दुर्गा मंदिर के अहाते पर एक वृद्ध स्त्री को भीड़ ने घेर रखा था। पास जाने पर पता चला, यही सीताबाई हैं, जो मुँह से पथरी निकाल लेती हैं।
Shruti Agrawal
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और यह भीड़ उनसे इलाज करवाने वालों की थी। सीताबाई तल्लीनता से अपने काम में लगी थीं। वे एक व्यक्ति को नीचे लेटातीं। पूछतीं कहाँ दर्द हो रहा है। फिर दर्द वाले स्थान को चूसने लगतीं। कुछ पल बाद ही वे सामने बैठे लड़के को अपने मुँह से पथरी निकालकर दे देतीं।
यह सिलसिला लगातार काफी देर तक चलता रहा। जैसे ही उन्हें कुछ फुरसत मिली, हमने सवालों की झड़ी शुरू कर दी। सीताबाई ने बताया मैं पिछले 18 सालों से पथरी निकालने का काम कर रही हूँ। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहने लगीं मैं हवा हूँ, मेरे 52 स्थान हैं। हर जगह मैं अलग-अलग काम करती हूँ। इलाज का मूलमंत्र माँ पर विश्वास है। यदि विश्वास पक्का हो तो इलाज शर्तिया है, वरना कुछ नहीं हो सकता।यह कहते ही वे वापस अपने मरीजों के इलाज में लग गईं।
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एक तरफ सीताबाई तेजी से पथरी निकालने का काम कर रही थीं। वहीं दूसरी तरफ बैठा पंडा पीड़ित लोगों को पालक, टमाटर, बैंगन न खाने की हिदायत दे रहा था। वहीं दवाई के रूप में तुलसी के पत्ते, बिल्वपत्र का चूर्ण दिया जा रहा था, जिसे तीन दिन तक शाम को खाने की सलाह दी जा रही थी। सीताबाई से इलाज कराने के लिए राजस्थान, कानपुर, ग्वालियर आदि अलग-अलग जगह से लोग आए थे।
जयपुर से आए एके मौरे के साथ 75 वर्षीय श्रीमती भगवानदेवी किडनी की पथरी का इलाज करवाने आई थीं। उन्होंने जयपुर में सीताबाई के बारे में सुना था। वे कहती हैं अब इस उमर में ऑपरेशन तो करा नहीं सकती हूँ, इसलिए यहाँ आई हूँ । क्या महसूस हुआ, पूछने पर वे कहती हैं अजीब-सा खिंचाव लग रहा था। दर्द नहीं हुआ। महीनेभर के अंदर यहाँ वापस आने के लिए कहा है। उसके बाद सोनोग्राफी करवाने के लिए कहा गया है। देखते हैं क्या होता है।
भगवानदेवी की तरह काफी लोग थे, जो पहली बार यहाँ आए थे। तो कुछ का दूसरा दौरा था। दूसरी बार आने वाले लोगों का कहना था, पथरी के दर्द में काफी कमी आई है। ऐसे ही एक व्यक्ति मनोज का कहना था कि वे ग्वालियर जाने के बाद अल्ट्रासाउंड कराकर देखेंगे कि पथरी खत्म हुई या नहीं।
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यहाँ हम लोगों से बातचीत कर रहे थे। वहाँ सीताबाई लगातार पथरी निकालने का काम जारी रखे हुई थीं। इस बीच हमारे ड्राइवर का नंबर आ गया। उसने सीताबाई को बताया कि उसे पेट में दर्द होता है शायद पथरी है। सीता बाई ने उसका पेट अपने अंदाज में चूसा और एकदम बोल दिया कि तुम्हें पथरी नहीं है। शायद गैस की समस्या होगी खाना समय पर खाया करों। हमारे ड्राइवर को पथरी नहीं है यह उन्होंने कैसे बताया, हमें नहीं पता।
अब हम सीताबाई से बातचीत होने का इंतजार करने लगे, लेकिन ये क्या जैसे ही आखिरी मरीज का इलाज किया, सीताबाई की शख्सियत ही बदल गई। कुछ देर पहले जो महिला हमसे गुस्से में बात कर रही थी, वह गाँव की आम दादी-नानी की तरह बातें करने लगी। हमने उनसे पूछा वे यह सब कब से कर रही हैं, तो उन्होंने अजीब-सा जवाब दिया मैं क्या कर रही हूँ, करती तो देवी माँ हैं। मैं कैसे इलाज करती हूँ, इसके बारे में तो मैं भी नहीं जानती। बस एक शक्ति है, जो हमसे ये सब काम करवा रही है। यह कहकर वे अनाज साफ करने बैठ गईं।
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यहाँ इलाज करा चुके कई लोगों का दावा है कि उनकी पथरी खत्म हो चुकी है, लेकिन डॉक्टरों को इस बारे में भरोसा नहीं है। जब हमने इस संबंध में जनरल सर्जन डॉ. अपूर्व चौधरी से बात की तो उन्होंने बताया पथरी यदि बारीक हुई तो वह पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाएगी, अन्यथा पूरा इलाज ही उसे दूर कर सकता है। मुँह से पथरी निकालना! ऐसा हो ही नहीं सकता। हो सकता है, कोई पहले से ही पत्थर मुँह में रखे और पथरी निकालने का दावा करे।