क्या कहता है चेहरा?

के. अय्यानाथन
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हम दिनभर में सैकड़ों लोगों से मिलते हैं...हजारों अनजान चेहरे भी हमारी आँखों के सामने से गुजरते हैं। इनमें से कुछ सुंदर होते हैं, तो कुछ थोड़े भद्दे। कुछ का आकार गोल होता है तो कुछ त्रिकोण के समान होते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या अलग-अलग तरह के ये चेहरे कुछ कहते हैं? क्या हम किसी शख्स का चेहरा पढ़कर पता लगा सकते हैं कि उसका चरित्र कैसा है, वह कैसा व्यवहार करता है?

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शायद हाँ...इसे लेकर दुनियाभर में विभिन्न मान्यताएँ प्रचलित हैं। उदाहरण के तौर पर इन चित्रों को देखें। ये चित्र फ्रांस के कलाकार चार्ल्स ले बर्न ने बनाए हैं। चार्ल्स का जन्म 17वीं सदी (सन् 1619 से 1690, राजा लुईस 14वें की रायल कोर्ट के पहले चित्रकार) में हुआ था। हमने ये चित्र तमिलनाडु के तंजौर की सारावाथी महल लाइब्रेरी में देखे। चार्ल्स ने कुछ चेहरों के बीच जानवरों के चेहरों की आकृतियाँ भी उकेरी हैं।

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चार्ल्स ने इंसानी चेहरों और उससे झलकने वाले चरित्र का अध्ययन किया था। उनके अनुसार, हर व्यक्ति का चेहरा किसी पशु या पक्षी के चेहरे से मेल खाता है, और उस पशु या पक्षी के व्यवहारिक गुण भी उसमें दिखाई देते हैं। चार्ल्स के अध्ययन और उनकी बताई बातों को फीजियोग्नामी में महत्वपूर्ण स्थान हासिल है। फीजियोग्नामी वह कला है, जिसके तहत किसी व्यक्ति का चेहरा और हावभाव देखकर उसकी आदतों तथा व्यवहार के बारे में पता लगाया जाता है।

मान लीजिए कि किसी का चेहरा कुत्ते के चेहरे से मिलता-जुलता है, तो क्या हम अंदाज लगा सकते हैं कि उसका चरित्र कुत्ते जैसा होगा और क्या यह कह सकते हैं कि वह चिल्लाते समय कुत्ते जैसा लगता है? या क्या हम यह अंदाज लगा सकते हैं कि वह कुत्ते के समान अपने मालिक का वफादार होगा? नहीं...इस तरह निष्कर्ष निकालना बहुत ही अवैज्ञानिक होगा।

लेकिन हमारे देश में एक पद्धति है, जिसके माध्यम से हम किसी का चेहरा पढ़कर उसकी प्रकृति और व्यवहार के बारे में पता लगा सकते हैं। इस पद्धति या कला को 'समुथीरिका लक्षणम' कहा जाता है। क्या आपने इस बारे में सुना है? खास बात यह है कि इसे काफी लंबे समय से उपयोग किया जा रहा है। ज्योतिषी इसी के माध्यम से लोगों के चेहरे पढ़ते हैं और उनका भाग्य बताते हैं। यहाँ तक कि इससे इंसान के जातक का भी पता लगाया जा सकता है।

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हमने हमारे ज्योतिषी केपी विद्याधरन को सबसे पहले चार्ल्स के चित्र दिखाए और फिर 'फीजियोग्नामी' के साथ ही 'समुथीरिका लक्षणम' के बारे में बताया तो उनका कहना था कि 'हम आम जीवन में कुछ ऐसे लोग देखते हैं, जिनकी आँखें हाथी की आँखों की तरह छोटी होती हैं, लेकिन हाथी की ही तरह उनकी दृष्टि बहुत तीव्र रहती है। कुछ लोगों की आँखें बिल्ली की आँखों से मिलती है। मैंने देखा है कि ऐसे लोग बिल्ली के समान ही अपना काम बड़ी सावधानी के साथ शुरू करते हैं और उतनी ही सफाई से पूरा करते हैं।'

' कुछ लोगों की आँखें घोड़े की आँखों के समान होती हैं। ये लोग घोड़े की तरह बिना थके बहुत सारा काम करते हैं। कुछ व्यक्तियों की आँखें गौरैया की आँखों जैसी लगती हैं। ये लोग गौरैया की तरह कर्मठता से काम करते हैं और इस पक्षी की तरह भविष्य के लिए बचत करते हुए चलते हैं। ऐसे लोग मेहनत से पैसा जमा करेंगे, अपनी बहनों की शादी करेंगे और कहेंगे कि हमने बहुत बड़ी जिम्मेदारी पूरी कर ली।’

इस तरह हमने देखा कि किस प्रकार इंसानों के चेहरे किसी पशु या पक्षी से मिलते हैं और उनमें उस पशु या पक्षी के गुण होते हैं, लेकिन क्या हम इसे जानकारी या ज्ञान हासिल करने का सर्वश्रेष्ठ साधन मान सकते हैं? यह बड़ी गरमागरम बहस हो सकती है। किसी के चरित्र का निर्धारण केवल चेहरा पढ़कर नहीं किया जा सकता है। क्या आप इसमें विश्वास करते हैं? हमें जरूर लिखें।
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