पानी को खोजने की अनोखी विद्या

Webdunia
सोमवार, 16 जून 2008 (20:48 IST)
( वेबदुनिया ब्यूर ो)
WDWD
क्या लकड़ी या नारियल की सहायता से भू-जलस्तर का पता लगाया जा सकता है? आस्था और अंधविश्वास की इस कढ़ी में हम ढूँढ रहे है इसी सवाल का जवाब। जब हमें पता चला कि इंदौर में एक शख्स के पास ऐसी अनोखी विद्या है, जिससे वह जमीन में पानी के स्तर का पता लगा सकता है तो हम चल पड़े उसकी खोज में......

हमारी तलाश खत्म हुई गंगा नारायण शर्मा के पास जाकर...शर्माजी का दावा है कि वह अपने यंत्रों, लकड़ी और नारियल की सहायता से जमीन के किस भाग में अधिक पानी है और किस भाग में कम इसका पता लगा सकते हैं। जमीन में कम से कम गहराई पर पानी की उपलब्धता ढूँढने के लिए शर्मा एक अँगरेजी के Y अक्षर के आकार की लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं।

लकड़ी के दोनों छोरों को हथेली के बीच रखकर वह उस स्थान के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। जिस स्थान पर लकड़ी खुद-ब-खुद जोर-जोर से घूमने लगती है वह उस स्थान पर वह पानी होने का दावा करते हैं। शर्मा इसे डाउजिंग टेकनिक कहते हैं। और इसके जरिए वे 80 प्रतिशत सफलता प्राप्त होने का दावा भी करते हैं।

भू-जल वैज्ञानिक गंगा नारायण शर्मा कहते हैं कि इसका इस्तेमाल चिकित्सा के क्षेत्र में, भूकंप से भूमिगत हुई नदियों का पता लगाने और लैंड माइन का पता लगाने में भी किया जा सकता है। उनका कहना है कि वर्तमान स्थिति में भू-जल स्तर करीब 700 फुट गहराई तक चला गया है। जिसके चलते जल स्त्रोतों का पता लगाने के लिए यह तकनीक कारगर साबित होती है।

लकड़ी की स्टीक के अलावा इस कार्य को अंजाम देने के लिए वे नारियल का भी इस्तेमाल किया करते हैं। इस विधि में नारियल को हथेली पर सीधा रखा जाता है और जहाँ जमीन में पानी होने के संभावना हो वहाँ नारियल अपने आप खड़ा हो जाता है। और फिर उसी स्थल को जल प्राप्ति का पर्याप्त स्त्रोत मान लिया जाता है।

यहाँ के बिल्डर शर्मा की इस विद्या का उपयोग कर ही बोरवेल खुदवाने के कार्य की शुरुवात करते हैं, और उनका विश्वास है कि इस विद्या का उपयोग कर बोरवेल खोदने से समय और पैसे दोनों की बचत होती है। हालाँकी शर्मा जी का दावा हमेशा सही ही निकलता है यह कहना भी कठिन होगा। कई बार 150-200 फीट पर पानी निकलने का दावा 400 फीट तक भी पूरा होता नहीं दिखता है। फिर भी लोगों की इस विद्या से जुड़ी आस्था उन्हें बार-बार शर्मा तक ले आती है।

शर्मा की इस तकनीकी विद्या का इस्तेमाल कर बोरिंग खुदवा रहे रोहित खत्री का कहना है कि इसमें अंधविश्वास की कोई बात नहीं है। दावा सही साबित न होने पर भी उनका मानना है कि अत्यधिक गर्मी के चलते जल स्तर नीचे चला गया है। बावजूद इसके वे इस तकनीक को अयोग्य नहीं मानते।

दिनोदिन पानी की हो रही कमी और बोरवेल खुदवाने में लगने वाली भारी रकम के चलते लोग इस तरह की बातों पर विश्वास करने के लिए मजबूर हो जाते हैं? हर कोई अपना समय और पैसा बचाने के चक्कर में गंगा नारायण शर्मा जैसे लोगों की तलाश में रहता है। आपका इस प्रकार के दावों के बारे में क्या कहना है हमें जरूर लिखें....

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