मदिरापान करती काल भैरव की प्रतिमा

क्या प्रतिमा भी मदिरापान कर सकती है....

Webdunia
- श्रुति अग्रवा ल
क्या मूर्ति मदिरापान कर सकती... आप कहेंगे नहीं, कतई नहीं। भला मूर्ति कैसे मदिरापान कर सकती है। मूर्ति तो बेजान होती है। बेजान चीजों को भूख-प्यास का अहसास नहीं होता, इसलिए वह कुछ खाती-पीती भी नहीं है। लेकिन उज्जैन के काल भैरव के मंदि्र में ऐसा नहीं होता। वाम मार्गी संप्रदाय के इस मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा भी मदिरापान करते हैं ।

आस्था और अंधविश्वास की इस कड़ी में हमने इसी तथ्य को खँगालने की कोशिश की। अपनी इस कोशिश के लिए हमने सबसे पहले रुख किया उज्जैन का... महाकाल के इस नगर को मंदिरों का नगर कहा जाता है। लेकिन हमारी मंजिल थी, एक विशेष मंदिर - काल भैरव मंदिर । यह मंदिर महाकाल से लगभग पाँच किलोमीटर की दूरी पर है। कुछ ही समय बाद हम मंदिर के मुख्य द्वार पर थे।

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मंदिर के बाहर सजी दुकानों पर हमें फूल, प्रसाद, श्रीफल के साथ-साथ वाइन की छोटी-छोटी बोतलें भी सजी नजर आईं। इससे पहले कि हम कुछ समझ पाते, जान पाते, उससे पहले ही हमारे सामने कुछ श्रद्धालुओं ने प्रसाद के साथ-साथ मदिरा की बोतलें भी खरीदीं।

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जब हमने दुकानदार रवि वर्मा से इस बारे में बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बाबा के दर पर आने वाला हर भक्त उनको मदिरा (देशी मदिरा) जरूर चढ़ाता है। बाबा के मुँह से मदिरा का कटोरा लगाने के बाद वाइन धीरे-धीरे गायब हो जाती है।

रवि से जानकारी लेने के बाद हम मंदिर के अंदर गए... मंदिर में भक्तों का ताँता लगा हुआ था। हर भक्त के हाथ में प्रसाद की टोकरी थी। इस टोकरी में फूल औऱ श्रीफल के साथ-साथ मदिरा की एक छोटी बोतल भी जरूर नजर आ जाती थी... हम मंदिर के गर्भ गृह में एक तरफ खड़े हो गए और देखने लगे कि बाबा कैसे मदिरा का पान करते हैं।

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अंदर का दृश्य बेहद निराला था। भैरव बाबा की प्रतिमा के पास बैठे पुजारी गोपाल महाराज कुछ मंत्र बुदबुदा रहे थे। इतने में ही एक भक्त ने प्रसाद और मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया। पंडित जी ने मदिरा को एक छोटी प्लेट में निकाला और बाबा की मूरत के मुँह से लगा दिया... और यह क्या... भोग लगाने के बाद प्लेट में मदिरा की एक बूँद भी नहीं बची।

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यह सिलसिला लगातार चलता रहा... एक-के-बाद-एक भक्त आते गए और बाबा की मूर्ति मदिरापान करती रही। सबकुछ हमारी आँखों के सामने घट रहा था। हम काफी देर तक यहीं खड़े रहे। मदिरा पिलाने का सिलसिला भी लगातार जारी था। पंडित जी भैरव बाबा को लगातार प्रसाद चढ़ाते जा रहे थे... लेकिन कहीं भी मदिरा की एक बूँद भी नजर नहीं आ रही थी।

हमने राजेश चतुर्वेदी नामक एक भक्त से इस बाबत चर्चा की। राजेश ने बताया ‘वे उज्जैन के रहने वाले हैं और हर रविवार कालभैरव को मदिरा का भोग लगाने जरूर आते हैं। राजेश बताते हैं, पहले-पहल वे भी यह जानने की कोशिश करते थे कि मदिरा आखिर जाती कहाँ हैं, लेकिन अब उन्हें पक्का विश्वास है कि मदिरा का भोग भगवान कालभैरव ही लगाते हैं । ’

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कालभैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में माँस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहाँ सिर्फ तांत्रिको को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहाँ तांत्रिक क्रियाएँ करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूँ ही जारी रखा।

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अब यहाँ जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं। मंदिर के पुजारी गोपाल महाराज बताते हैं कि यहाँ विशिष्ट मंत्रों के द्वारा बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे बहुत खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं।

काल भैरव के मदिरापान के पीछे क्या राज है, इसे लेकर लंबी-चौड़ी बहस हो चुकी है। पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करने वाले राजुल महाराज बताते हैं, उनके दादा के जमाने में एक अँग्रेज अधिकारी ने मंदिर की खासी जाँच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा... उसने प्रतिमा के आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा सिफर। उसके बाद वे भी काल भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से ही यहाँ देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया जाने लगा, जो आज तक जारी है।

मंदिर में काफी देर तक बैठने और आसपास की जगहों का मुआयना करने के बाद और तमाम जानकार लोगों से बातें करने के बाद हमें भी पूरा यकीन हो गया कि जहाँ आस्था होती है, वहाँ शक की कोई गुंजाइश नहीं होती।

कब से शुरू हुआ सिलसिलाः- काल भैरव को मदिरा पिलाने का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। यह कब, कैसे और क्यों शुरू हुआ, यह कोई नहीं जानता। यहाँ आने वाले लोगों और पंडितों का कहना है कि वे बचपन से भैरव बाबा को भोग लगाते आ रहे हैं, जिसे वे खुशी-खुशी ग्रहण भी करते हैं। उनके बाप-दादा भी उन्हें यही बाताते हैं कि यह एक तांत्रिक मंदिर था, जहाँ बलि चढ़ाने के बाद बलि के माँस के साथ-साथ भैरव बाबा को मदिरा भी चढ़ाई जाती थी। अब बलि तो बंद हो गई है, लेकिन मदिरा चढ़ाने का सिलसिला वैसे ही जारी है। इस मंदिर की महत्ता को प्रशासन की भी मंजूरी मिली हुई है। खास अवसरों पर प्रशासन की ओर से भी बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है।

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