दक्षिण भारत में श्रेष्ठ मंदिरों की श्रृंखला है। विशाल प्रांगण, आकर्षक गोपुरम्, शिल्प सौंदर्य, रंगों का अभिनव आकल्पन, एक से बढ़कर एक प्रतिमाएं, सुंदर मंडपम् एवं छलछलाते सरोवर। तमिलनाडु, केरल, आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक में जो भव्य मंदिर हमने देखे हैं, वे वर्णनातीत हैं। सामान्यतया ऐसे एक-एक मंदिर में अच्छी प्रकार भ्रमण करने के लिए 4-5 घंटे भी पर्याप्त नहीं होते हैं। हम रोम जाकर वेटिकन की गैलरीज को देखकर अत्यंत प्रभावित हुए थे। निश्चय ही वहां मायकेल एंजिलो की पेंटिंग अत्यंत प्रभावी एवं आकर्षक थी, परंतु हमारे दक्षिण भारत में मंदिरों विशेषकर रामेश्वरम्, मदुराई, कांची, तिरुअनंतपुरम् में विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिल्पकला, पेंटिंग एवं रंगों का अद्भुत प्रयोग दृष्टिगोचर होता है- वे विश्व की श्रेष्ठ कलाकृतियों में भी श्रेष्ठतम हैं।
तमिलनाडु के मदुराई में स्थित मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर स्थापत्य एवं वास्तुकला की दृष्टि से आधुनिक विश्व के आश्चर्यों में गिना जाता है। यह मंदिर भगवान सुन्दरेश्वर (शिव) की भार्या जिनकी आंखें मछली की आंखों जैसी सुंदर हैं, को समर्पित हैं।
एक पौराणिक आख्यान है कि पान्ड्य राजा मलयध्वज की तपस्या से प्रसन्न होकर मां पार्वती के अंश के रूप में रानी कंचनशाला ने मीनाक्षी नामक कन्या को जन्म दिया। कन्या शनै:-शनै: बड़ी होने लगी। भगवान शिव अपनी बारात लेकर आए और मीनाक्षी के साथ उनका विवाह संपन्न हुआ। स्वयं भगवान विष्णु ने अपनी बहन मीनाक्षी का हस्तमिलाप करके कन्यादान किया। इस घटना का शिल्पांकन मंदिर में दिखाई देता है।
यह मंदिर अत्यंत प्राचीन मंदिर माना जाता है। इसका निर्माण 7वीं सदी के प्रारंभ में हुआ था। सन् 1310 में मुस्लिम आक्रांत मलिक काफूर ने इस मंदिर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। उस समय वहां के पंडे-पुजारियों ने मूल प्रतिमाओं को सुरक्षित बचा लिया था तथा 50 वर्ष के उपरांत जब मुस्लिम शासन से मुदराई मुक्त हुआ, तब उन प्रतिमाओं को पुन: आदपूर्वक अपने स्थान पर प्रतिष्ठित किया गया।
सन् 1559-1600 में मदुराई के नायक प्रधानमंत्री आर्यनाथ मुदालियार ने मंदिर के पुनर्निर्माण का बीड़ा उठाया। पश्चात महाराजा तिरुमलनायक तथा उनके उत्तराधिकारियों ने मंदिर को पुन: अपनी श्रेष्ठता वापस दिलाई।
लगभग 15 एकड़ क्षेत्र में फैला यह मंदिर 2 दीवारों की परिसीमा में निर्मित है। जिसमें 9 मंजिला दक्षिणी गोपुरम् सर्वोच्च होकर 170 फीट ऊंचा है। सबसे छोटा गोपुरम् उत्तर दिशा में है तथा 160 फीट ऊंचा है। इन सभी गोपुरम् में विभिन्न देवी-देवताओं, किन्नरों एवं गंधर्वों की सुंदर आकृतियां बनी हैं जिसमें नक्काशी तथा रंग सौंदर्य अद्भुत है।