चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 17 किलोमीटर दूर यह स्थान अनसूया संरक्षित वन प्रभाग के घने जंगलों में स्थित है। इस स्थान पर श्रद्धालुओं को कम से कम पांच किलोमीटर पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है। भगवान दत्तात्रेय से जुडे़ होने के कारण इस मेले में महाराष्ट्र और कर्नाटक से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार- पुराणों में सती अनसूया पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध है। उन्हें सती शिरोमणि का दर्जा प्राप्त है। अनसूया मंदिर के निकट अनसूया आश्रम में त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश) ने अनसूया माता के सतीत्व की परीक्षा ली थी।
मान्यता के अनुसार एक बार महर्षि नारद ने त्रिदेवियों (सरस्वती, लक्ष्मी एवं पार्वती) को कहा कि तीनों लोकों में अनसूया से बढ़कर कोई सती नहीं है। नारद मुनि की बात सुनकर त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए मृत्युलोक भेज दिया। तब तीनों देवता माता अनसूया के आश्रम में साधु के वेष में आए और उनसे नग्नावस्था में भोजन करवाने को कहा। साधुओं को बिना भोजन कराए सती मां वापस भी नहीं भेज सकती थी। तब मां अनसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से तीनों देवों पर जल छिड़का और उन्हें बाल (शिशु) रूप में परिवर्तित कर दिया और फिर स्तनपान कराया।