वर्ष 1936 में स्थापित यह मंदिर अपनी विशिष्टताओं के कारण आज विभिन्न धर्मावलंबी असंख्य भारतीयों की 'श्रद्धा का मंदिर' बन चुका है। अंग्रेजों की अधीनता में दबे भारतीयों ने इस भव्य और अनूठे मंदिर की परिकल्पना की और उन दिनों करीब 10 लाख रुपए की लागत से काशी के रईस राष्ट्ररत्न शिवप्रसाद गुप्त ने इसका निर्माण कराया।
स्वतंत्रता संग्राम में गुप्तजी ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे लोगों की जो सहायता की वह अविस्मरणीय है। जिन दिनों अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के देशप्रेम की चर्चा तक सुनना पसंद नहीं करते थे। तब देशप्रेम और दानवीरता का ऐसा भव्य स्मारक खड़ा करना, जो स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन जाए, वस्तुतः जोखिम की बात थी, पर किसी बात की परवाह किए बगैर गुप्तजी अंत तक 'रणभेरी' के प्रकाशन से लेकर अनेक कामों में क्रांतिकारियों की सहायता करते रहे।
उनके मन में ऐसा मंदिर बनवाने की इच्छा थी, जिसमें हर धर्म के लोग बेरोकटोक आ-जा सकें। वे चाहते थे कि भारत का मानचित्र हर भारतवासी के हृदय पर आराध्य माता के रूप में अंकित रहे और पूरा राष्ट्र एक सूत्र में गुंथा रहे।
गुप्तजी को इस अद्वितीय मंदिर के निर्माण की प्रेरणा पुणे स्थित कर्वे आश्रम में मिट्टी से बने भारत माता के भूचित्र से मिली- 'भारत माता के उठावदार मानचित्र की कल्पना संयोगवश ह्रदय में उत्पन्न हुई। संवत् 1970 विक्रम के जाड़े में कराची कांग्रेस अधिवेशन से लौटते हुए मुंबई जाने का अवसर मिला। वहां से पूना जाना हुआ। वहां श्रीमान् धोडो केशव कर्वे का विधवाश्रम देखने गया।
आश्रम में जमीन पर भारत का एक मानचित्र बना हुआ था। था तो वह मिट्टी का ही पर उसमें पहाड़ और नदियां ऊंची-नीची बनी थीं, बड़ा सुंदर लगा। इच्छा हुई कि ऐसा ही एक मानचित्र काशी में भी बनाया जाए। यह केवल एक संस्कार था, जो संभवतः कुछ दिन में मिट जाता पर संयोगवश इसके बाद विदेश यात्रा करनी पड़ी।