बद्रीनाथ धाम

जय-जय बद्री विशाल

Webdunia
- महेश पांडे
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हिमालय के शिखर पर विराजमान बद्रीनाथ धाम श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। वहाँ विराजित दुर्लभ शिव के दर्शन की आस हर मानव के मन में होती है। यहाँ देश के कोने-कोने से आस्थावान धर्मयात्रियों का आना-जाना लगा ही रहता है।

जय बद्री विशाल : भगवान बद्रीनाथ को बद्री विशाल नाम से पुकारते हैं। भारतीय सेना के कुमाऊँ व गढ़वाल रेजीमेंट के सैनिकों का विजय उद्‍घोष 'जय बद्री विशाल है।' बद्रीनाथ मंदिर को अनादिकाल से स्थापित माना जाता है जिसकी पुनर्स्थापना जगद्‍गुरु आदि शंकराचार्य ने करवाई थी। इसका जीर्णोद्धार रामानुज संप्रदाय के स्वामी वरदराजाचार्य के आदेश पर गढ़वाल नरेश ने करवाया। इसमें इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने भी योगदान दिया। बद्रीनाथ की महिमा का वर्णन स्कंद पुराण, केदारखंड, श्रीमद्‍भागवत आदि में अनेक जगहों पर आता है।

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क्या है इतिहास : जगद्गुरु शंकराचार्य ने ही मंदिर की प्रशासन व्यवस्था बनाई। उन्होंने ज्योतिर्मठ के मठाधीश को बद्रीनाथ मंदिर की पूजा व्यवस्था देखने का दायित्व सौंपा। 1776 तक यह सिलसिला चलता रहा। 1776 में उनके ब्रह्मलीन हो जाने से यह पूजा व्यवस्था वहाँ उपलब्ध नंबूदरीपाद ब्राह्मणों ने संभाली। बाद में अंग्रेज सरकार ने गढ़वाल के जिलाधीश को अध्यक्ष नामित कर मंदिर प्रबंधन के लिए एक समिति बना दी।

व्यवस्थाएँ बनीं-बिगड़ी लेकिन 1939 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत में एक नया कानून बद्रीनाथ मंदिर अधिनियम बना। 1948 में केदारनाथ मंदिर को भी इस अधिनियम में शामिल कर बद्री-केदार मंदिर अधिनियम के रूप में इसे जाना जाने लगा भगवान आशुतोष जी केदारनाथ में दिव्य ज्योतिर्लिंग के रूप में आसीन हो केदार क्षेत्र में निवास करते हैं।

बद्रीनाथ दर्शन से पूर्व केदारनाथ के दर्शनों का महात्म्य माना जाता है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग एक वृहद शिला के रूप में विद्यमान है। गर्भगृह के बाघ जगमोहन में पार्वती की पाषाण मूर्ति है। मुख्य द्वार पर ही गणेश और नन्दी जी की पाषाण मूर्ति है।

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