श्री कपालेश्वर महादेव

चौरासी महादेव के आठवें भगवान

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श्री कपालेश्वर महादेव का नाम उज्जैन के चौरासी महादेव यात्रा के आठवें क्रम पर आता है। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने यहां कपाली वेश में ब्रह्मा आदि देवताओं को कपालों के ढेर में शिवलिंग के दर्शन करवाए थे। इस कारण इसका नाम कपालेश्वर पड़ा। मंदिर में स्थित पाषाण के शिवलिंग की आकृति छोटी है।

ऐसी मान्यता है कि सच्चे दिल से मांगी गई मनोकामना इस मंदिर में अवश्य पूरी होती है। आषाढ़ तथा श्रावण मास में श्री कपालेश्वर महादेव की पूजा का विशेष महत्व है।

कपालेश्वर महादेव की प्रचलित कथा के अनुसार वैवस्वत कल्प में, त्रेतायुग में, महाकाल वन में पितामह यज्ञ कर रहे थे। वहां ब्राह्मण समाज बैठा था। जब महादेव कापालिक वेश में वहां पहुंचें तो ब्राह्मणों ने क्रोधित हो उन्हें हवन स्थल से चले जाने को कहा।

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कापालिक वेश धारण किए महादेव ने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि मैंने ब्रह्म हत्या का पाप नाश करने के लिए बारह वर्ष का व्रत धारण किया है। अतः मुझे पापों का नाश करने हेतु अपने साथ बिठाएं।

ब्राह्मणों द्वारा इंकार करने पर उन्होंने कहा कि ठहरो, मैं भोजन करके आता हूं।

तब ब्राह्मणों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया। इससे उनके हाथ में रखा कपाल गिर कर टूट गया। इतने पर कपाल पुनः प्रकट हो गया। ब्राह्मणों ने क्रोधित होकर कपाल को ठोकर मार दी। जिस स्थान पर कपाल गिरा वहां करोड़ों कपाल प्रकट हो गए। ब्राह्मण समझ गए कि यह कार्य महादेव का ही है।

उन्होंने शतरुद्री मंत्रों से हवन किया। तब प्रसन्न होकर महादेव ने कहा कि जिस जगह कपाल को फेंका है, वहां अनादिलिंग महादेव का लिंग है। यह समयाभाव से ढंक गया है। इसके दर्शन से ब्रह्म हत्या का पाप नाश होगा। इस पर भी जब दोष दूर नहीं हुआ तब आकाशवाणी हुई कि महाकाल वन जाओ। वहां महान लिंग गजरूप में मिलेगा। वे आकाशवाणी सुनकर अवंतिका आए।

लिंग दर्शन करते समय हाथ में स्थित ब्रह्म मस्तक पृथ्वी पर गिर गया। तब महादेव ने इसका नाम कपालेश्वर रखा। महाकाल की धर्म नगरी उज्जैन के अनंत पेठ स्थित श्री कपालेश्वर महादेव मंदिर के आसपास सघन बस्ती है। सड़क से यह मंदिर नजर नहीं आता। कपालेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से कठिन से कठिन मनोरथ भी पूरे हो जाते हैं।

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