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चारधाम यात्रा : केदारनाथ यात्रा पर जा रहे हैं तो जानिए 10 रहस्य की मुख्य बातें

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हमें फॉलो करें Kedarnath Dham
, शुक्रवार, 6 मई 2022 (11:01 IST)
Kedarnath Temple Yatra Mystery : चार धाम यात्रा में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तीर्थ की मुख्‍य रूप से यात्रा की जाती है। यदि आप केदारनाथ की यात्रा पर जा रहे हैं तो जान लें यहां की मुख्‍य और रहस्यममी बातों को।
 
 
1. केदारनाथ और पशुपति नाथ मिलकर पूर्ण शिवलिंग बनता है : केदारनाथ में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग को इसे अर्द्धज्योतिर्लिंग कहते हैं। बाकी का आधा ज्योतिर्लिंग नेपाल के पशुपति नाथ में विराजमान हैं। इसीलिए दोनों के ही दर्शन करने से ही इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूर्ण होते हैं। कहा जाता है जब पांडवों को स्वर्गप्रयाण के समय शिवजी ने भैंसे के स्वरूप में दर्शन दिए थे जो बाद में धरती में समा गए लेकिन पूर्णतः समाने से पूर्व भीम ने उनकी पुंछ पकड़ ली थी। जिस स्थान पर भीम ने इस कार्य को किया था उसे वर्तमान में केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। एवं जिस स्थान पर उनका मुख धरती से बाहर आया उसे पशुपतिनाथ (नेपाल) कहा जाता है। पुराणों में पंचकेदार की कथा नाम से इस कथा का विस्तार से उल्लेख मिलता है।
 
2. नर और नारायण के तप से प्रसन्न होकर शिवजी स्थापित हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में : पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
 
3.  6 माह तक नहीं बुझता है दीपक : दीपावली महापर्व के दूसरे दिन के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं, तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है। लेकिन आश्चर्य की बा‍त कि 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी की वैसी ही साफ-सफाई मिलती है, जैसी कि छोड़कर गए थे।
 
4. 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा मंदिर : वर्तमान में स्थित केदारेश्वर मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने मंदिर बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा। तब इस मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदिशंकराचार्य ने करवाया था। इस मंदिर के पीछे ही उनकी समाधि है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले 10वीं सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। 400 सालों तक कैसे बर्फ में दबा रहा केदारनाथ का मंदिर और जब बर्फ से बाहर निकला तो पूर्णत: सुरक्षित था।
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Char Dham 2022
5. तूफान और बाढ़ में भी रहता है सुरक्षित : 16 जून 2013 की रात प्रकृति ने कहर बरपाया था। जलप्रलय से कई बड़ी-बड़ी और मजबूत इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढहकर पानी में बह गईं, लेकिन केदारनाथ के मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा। आश्चर्य तो तब हुआ, जब पीछे पहाड़ी से पानी के बहाव में लुढ़कती हुई विशालकाय चट्टान आई और अचानक वह मंदिर के पीछे ही रुक गई! उस चट्टान के रुकने से बाढ़ का जल 2 भागों में विभक्त हो गया और मंदिर कहीं ज्यादा सुरक्षित हो गया। इस प्रलय में लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो गई थी।
 
6. लुप्त हो जाएगा केदारनाथ : पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार इस समूचे क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों के अनुसार वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में 'भविष्यबद्री' नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा।
 
7. कैसे बना होगा यह मंदिर अभी भी रहस्य बरकरार : यह मंदिर कटवां पत्थरों के भूरे रंग के विशाल और मजबूत शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़े 85 फुट ऊंचे, 187 फुट लंबे और 80 फुट चौड़े मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी हैं। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर व तराशकर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई होगी? खासकर यह विशालकाय छत कैसे खंभों पर रखी गई? पत्थरों को एक-दूसरे में जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
 
8. निरंतर बदलती रहती है यहां की प्रकृति : केदारनाथ धाम में एक तरफ करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड का पहाड़। न सिर्फ 3 पहाड़ बल्कि 5 नदियों का संगम भी है यहां- मं‍दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है। यहां कब बादल फट जाए और कब बाढ़ आ जाए कोई नहीं जानता।
 
9. एक रेखा पर बने हैं केदारनाथ और रामेश्‍वरम मंदिर : केदारनाथ मंदिर को रामेश्वरम मंदिरकी सीध में बना हुआ माना जाता है। उक्त दोनों मंदिरों के बीच में कालेश्वर (तेलंगाना), श्रीकालाहस्ती मंदिर (आंध्रा), एकम्बरेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), अरुणाचल मंदिर (तमिलनाडु), तिलई नटराज मंदिर (चिदंबरम्) और रामेश्वरम् (तमिलनाडु) आता है। ये शिवलिंग पंचभूतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
 
10. रुद्ररूप में निवास करते हैं शिवजी, मृत्यु हो जाए तो मोक्ष मिलता है : केदारनाथ में शिव का रुद्ररूप निवास करता है, इसलिए इस संपूर्ण क्षेत्र को रुद्रप्रयाग कहते हैं। यहां भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। देश के बारह ज्योतिर्लिगों में सर्वोच्च है केदारनाथ धाम। मानो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं का मृत्युलोक को झांकने का यह झरोखा हो। धार्मिक ग्रंथों अनुसार बारह ज्योतिर्लिंगों में केदार का ज्योतिर्लिंग सबसे ऊंचे स्थान पर है। मान्यता है कि समूचा काशी, गुप्तकाशी और उत्तरकाशी क्षेत्र शिव के त्रिशूल पर बसा है। यहीं से पाताल और यहीं से स्वर्ग जाने का मार्ग है।
 
शिव पुराण के अनुसार मनुष्य यदी बदरीवन की यात्रा करके नर तथा नारायण और केदारेश्वर शिव के स्वरूप का दर्शन करता है, नि:सन्देह उसे मोक्ष प्राप्त हो जाता है। ऐसा मनुष्य जो केदारनाथ ज्योतिर्लिंग में भक्ति-भावना रखता है और उनके दर्शन के लिए अपने स्थान से प्रस्थान करता है, किन्तु रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो जाती है, जिससे वह केदारेश्वर का दर्शन नहीं कर पाता है, तो समझना चाहिए कि निश्चित ही उस मनुष्य की मुक्ति हो गई। शिव पुराण के अनुसार केदारतीर्थ में पहुंचकर, वहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर जो मनुष्य वहां का जल पी लेता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
 
केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।
तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूज्य च।
तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।।
 
स्कंद पुराण में भगवान शंकर, माता पार्वती से कहते हैं, हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भूस्वर्ग के समान है।

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