विश्व की एक मात्र उत्तर प्रवाह मान क्षिप्रा नदी के पास बसी सप्तपुरियों में से एक भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली अवंतिका अर्थात उज्जैन को राजा महाकाल और विक्रमादित्य की नगरी कहा जाता है। यहां पर साढ़े तीन काल विराजमान है- महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्धकाल भैरव। यहां पर ज्योतिर्लिंग के साथ दो शक्तिपीठ हरसिद्धि और गढ़कालिका है और यहां के शमशान को तीर्थ माना जाता है जिसे चक्र तीर्थ कहते हैं।
यहां के कुंभ पर्व को सिंहस्थ कहते हैं। 84 महादेव के साथ ही यहां पर देश का एक मात्र अष्ट चिरंजीवियों का मंदिर है। यह मंगलदेव की उत्पत्ति का स्थान भी है और यहां पर नौ नारायण और सात सागर है। यहीं से विश्व का काल निर्धारण होता है अर्थात मानक समय का केंद्र भी यही है। उज्जैन से ही ग्रह नक्षत्रों की गणना होती है और यहीं से कर्क रेखा गुजरती है। राजा विक्रमादित्य ने ही यहीं से विक्रमादित्य के कैलेंडर का प्रारंभ किया था और उन्होंने ही इस देश को सर्वप्रथम बार सोने की चिढ़िया कहकर यहां से सोने के सिक्के का प्रचलन किया था। महाभारत की एक कथानुसार उज्जैन स्वर्ग है। यहां तीन गणेशजी विराजमान हैं चिंतामन, मंछामन और इच्छामन।
चिंतामन गणेश जी :
1. उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से करीब 6 किलोमीटर दूर ग्राम जवास्या में भगवान गणेश जी का प्राचीनतम मंदिर स्थित है।
2. गर्भगृह में प्रवेश करते ही गौरीसुत गणेश की तीन प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। यहां पार्वतीनंदन तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक।
3. ऐसी मान्यता है कि चिंतामण गणेश जी चिंता से मुक्ति प्रदान करते हैं, जबकि इच्छामन अपने भक्तों की कामनाएं पूर्ण करते हैं। गणेश जी का सिद्धिविनायक स्वरूप सिद्धि प्रदान करता है।
4. मंछामन गणेश जी मंदिर गऊघाट के समीप रेलवे कालोनी में बना है। मंदिर के सामने कुंड के सामने छत्र के नीचे भगवान मंछामन विराजमान है। भगवान गणेश कमल पुष्प पर विराजमान है। यह हर तरह की मनोकामना पूर्ण करते हैं।