साधना के प्राचीन केंद्रों में शुमार है पांडवकालीन धूमेश्वर महादेव मंदिर

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इटावा। यमुना नदी के किनारे बसे उत्तरप्रदेश के इटावा जिले में स्थित पांडवकालीन धूमेश्वर महादेव मंदिर सदियों से शिव साधना के प्राचीन केंद्र के रूप में विख्यात रहा है।

प्रसिद्ध शिक्षाविद एवं केके डिग्री कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. विद्याकांत तिवारी ने बताया कि इटावा जिले में भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों की संख्या कम नहीं है लेकिन यहां कुछ शिव मंदिर ऐसे हैं जिनका अपना एक अलग महत्व व प्राचीन इतिहास है। चतुर्दिक वाहिनी यमुना नदी के किनारे कई प्राचीन शिव मंदिर हैं। इन्हीं शिव मंदिरों में एक धूमेश्वर महादेव मंदिर जिले ही नहीं, बल्कि देशभर में प्रसिद्ध है।
 
महाभारतकालीन इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना पांडवों के गुरु महर्षि धौम्य ने की थी। जिस स्थान पर मंदिर बना है यह स्थान धौम्य ऋषि की साधना स्थली थी। धूमेश्वर महादेव मंदिर यमुना नदी के किनारे छिपैटी घाट पर बना हुआ है। 
 
इस मंदिर की प्रसिद्धि के हिसाब से इसका कोई खास विकास नहीं हो सका है। क्षेत्र के लोगों ने इस प्राचीन धरोहर का विकास कराए जाने की मांग की है। यहां पर सावन, शिवरात्रि तथा प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं की खासी भीड़ होती है।
 
उन्होंने बताया कि महर्षि धौम्य का आश्रम महाभारतकालीन पांचाल क्षेत्र का सबसे बड़ा अध्ययन केंद्र था। यहां दूर-दूर से विद्यार्थी और राजघराने के राजकुमार शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। यहां पर महर्षि के प्रिय शिष्य आरुणि तथा उपमन्यु ने अपने ज्ञान का विस्तार किया था। ये दोनों शिष्य भगवान शंकर के प्रिय भक्त थे। महर्षि धौम्य ने अपने प्रिय शिष्यों के लिए साधना द्वारा शिवलिंग प्रकट किया था और यही शिवलिंग आज 'धूमेश्वर महादेव' के नाम से जाना जाता है।
 
तिवारी ने बताया कि धौम्य ऋषि के आश्रम में श्रुति, स्मृति व पारायण शैली की शिक्षा दी जाती थी लेकिन उन्होंने अपने शिष्यों को ताड्‍पत्रों व भोजपत्रों पर विभिन्न विषयों के ग्रंथों को लिपिबद्ध कराया था। इस आश्रम में कई यज्ञशालाएं भी थीं जिनमें प्रतिदिन यज्ञ होते थे। मान्यता है कि आज भी इस तपोभूमि में यज्ञ करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
 
श्रीमद्भागवत के अलावा अन्य धार्मिक ग्रंथों में महर्षि धौम्य की विस्तार से चर्चा की गई है। इन्हीं ग्रंथों के आधार पर महर्षि धौम्य का आश्रम पावन यमुना नदी के किनारे बताया गया है। किसी समय इटावा 'इष्टिकापुरी' के नाम से प्रसिद्ध था। इटावा पांचाल क्षेत्र के तहत आता है इसलिए महर्षि धौम्य ने यहां अपनी साधना का केंद्र बनाया था। यहीं पर वे साधना में लीन रहते थे और अपनी तपस्या के बल पर उन्होंने अपने शिष्यों के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी।
 
मंदिर की विशेषता यह है कि जहां अन्य शिव मंदिरों में भगवान का पूरा परिवार रहता है, वहीं यहां पर सिर्फ शिवलिंग ही स्थापित है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि भगवान शंकर, भगवान कृष्ण व पांडव भी महर्षि धौम्य के आश्रम में आए थे और इन सभी ने कुछ दिनों तक यहां पर विश्राम भी किया था।
 
महाशिवरात्रि के संबंध में प्राचीन कालीबाड़ी मंदिर के पीठाधीश्वर स्वामी शिवानंद महाराज का कहना है कि यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। शिव केवल कर्मकांड या रूढ़ि नहीं है, वे तो कर्म-दर्शन का ज्ञानयज्ञ हैं। शिव आदिदेव हैं। भारतीय धर्म-दर्शन में शिव-पार्वती को समस्त विश्व का माता-पिता माना गया है।
 
शिवभक्तों को आत्म-आनंद प्रदान करने वाली रात्रि 'शिवरात्रि' कहलाती है। इस दिन चन्द्रमा सूर्य के निकट होता है। इस कारण उसी समय जीवरूपी चन्द्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग होता है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को की गई पूजा-अर्चना व साधना से जीवात्मा का विकास तथा आत्मिक शुद्धि होती है।
 
यमुना नदी के किनारे मां पीताम्बरा मंदिर के पुजारी पं. अजय कुमार दुबे का कहना है कि भगवान शंकर जहां कावड़ के जल से प्रसन्न होते हैं, वहीं विभिन्न प्रकार के पदार्थों से महाभिषेक करने पर मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। गाय के दूध से अभिषेक करने पर पुत्र की, गन्ने के रस से लक्ष्मी की तथा दही से पशु की प्राप्ति होती है। घी से असाध्य रोगों से मुक्ति, शर्करा मिश्रित जल से विद्या व बुद्धि, कुश मिश्रित जल से रोगों की शांति, शहद से धन प्राप्ति तथा सरसों के तेल से महाभिषेक करने से शत्रु का शमन होता है।
 
धूमेश्वर महादेव मंदिर के महंत विजय गिरि का कहना है कि मंदिर परिसर में ही महर्षि धौम्य की पावन समाधि बनी हुई है। 7 पीढ़ियों से उनके परिवार के लोग मंदिर की देखरेख कर रहे हैं, क्योंकि परिवार के लोग दशनामी जूना अखाड़ा से जुड़े हुए हैं। मंदिर परिसर में महर्षि धौम्य के अलावा औम्दा गिरि, चमन गिरि, उम्मेद गिरि व शंकर गिरि की समाधियां भी बनी हुई हैं। 
 
उन्होंने बताया कि पहले सिर्फ शिवलिंग व महर्षि धौम्य की समाधि थी, जब सुमेर सिंह किले का निर्माण हुआ उसी समय राजा सुमेर सिंह ने मंदिर व यमुना के किनारे अन्य घाटों का भी निर्माण कराया है। 
 
विजय गिरि बताते हैं कि यह बहुत पावन स्थान है। यहां पर आने वाले भक्तों की मनोकामना धूमेश्वर महादेव पूरी करते हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस मंदिर का विकास कराए। (वार्ता)
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