कैलाश मानसरोवर भारत का हिस्सा क्यों नहीं है? जानिए कब और कैसे हुआ भारत से अलग?

WD Feature Desk
बुधवार, 2 जुलाई 2025 (18:30 IST)
kailash parvat bharat se kab alag hua: कैलाश मानसरोवर यात्रा वर्ष 2025 में आज, 30 जून से एक बार फिर आरंभ हो चुकी है, जिसका समापन अगस्त महीने में प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि यह यात्रा पूरे छह वर्षों के लंबे अंतराल के बाद फिर से शुरू हुई है, जिससे श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह देखा जा रहा है। कैलाश मानसरोवर को हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों के लोग एक अत्यंत पवित्र तीर्थस्थल के रूप में मानते हैं। यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है, बल्कि इसे दुनिया की सबसे कठिन और चुनौतीपूर्ण यात्राओं में भी गिना जाता है।
 
भारत और तिब्बत के बीच स्थित कैलाश मानसरोवर न सिर्फ एक पवित्र तीर्थस्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक भावनाओं का एक गहरा प्रतीक भी है। हर वर्ष हजारों श्रद्धालु कठिन परिस्थितियों में भी इस तीर्थ यात्रा के लिए निकलते हैं। लेकिन एक सवाल कई बार लोगों के मन में आता है, इतना पवित्र स्थल जो भारतीय सभ्यता, ग्रंथों और मान्यताओं में रचा-बसा है, वह भारत का हिस्सा क्यों नहीं है? आखिर कब और कैसे कैलाश मानसरोवर भारत से अलग हुआ? आइए विस्तार से समझते हैं।
 
धार्मिक जुड़ाव
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील को हिन्दू धर्म के साथ-साथ जैन, बौद्ध और सिख धर्म के अनुयायी भी अत्यंत पवित्र मानते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कैलाश पर्वत भगवान शिव का निवास स्थान है, वहीं मानसरोवर झील को दिव्य और मोक्षदायी माना जाता है। जैन धर्म में इसे ऋषभदेव की निर्वाण भूमि और बौद्ध धर्म में इसे चक्रवर्ती सम्राटों और ध्यान साधकों की भूमि माना गया है। इन तमाम धार्मिक जुड़ावों के बावजूद, यह स्थल भारत की सीमाओं में नहीं आता।
 
कैलाश मानसरोवर भारत से कैसे हुआ अलग?
इतिहास में झांके तो पाएंगे कि कैलाश मानसरोवर एक समय तिब्बत का हिस्सा था, और तिब्बत एक स्वतंत्र देश हुआ करता था। लेकिन वर्ष 1950 में चीन ने तिब्बत पर सैन्य कार्यवाही की और धीरे-धीरे उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। भारत ने तब तिब्बत की स्वतंत्रता को लेकर कड़े विरोध तो दर्ज किए लेकिन चीन की विस्तारवादी नीतियों और भारत की तटस्थ विदेश नीति के कारण कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी।
 
पंचशील समझौता और भारत का रुख
1954 में भारत और चीन के बीच “पंचशील समझौता” हुआ, जिसमें भारत ने पहली बार आधिकारिक रूप से तिब्बत को चीन का भाग मान लिया। इसी के तहत कैलाश मानसरोवर क्षेत्र, जो कि तिब्बत में स्थित था, चीन के अधिकार क्षेत्र में चला गया। तब से यह स्थान भारत की सीमा से बाहर हो गया, और भारतीय श्रद्धालुओं को इसके लिए चीन से वीजा लेकर यात्रा करनी पड़ती है।
 
क्या अब भी है भारत की कोई दावेदारी?
राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से देखें तो वर्तमान में भारत की कोई सक्रिय दावेदारी कैलाश मानसरोवर क्षेत्र पर नहीं है। यह क्षेत्र चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में आता है। हालांकि, कई राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक संगठन समय-समय पर यह मांग करते रहे हैं कि भारत को कैलाश मानसरोवर पर ऐतिहासिक और धार्मिक अधिकार के आधार पर बातचीत करनी चाहिए। लेकिन भू-राजनीतिक समीकरणों और चीन की सख्त नीतियों के चलते यह एक जटिल मामला बन चुका है।
 
आज की स्थिति और भारत-चीन सहयोग
आज भारतीय श्रद्धालु दो मुख्य मार्गों, उत्तराखंड के लिपुलेख पास और सिक्किम के नाथुला पास, के जरिए कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाते हैं। इन मार्गों की अनुमति और संचालन भारत-चीन के आपसी समझौते पर आधारित होता है। यात्रा से पहले चीन का वीजा, मेडिकल फिटनेस टेस्ट, और रजिस्ट्रेशन जैसी कई औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। 


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