तंत्र साधना का शक्तिपीठ कामाख्या मंदिर गुवाहाटी (फोटो)

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- गिरीश श्रीवास्तव

कामाख्या देवी शक्तिपीठ को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह शक्तिपीठ तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग और धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वे देवी के शक्तिपीठ कहलाए।



कामाख्या शक्तिपीठ असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या में है। यह 51 शक्तिपीठों में सबसे उच्च स्थान रखता है। 
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कामाख्या से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। यहां देवी की योनि का पूजन होता है। जो मनुष्य इस शिला का पूजन, दर्शन स्पर्श करते हैं, वे दैवी कृपा तथा मोक्ष के साथ भगवती का सान्निध्य प्राप्त करते हैं। 

मंदिर के मध्य भाग में देवी की विशालकाय मूर्ति स्थित है। यहीं पर एक कुंड स्थित है। इसे सौभाग्य कुण्ड कहा जाता है। 

इस तीर्थस्थल के मन्दिर में शक्ति की पूजा योनिरूप में होती है। यहां कोई देवीमूर्ति नहीं है। योनि के आकार का शिलाखण्ड है, जिसके ऊपर लाल रंग की गेरू के घोल की धारा गिराई जाती है और वह रक्तवर्ण के वस्त्र से ढका रहता है। 

मान्यतानुसार इस प्रस्तरमय योनि में माता कामाख्या साक्षात् वास करती हैं।



कामाख्या देवी मंदिर के परिसर में अन्य दस महाविद्याओं काली, तारा, बगला, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, भैरवी, धूमवती के मंदिर भी हैं। इस मंदिर के निर्माण को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं।
कई कथाओं में बताया गया है कि इस मंदिर का निर्माण नरकासुर ने तो कई कथाओं में बताया गया है कि कामदेव ने इस मंदिर को बनाया था। इतिहास के अनुसार वर्तमान मंदिर को कच्‍छ वंश के राजा चिलाराय ने बनवाया था और मुगल बादशाह औरंगजेब के हमलों में यह नष्ट हो गया था। इसका पुर्ननिर्माण राजा नर-नारायण ने 1656 में करवाया था।



 



















(सभी चित्र: गिरीश श्रीवास्तव)
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