रामभक्त और रामदूत हनुमानजी के जन्मस्थान को लेकर मतभेद रहा है। हाल ही में आंध्र प्रदेश के तिरुपति तिरुमाला में आंजनेद्री ( anjanadri parvat) पर्वत पर स्थित हनुमान जन्म स्थान पर भव्य प्रतिमा स्थापित करने और मंदिर बनाने को लेकर शिलान्यास हो रहा है। यह पहाड़ी तिरुमाला की 7 पहाड़ियों में से एक है। यहां हनुमानजी की 30 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित होगी और माता अंजनी का मंदिर, मंडप और गोपुर बनेगा। इस स्थान को पंडितों की एक कमेटी ने अपनी रिसर्च के बाद हनुमानजी का जन्म स्थान होने का दावा किया है।
Anjanadri parvat in tirumala andhra: हनुमानजी की माता का नाम अंजनी है इसीलिए हनुमानजी को आंजनेय और अंजनी पुत्र कहा जाता है। हनुमानजी के पिता का नाम केसरी है, जो वानर जाति के थे। इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है। उन्हें पवनपुत्र भी माना जाता है और रुद्रावतार होने के कारण उन्हें शंकरसुवन भी कहा जाता है।
जन्म स्थान : आंध्र प्रदेश की 'तिरुपति तिरुमला देवस्थानम (TTD) बोर्ड ने घोषणा की है कि भगवान हनुमान का जन्म आकाशगंगा जलप्रपात के नजदीक जपाली तीर्थम में हुआ था। टीटीडी के द्वारा राष्ट्रीय संस्कृत विश्व विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर मुरलीधर शर्मा की अध्यक्षता में बनाई गई पंडित परिषद ने हनुमान जन्म स्थान के संबंध में एक शोधपत्र तैयार कर रिपोर्ट बनाई थी। जिसमें अनेक पौराणिक, भौगोलिक, साहित्यिक और वैज्ञानिक तथ्यों एवं सबुतों का हवाला देकर आंजदेद्री पहाड़ी को हनुमान जन्म स्थान सिद्ध किया गया।
उल्लेखनी है कि इससे पूर्व कर्नाटक के हंपी के पास आंजनेद्री, हरियाणा के करनाल जिले के कैथल को, गुजरात के डांग जिले में नवसारी में अंजना पर्वत की अंजनी गुफा को, झारखंड के गुमला जिले के गांव आंजना में एक गुफा, महाराष्ट्र के नासिक में त्र्यंबकेश्वर से 7 किलोमीटर दूर अंजनेरी में हनुमानजी का जन्म स्थान होने का दावा किया जाता रहा था। मतंग ऋषि के आश्रम में भी उनके जन्म होने का दावा किया जाता रहा है। यह कुल छह स्थान है, जबकि नए शोधानुसार असली स्थान आंध्र प्रदेश के तिरुमाल के आंजनेद्रि पर्वत पर स्थित है।
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की सीमा पर 'पंपासरोवर' अथवा 'पंपासर' होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर 'शबरी गुफा' कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। हंपी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। मतंग नाम की आदिवासी जाति से हनुमानजी का गहरा संबंध रहा है।
कहा जा रहा है कि संभव है कि हनुमानजी तिरुमाला से हंपी अर्थात किष्किंधा गए हो। यह स्थान तिरुमाला से करीब 363 किलोमीटर दूर है। पंडित परिषद की रिपोर्ट के अनुसार वाल्मीकि रामायण के सुंदरकाण्ड के 35वें सर्ग के 81 से 83 श्लोक तक यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि माता अंजनी ने तिरुमाला की इस पवित्र पहाड़ी पर हनुमानजी को जन्म दिया था। इसके अलावा महाभारत के वनपर्व के 147वें अध्याय में, वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के 66वें सर्ग, स्कंद पुराण के खंड एक श्लोक 38 में, शिव पुराण शत पुराण के 20वें अध्याय और ब्रह्मांड पुराण श्रीवेंकटाचल महामात्य तीर्थ काण्ड में भी इसका उल्लेख मिलता है। कम्ब रामायण और अन्नमाचार्य संकीर्तन भी इसी स्थान का संकेत करते हैं।
वेंकटाचलम को अंजनाद्रि सहित 19 नामों से जाना जाता है और त्रेतायुग में अंजनाद्रि में हनुमान का जन्म हुआ था। वेंकटाचल माहात्म्य और स्कन्द पुराण में बताया गया है कि अंजना देवी ने मतंग ऋषि के पास जाकर पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताने के लिए निवेदन किया था। उन्हीं के निवेदन पर माता अंजनी वेकटाचल पर्वत पर तपस्या करने चली गई और कई वर्षों के तप के बाद उन्हें हनुमाजी के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर शर्मा का कहना है कि वेंकटगिरी से ही हनुमान ने सूर्य की तरफ छलाँग लगाई थी। जब ब्रह्मा और इंद्र ने उन पर वज्र से प्रहार किया, वो नीचे गिर पड़े और अंजना देवी अपने पुत्र के लिए रोने लगीं। तभी सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें वरदानी शक्ति प्रदान की और तभी से इस पर्वत का नाम अंजनाद्रि पर्वत हो गया।