Hanuman Chalisa

जैन तीर्थस्थली : अष्टापद तीर्थ

हस्तिनापुर- जैन तीर्थस्थली के रूप में विख्यात

Webdunia
- आचार्य विजय नित्यानंद सूरी

ND
तीर्थ क्षेत्र के रूप में, जैन परंपरा के अनुसार हस्तिनापुर एक ऐसी पावन भूमि है जहाँ की गाथाएँ न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुगूंजित होती रही हैं। जहाँ हस्तिनापुर महाभारत से जुड़ा है वहीं जैन तीर्थस्थली के रूप में भी विख्यात है। आज यहाँ पर न केवल श्रद्धालुजन बड़ी संख्या में पहुँचते हैं बल्कि यह दुनियाभर से पर्यटकों को भी आकर्षित करने में सक्षम हैं।

धर्म, संस्कृति की इस ऐतिहासिक धरोहर को नई ऊर्जा प्रदान करने के उद्देश्य से नवनिर्माण हो रहा है और विलुप्त अष्टापद तीर्थ की पुनर्रचना हुई है। अष्टापद की कुल ऊँचाई 151 फुट है। अष्टापद के चार प्रवेश द्वार हैं। माना जा रहा है 160 फीट व्यास और 108 फुट ऊँचे आठ पदों वाला यह जिनालय तीर्थ के साथ पर्यटक स्थल के रूप में भी विकसित हो रहा है।

ND
जैन आगमों में वर्णन है कि महाराजा भरत चक्रवर्ती ने प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की नश्वर काया के अग्नि संस्कार स्थल अष्टापद पर जो मणिमय 'जिन प्रासाद' बनवाया था। पीठिका में कमलासन पर आसीन आठ प्रतिहार्य सहित अरिहंत की रत्नमय शाश्वत्‌ चार प्रतिमाएँ तथा देवच्छंद शरीर युक्त और वर्ण वाली चौबीस तीर्थंकरों की मणियों एवं रत्नों की प्रतिमाएँ विराजमान करवाईं। इन प्रतिमाओं पर तीन-तीन छत्र, दोनों ओर दो-दो चांवर, आराधक यक्ष, किन्नर और ध्वजाएँ स्थापित की गईं।

चैत्य में महाराजा भरत ने अपने पूर्वजों, भाइयों, बहनों तथा विनम्र भाव से भक्ति प्रदर्शित करते हुए स्वयं की प्रतिमा भी स्थापित करवाई। इस जिनालय के चारों ओर चैत्यवृक्ष, कल्पवृक्ष, सरोवर, कूप, बावडियाँ और मठ बनवाए और चैत्य के बाहर भगवान ऋषभदेव का एक ऊंचा रत्नजड़ित स्तूप और इस स्तूप के आगे दूसरे भाइयों के भी स्तूप बनवाए। इस प्रथम जिनालय में, 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाकर, भरत ने भक्तिपूर्वक आराधना, अर्चना और वंदना की।

ND
इस रत्नमय प्रासाद पर समय और आततायी जनों का प्रभाव न पड़े यह विचार कर महाराजा भरत ने पर्वत के शिखर तोड़ डाले और दंडरत्न द्वारा एक-एक योजन की दूरी पर आठ पद अर्थात पेड़ियाँ बनवाईं। इसी कारण यह प्रथम तीर्थ 'अष्टापद' के नाम से विख्यात हुआ।

शास्त्रों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अपने प्रथम शिष्य गौतम स्वामी से कहा- 'हे गौतम! जो अपने जीवन काल में स्वयं अष्टापद की यात्रा करता है, वह उसी भव में मोक्ष जाता है।' यह सुनकर गौतम स्वामी अष्टापद की यात्रा को गए। ऐसी भी मान्यता है कि भगवान ऋषभदेव ने अंतिम समय पर हस्तिनापुर से ही अष्टापद की ओर विहार किया था। ऐसे पावन तीर्थ में विलुप्त अष्टापद तीर्थ के आकार को मूर्त रूप दिया गया है जो जैन धर्म और इतिहास की एक विलक्षण घटना मानी जा रही है।

इस स्थली का महत्व इस रूप में भी है कि यह आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के (निराहार 400 दिन) वर्षीतप पारणे का मूल स्थल है। प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया को यहाँ भव्य पारणा महोत्सव मनाया जाता है। देश भर से वर्षीतप (वर्षभर उपवास रखने वाले) करने वाले यहाँ आकर अन्नग्रहण करते हैं।

यह 16वें तीर्थंकर शांतिनाथ, 17वें तीर्थंकर कुन्थुनाथ और 18वें तीर्थंकर अरनाथ भगवन्तों के च्यवन, जन्म, दीक्षा तथा केवलज्ञान (कुल 12 कल्याणकों) की पवित्र भूमि है। 19वें तीर्थंकर मल्लीनाथ के समोसरण की पुण्य भूमि भी यही है । 20वें तीर्थंकर सुव्रत स्वामी, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ तथा चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी द्वारा देशना की धर्मभूमि भी हस्तिनापुर ही है।

प्रस्तुति - ललित गर्ग

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Mahavir Nirvan Diwas 2025: महावीर निर्वाण दिवस क्यों मनाया जाता है? जानें जैन धर्म में दिवाली का महत्व

Diwali Muhurat 2025: चौघड़िया के अनुसार जानें स्थिर लग्न में दीपावली पूजन के सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त

Bhai dooj 2025: कब है भाई दूज? जानिए पूजा और तिलक का शुभ मुहूर्त

Govardhan Puja 2025: अन्नकूट और गोवर्धन पूजा कब है, जानिए पूजन के शुभ मुहूर्त

Diwali Vastu Tips: वास्तु शास्त्र के अनुसार दिवाली पर कौन सी चीजें घर से निकालें तुरंत?, जानें 6 टिप्स

सभी देखें

धर्म संसार

20 October Birthday: आपको 20 अक्टूबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 20 अक्टूबर, 2025: सोमवार का पंचांग और शुभ समय

Aaj Ka Rashifal: आज का दैनिक राशिफल: मेष से मीन तक 12 राशियों का राशिफल (19 अक्टूबर, 2025)

19 October Birthday: आपको 19 अक्टूबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 19 अक्टूबर, 2025: रविवार का पंचांग और शुभ समय