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राजगीर : जैन, बौद्ध धर्मावलंबियों का तीर्थ

- विनोद बंधु

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भगवान बुद्ध का भस्मावशेष आठ हिस्सों में बटा ँ था। लिच्छवी गणराज्य को मिला एक हिस्सा वैशाली में हुई खुदाई से प्राप्त हुआ जो आज पटना संग्रहालय में सुरक्षित है। मान्यता है कि एक हिस्सा अजातशत्रु को भी मिला था लेकिन वह कहाँ है, यह रहस्य प्रकृति के गर्भ में दफन है। बोधगया से राजगीर भगवान बुद्ध जिस मार्ग से आए थे उसमें भी अनेक स्थल हैं। नालंदा, पावापुरी, राजगीर और बोधगया एक कड़ी में हैं। इनके आसपास के पुरावशेषों, खंडहरों और पहाड़ों का अध्ययन आजतक उस स्तर पर नहीं हो सका, जिसकी आवश्यकता है।

पाँच पहाड़ियों से घिरा राजगीर आज उम्मीदों के नए पहाड़ पर खड़ा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी प्रवास यात्रा में राजगीर रहे। इस दौरान उन्होंने राजगीर और इसके आसपास के ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थल का जायजा लिया। इनमें सप्तपर्णि गुफा, सोन गुफा, मनियार मठ, जरासंध का अखाड़ा, तपोवन, जेठियन, वेनुवन, वेनुवन विहार, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय, सामस स्थित तालाब जहाँ भगवान की आदमकद प्रतिमा मिली थी और तेल्हार जहाँ किसी प्राचीन विश्वविद्यालय का भग्नावशेष होने की संभावना है, का उन्होंने निरीक्षण किया। तेल्हार में उस टीले के उत्खनन कार्य का शुभारंभ भी उन्होंने किया। इसके बाद वह वैशाली और बोधगया की प्रवास यात्रा करेंगे।

सत्ता संभालने के बाद राजगीर महोत्सव में नीतीश कुमार ने कहा था कि झारखंड विभाजन के बाद बिहार में भले ही खान-खदान नहीं बचा है लेकिन यहाँ नालंदा, राजगीर, पावापुरी, वैशाली और बोधगया तो है। इसका निहितार्थ यह था कि राज्य में पर्यटन उद्योग के विकास की अपार संभावन ाए ँ हैं। इसकी पहल उन्होंने नालंदा में अंतर्राष्ट्रीय शांति विश्वविद्यालय की स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाकर की। अब जबकि यह प्रयास कामयाब होने को है वह पर्यटन स्थलों के विकास की संभावनाएँ टटोल रहे हैं।

बिहार में प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर प्राचीन पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों की लंबी श्रृंखला है पर इनमें ज्यादातर उपेक्षित हैं। नीतीश कुमार प्रवास यात्रा में न केवल खुद जाकर इन स्थलों का जायजा ले रहे हैं बल्कि साथ आए विशेषज्ञों से जानकारी लेकर उनके विकास की संभावनाओं पर सलाह-मशविरा करने के बाद आम सभा में इनकी महत्ता लोगों को बताते हैं।

राजगीर जैन, बौद्ध और हिंदू धर्मावलंबियों का तीर्थ है। जैन धर्म में 11 गंधर्व हुए और उन सबों का निर्वाण राजगीर में हुआ। यहाँ की पा ँच पहाड़ियाँ मसलन विपुलगिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, सोनगिरि, वैभारगिरि। इन सब पहाड़ियों पर जैन धर्म के मंदिर हैं। भगवान बुद्ध रत्नागिरि पर्वत के ठीक बगल में स्थित गृद्धकूट पहाड़ी पर उपदेश देते थे। इस पहाड़ी पर उस स्थल के अवशेष मौजूद हैं।

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बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्मावलंबियों का पहला सम्मेलन वैभारगिरि पहाड़ी की गुफा में हुआ था। इसी सम्मेलन में पालि साहित्य का उम्दा ग्रंथ 'त्रिपिटक' तैयार हुआ था। भगवान महावीर ने ज्ञान प्राप्ति के बाद पहला उपदेश विपुलगिरि पर्वत पर दिया था। यहाँ जरासंध की राजधानी थी। भीम और जरासंध के बीच 18 दिनों का मल्लयुद्ध यहीं हुआ था। जरासंध इसमें भगवान श्रीकृष्ण की कूटनीति से मारा गया था। राजगीर में हर तीन साल के बाद मलमास मेला लगता है। देश-दुनिया के श्रद्धालु यहाँ प्रवास करते हैं और गर्म कुंडों में स्नान कर पाप से मुक्ति की कामना करते हैं। पहले यहाँ सरस्वती नदी भी बहती थी।

प्राचीन धरोहरों की राजधानी राजगीर की आजाद हिंदुस्तान में उपेक्षा की त्रासद कथा भी कम लंबी नहीं है। माहौल में खौफ का ऐसा जहर घुला था कि बाहर से आकर यहाँ रहने का जोखिम कोई लेना नहीं चाहता था। वर्ष 1975 में यहाँ की सीवरेज और ड्रेनेज व्यवस्था ध्वस्त हो गई। सरकार ने इसे मृत घोषित कर दिया। उस समय से इसके पुनर्निर्माण की तरफ किसी ने मुड़कर देखा तक नहीं। नीतीश कुमार ने 29 दिसंबर को राजगीर की रत्नागिरि पहाड़ी पर कैबिनेट की बैठक बुलाई। इस ऐतिहासिक बैठक में सीवरेज और ड्रेनेज के निर्माण के लिए 77 करोड़ की परियोजना को मंजूरी दी गई। यहाँ की सड़कें चार वर्षों में चकाचक हो गई हैं। दूसरे शहरों से जोड़ने के लिए स्टेट हाईवे का निर्माण हो रहा है।

राजगीर होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष रामकृष्ण प्रसाद सिंह ने बताया कि 1990 के बाद राजगीर पर काले बादल मंडराने लगे। असुरक्षा और राज्य के अन्य हिस्सों में आपराधिक वारदातों के कारण पर्यटकों ने यहाँ आना बंद कर दिया। स्थिति यह थी कि होटलों में किसी-किसी दिन एक भी ग्राहक नहीं आता था। खर्च चलाना मुश्किल हो जाता था। 2007 के बाद से स्थिति उत्तरोत्तर बदली है। अब स्थिति यह है कि होटलों में जगह खाली नहीं होती। यहाँ तीस होटल, तीस से अधिक धर्मशाला और दस लॉज हैं।

1990 के बाद पुरी का रुख करने वाले पश्चिम बंगाल के पर्यटक अब फिर से राजगीर आने लगे हैं। यहीं के रामेश्वर यादव ने बताया कि राजस्थान, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक के अलावा श्रीलंका, थाईलैंड, कोरिया, जापान, चीन, बर्मा, नेपाल, भूटान के पर्यटक बड़ी संख्या में आ रहे हैं। अमेरिका और इंग्लैंड से भी पर्यटकों का आना होता है।

बहरहाल, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह यहाँ की घाटी, पहाड़ियों और सड़कों किनारे पेड़-पौधे लगाने, प्राकृतिक सौंदर्य में निखार लाने के निर्देश वन विभाग को दिए हैं उससे आने वाले दिनों में यहाँ की सुंदरता देखते बनेगी। उन्होंने रत्नागिरि पहाड़ी स्थित विश्व शांति स्तूप तक जाने के लिए आधुनिक बॉक्सनुमा रोप वे बनाने की घोषणा भी की है। यहाँ जापान के सहयोग से 11 सौ फुट रोप वे का निर्माण हुआ था। राजगीर में 33 करोड़ रुपए से अधिक की लागत से कान्वेंशन हाल का निर्माण मुख्यमंत्री ने प्रारंभ करा दिया है।

उन्होंने बताया कि नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के लिए 13 देशों से समझौता हो गया। अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की अध्यक्षता में गठित मेंटर ग्रु प ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। केंद्र सरकार अब संसद में विधेयक लाएगी और उसके पारित होते ही निर्माण कार्य प्रारंभ हो जाएगा। राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण का कार्य पूरा कर लिया है। लगता है कि राजगीर और नालंदा जल्दी ही अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर अपनी खास जगह बना लेंगे।

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