अग्नि दौड़कर यक्ष के सामने पहुंचा। यक्ष के पूछने पर उसने अपना परिचय दिया कि मैं अग्नि हूं।
तेरी क्या शक्ति है? तू क्या कर सकता है? यक्ष ने पूछा।
पृथ्वी पर जो कुछ भी है उसे जलाकर मैं भस्म कर सकता हूं।
अग्नि के सामने यक्ष ने एक तिनका रख दिया और कहा- अच्छा तो इसे जला।
अग्नि ने अपनी सारी शक्ति लगा दी उसे जलाने में, पर उसे वह जला नहीं सका और वह अपना-सा मुंह लिए लौट आया। यक्ष का पता लगाना उसके लिए संभव न हुआ।
अब इंद्र की बारी थी। देवताओं ने उसे भेजा इस विश्वास से कि इंद्रदेव अवश्य ही यक्ष का पता लगा लेंगे। इंद्र वहां पहुंचा तो यक्ष अंतर्ध्यान हो गया।
इंद्र अंतरिक्ष में यक्ष को खोजने लगा, पर वह कहीं नहीं मिला। खोज में उसे एक परम सुंदरी स्त्री दिखाई दी। ऐसी शुभ्र जैसे हिमलता हो। उसने नाम बतलाया 'उमा'। उमा अर्थात बुद्धि।
इंद्र ने उससे पूछा- कौन था यह यक्ष?
यह यक्ष ब्रह्म था। तुम देवतागणों की शक्ति वास्तव में ब्रह्म की ही शक्ति है, तुम्हारी अपनी नहीं।
देवताओं की आंखें खुल गईं। उनका गर्व चूर-चूर हो गया। बुद्धि ने उनको बताया कि सारा बल और सामर्थ्य तो वास्तव में ब्रह्म का ही है।
अग्नि, वायु और इंद्र नि:संदेह यह तीनों देव-शक्तियां हैं, पर इनको भी शक्ति प्रदान करने वाला तो ब्रह्म ही है। यह इस कथा का निष्कर्ष है।
- वियोगी हर ि