जानकी जयंती : आज है माता सीता का जन्मोत्सव, पढ़ें पौराणिक कथा

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आज जानकी जयंती है यानी माता सीता का जन्मोत्सव पर्व। यहां पढ़ें माता सीता की पौराणिक कथा- 
 
हम सभी ने बचपन से चंद्रमा (Chandrama) को मामा कह कर पुकारा है। वास्तव में श्री लक्ष्मी जी और चंद्रमा दोनों की उत्पत्ति समुद्र से हुई है। हम लक्ष्मी जी को मां कहते हैं इसीलिए उनके भाई चंद्रमा हमारे मामा हुए। इसी तरह हम अगर सीता को माता कहते हैं तो मंगल (Mangal) हमारे मामा हुए। क्योंकि मंगल ग्रह पृथ्वी पुत्र माने गए हैं और पृथ्वी की पुत्री सीता जी हैं इस तरह दोनों परस्पर भाई-बहन हुए।

 
भगवान् श्रीराम की अर्धांगिनी श्री सीता जी (Sita Janaki Jyanati) संपूर्ण जगत् की जननी हैं, किंतु कुछ ऐसे भी सौभाग्यशाली प्राणी हैं, जिन्हें अखिल ब्रह्मांड का सृजन, पालन और संहार करने वाली श्री सीता जी के भाई होने का, उन्हें बहन कहकर पुकारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
 
यद्यपि वाल्मीकी रामायण, श्रीरामचरितमानस आदि प्रसिद्ध ग्रंथों में सीता जी के किसी भी भाई का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता, किंतु कई ग्रंथों में सीता जी के भाई का परिचय प्राप्त होता है।
 
- भगवान श्रीराम (Lord Ram) की प्राणवल्लभा सीता जी के यह भाई हैं-
* मंगल ग्रह
* राजा जनक के पुत्र लक्ष्मीनिधि
 
- वैदिक भारत के राष्ट्रगान के रूप में प्रसिद्ध अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त (12/1/12) में ऋषि पृथ्वी की वंदना करते हुए कहते हैं:-
 
माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्याः अर्थात- हे पृथ्वी, आप मेरी मां हैं और मैं आपका पुत्र हूं।
हम सब ऋषि-मुनियों के वंशज स्वयं को पृथ्वी मां का पुत्र मानते हैं।
 
सीता जी भी पृथ्वी की पुत्री हैं और इस संबंध से पृथ्वी मां के पुत्र उनके भाई लगते हैं।
 
सीता जी और मंगल के बीच बहन-भाई के स्नेह के एक दुर्लभ दृश्य का संकेत गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथ जानकी मंगल में किया है...
 
जनकपुर के विवाह मंडप में दूल्हे सरकार श्री राघवेंद्र और दुल्हन सिया बैठे हुए हैं। स्त्रियां श्री सीताराम जी से गणेश जी और गौरी जी का पूजन करा रहे हैं। राजा जनक जी ने अग्नि स्थापन करके हाथ में कुश और जल लेकर कन्या दान का संकल्प कर श्रीराम जी को अपनी सुकुमारी सिया समर्पित कर दी है।

 
अब श्रीराम सीता जी की मांग में सिंदूर भर रहे हैं और अब आ पहुंचा है क्षण लाजा होम विधि का, जब दुल्हन का भाई खड़ा होकर अपनी बहन की अंजलि में लाजा (भुना हुआ धान, जिसे लावा या खील भी कहते हैं) भरता है, दुल्हन के दोनों हाथों से दूल्हा भी अपने हाथ लगाता है और दुल्हन उस लाजा से अग्नि में होम करती है। जब पृथ्वी मां को अपनी बिटिया सीता के विवाह का समाचार ज्ञात हुआ था, उसी समय वह अपने पुत्र मंगल के पास दौड़ी गई थी।

 
अपनी बहन सीता जी के विवाह का समाचार सुनकर मंगल भी फूला नहीं समाया था, वह भी अपनी बहन के विवाह में छिपकर वेष बदलकर आया था। जैसे ही लाजा होम विधि का सुंदर क्षण उपस्थित हुआ और पौरोहित्य कर्म संपन्न कर रहे ऋषिवर ने आवाज लगाई:- दुल्हन के भाई उपस्थित हों! मंगल तुरंत उठकर खड़े हो गए, श्याम वर्ण श्रीराम, मध्य में गौरवर्ण सिया और उनके पास रक्तवर्ण मंगल- तीनों अग्निकुंड के समीप खड़े हैं। मंगल अपनी बहन सिया के हाथों में लाजा भर रहे हैं, सीता जी के करकमलों से ही श्रीराम के भी कर कमल लगे हैं।

 
ऋषिवर के मुख से उच्चारित:-
 
*ॐ अर्यमणं देवं, ॐ इयं नायुर्पब्रूते लाजा, ॐ इमांल्लाजानावपाम्यग्न!
इन तीन मंत्रों (पार०गृ०सू० 1 /6 /2) के उद्घोष के मध्य सीता जी अपने भाई मंगल द्वारा तीन बार प्रदत्त लाजा का पति श्रीराम संग अग्नि में होम कर रही हैं:-
 
सिय भ्राता के समय भोम तहं आयउ।
दुरीदुरा करि नेगु सुनात जनायउ॥
(जानकी मंगल 148)

 
जिस समय जानकी जी के भाई की आवश्यकता हुई, उस समय वहां पृथ्वी का पुत्र मंगल ग्रह स्वयं आया और अपने को छिपाकर सब रीति-रस्म करके अपना सुंदर संबंध निभाया।

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