Origin of Kalika: मां महाकाली की उत्पत्ति कथा जानकर चौंक जाएंगे

WD Feature Desk
शनिवार, 11 मई 2024 (14:16 IST)
Origin story of Mother Mahakali: श्रीमार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी। कथा के अनुसार शुम्भ-निशुम्भ दैत्यों के आतंक का प्रकोप इस कदर बढ़ चुका था कि उन्होंने अपने बल, छल एवं महाबली असुरों द्वारा देवराज इन्द्र सहित अन्य समस्त देवतागणों को निष्कासित कर स्वयं उनके स्थान पर आकर उन्हें प्राणरक्षा हेतु भटकने के लिए छोड़ दिया। दैत्यों द्वारा आतंकित देवों को ध्यान आया कि महिषासुर के इन्द्रपुरी पर अधिकार कर लिया है, तब दुर्गा ने ही उनकी मदद की थी। तब वे सभी दुर्गा का आह्वान करने लगे।
ALSO READ: kalika mata: कालिका माता के 7 ऐसे रहस्य जो आप शायद ही जानते होंगे
उनके इस प्रकार आह्वान से देवी प्रकट हुईं एवं शुम्भ-निशुम्भ के अति शक्तिशाली असुर चंड तथा मुंड दोनों का एक घमासान युद्ध में नाश कर दिया। चंड-मुंड के इस प्रकार मारे जाने एवं अपनी बहुत सारी सेना का संहार हो जाने पर दैत्यराज शुम्भ ने अत्यधिक क्रोधित होकर अपनी संपूर्ण सेना को युद्ध में जाने की आज्ञा दी तथा कहा कि आज छियासी उदायुद्ध नामक दैत्य सेनापति एवं कम्बु दैत्य के चौरासी सेनानायक अपनी वाहिनी से घिरे युद्ध के लिए प्रस्थान करें। कोटिवीर्य कुल के पचास, धौम्र कुल के सौ असुर सेनापति मेरे आदेश पर सेना एवं कालक, दौर्हृद, मौर्य व कालकेय असुरों सहित युद्ध के लिए कूच करें। अत्यंत क्रूर दुष्टाचारी असुर राज शुंभ अपने साथ सहस्र असुरों वाली महासेना लेकर चल पड़ा।
 
उसकी भयानक दैत्यसेना को युद्धस्थल में आता देखकर देवी ने अपने धनुष से ऐसी टंकार दी कि उसकी आवाज से आकाश व समस्त पृथ्वी गूंज उठी। पहाड़ों में दरारें पड़ गईं। देवी के सिंह ने भी दहाड़ना प्रारंभ किया, फिर जगदम्बिका ने घंटे के स्वर से उस आवाज को दुगना बढ़ा दिया। धनुष, सिंह एवं घंटे की ध्वनि से समस्त दिशाएं गूंज उठीं। भयंकर नाद को सुनकर असुर सेना ने देवी के सिंह को और मां काली को चारों ओर से घेर लिया। तदनंतर असुरों के संहार एवं देवगणों के कष्ट निवारण हेतु परमपिता ब्रह्माजी, विष्णु, महेश, कार्तिकेय, इन्द्रादि देवों की शक्तियों ने रूप धारण कर लिए एवं समस्त देवों के शरीर से अनंत शक्तियां निकलकर अपने पराक्रम एवं बल के साथ मां दुर्गा के पास पहुंचीं।
तत्पश्चात समस्त शक्तियों से घिरे शिवजी ने देवी जगदम्बा से कहा- ‘मेरी प्रसन्नता हेतु तुम इस समस्त दानव दलों का सर्वनाश करो।’ तब देवी जगदम्बा के शरीर से भयानक उग्र रूप धारण किए चंडिका देवी शक्ति रूप में प्रकट हुईं। उनके स्वर में सैकड़ों गीदड़ों की भांति आवाज आती थी।
 
असुरराज शुम्भ-निशुम्भ क्रोध से भर उठे। वे देवी कात्यायनी की ओर युद्ध हेतु बढ़े। अत्यंत क्रोध में चूर उन्होंने देवी पर बाण, शक्ति, शूल, फरसा, ऋषि आदि अस्त्रों-शस्त्रों द्वारा प्रहार प्रारंभ किया। देवी ने अपने धनुष से टंकार की एवं अपने बाणों द्वारा उनके समस्त अस्त्रों-शस्त्रों को काट डाला, जो उनकी ओर बढ़ रहे थे। मां काली फिर उनके आगे-आगे शत्रुओं को अपने शूलादि के प्रहार द्वारा विदीर्ण करती हुई व खट्वांग से कुचलती हुईं समस्त युद्धभूमि में विचरने लगीं। सभी राक्षसों चंड मुंडादि को मारने के बाद उसने रक्तबीज को भी मार दिया।
 
शक्ति का यह अवतार एक रक्तबीज नामक राक्षस को मारने के लिए हुआ था। फिर शुम्भ-निशुंभ का वध करने के बाद बाद भी जब काली मां का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तब उनके गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए और काली मां का पैर उनके सीने पर पड़ गया। शिव पर पैर रखते ही माता का क्रोध शांत होने लगा।
 
रक्तबीज का वध : ब्रह्माजी के शरीर से ब्राह्मी, विष्णु से वैष्णवी, महेश से महेश्वरी और अम्बिका से चंडिका प्रकट हुईं। पलभर में सारा आकाश असंख्य देवियों से आच्छादित हो उठा। ब्राह्मणी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे राक्षस तेजहीन होने लगे, वैष्णवी अपने चक्र, महेश्वरी अपने त्रिशूल से, इन्द्राणी वज्र से और सभी देवियां अपने अपने आयुधों से आक्रमण कर रही थीं। राक्षस सेना भागने लगीं।
 
तब रक्तबीज ने राक्षसों को धिक्कारा कि वे स्त्रियों से डरकर भाग रहे हैं? रक्तबीज हमला करने आया, तो इन्द्राणी ने उस पर शक्ति चलाई जिससे उसका सर कट गया और रक्त भूमि पर गिरा। किंतु पूर्व वरदान के प्रभाव से उस रक्त से फिर एक रक्तबीज उठ खड़ा हुआ और अट्टहास करने लगा। जैसे ही शक्तियां उसे मारतीं, उसके रक्त से और असुर उठ खड़े होते। जल्द ही असंख्य रक्तबीज सब और दिखने लगे।
 
मां चंडिका ने श्रीकाली से कहा कि इसका रक्त भूमि पर गिरने से रोकना होगा जिससे और रक्तबीज न जन्में। देवी काली ने कहा कि आप सब इन्हें मारें, मैं एक बूंद रक्त भी भूमि पर न पड़ने दूंगी। और ऐसा ही हुआ भी, जल्द ही सारे नए रक्तबीज युद्ध में मारे गए। तब रक्तबीज समझ गया कि काली उसे पुनर्जीवित नहीं होने दे रही हैं, तो वह चंडिका को मारने दौड़ा। तब चंडिका ने उसे मार दिया और काली ने रक्त को भूमि पर न गिरने दिया। देवता चंडिका की जय-जयकार करने लगे।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

कन्नड़ के अनुसार हनुमान जयंती कब है?

वर्ष 2025 में कर्क राशि पर से शनि की ढैय्या होने वाली है समाप्त, जानिए अब क्या करना होगा?

महाकुंभ मेला 2025: क्यों 12 साल बाद लगता है महाकुंभ, कैसे तय होती है कुंभ की तिथि?

गीता जयंती पर क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त?

वर्ष 2025 में बृहस्पति का मिथुन राशि में होगा गोचर, जानिए 12 राशियों का राशिफल

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: क्या लाया है 04 दिसंबर का दिन आपके लिए, पढ़ें 12 राशियों का दैनिक राशिफल

Hindu Nav Varsh 2025: हिंदू नववर्ष 2025 में कौनसा ग्रह होगा राजा और कौनसा मंत्री?

04 दिसंबर 2024 : आपका जन्मदिन

04 दिसंबर 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

गीता जयंती 2024: गीता के प्रति क्यों अब विदेशी भी होने लगे हैं आकर्षित?

अगला लेख