लोरिकायन या लोरिक की कथा भोजपुरी भाषा की एक नीति कथा है। लोरिकायन को भोजपुरी भाषा की रामायण का दर्जा प्राप्त है। यह भारत के अहीर कृषक वर्ग का राष्ट्रीय महाकाव्य कहा है।
अभीरों के कुल की उपशाखा मनियार के कुल में कुम्बे मनियार (कुआ गुआर) का जन्म हुआ। उनका मूल स्थान कन्नौज का गोरा गांव और लखनऊ के निकट माना जाता है। इसी मनियार कुल में वीर लोरिक का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम कुआ और माता का नाम खुल्हनी या प्रगल्भा था। कुआ अपनी बिरादरी में पहलवान और वरिष्ठ व्यक्ति थे। उनकी पत्नी चतुर और धर्मपरायण थी।
लोरिक का कर्म क्षेत्र पंजाब से लेकर बंगाल तक फैला था। लोरिकायन में वीर लोरिक देव के कई विवाहों की चर्चा है। पहला विवाह अगोरी गांव की मंजरी से हुआ, जिससे मोरिक नामक पुत्र हुआ। दूसरा विवाह चनमा (चंदा) से हुआ जिससे चनरेता नामक पुत्र हुआ। तीसरा विवाह हरदीगढ़ की जादूगरनी जमुनी बनियाइन से हुआ जिससे बोसारखा नामक पुत्र हुआ।
लोरिक का बड़ा भाई समरू भी एक विख्यात वीर था। वह कोल राजा देवसिया के हाथों मारा गया था। बाद में लोरिक भी युद्ध करते हुए घायल हो जाता है। बोहा बथान पर उसका बेटा मोरिक देवरिया को परास्त करता है। कहते हैं कि लोरिक वृद्धावस्था में अग्निसमाधि ले लेता है।
डॉक्टर लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव ने अपने शोध ग्रंथ 'यदुवंशी लोकदेव लोरिक' में यह प्रमाणित किया है कि लोरिक का असली हरदीगढ़ और प्रसिद्ध कर्मक्षेत्र बिहार के सहरसा जिला का हरदी स्थान ही है। यह सहरसा जिला और अंग महाजन पद का हिस्सा रहा है। वैसे पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ से लेकर बिहार तक के लोक गायक अपने अपने क्षेत्र के हरदीस्थान को लोरिकायन वाला हरदीगढ़ मान लेते हैं। कुछ गायकों के अनुसार मिर्जापुर का हरई हरदी स्थान है तो कुछ भोरपुरी लोक गायकों के अनुसार छपरा का हरदी है।
लोरिक और मंजरी की प्रेम कथा : लोरिकायन नामक ग्रंथ में लोरिक के संबंध में कई गाथाएं मिलती हैं जिसमें से एक कथा उसके और मंजरी के बीच के प्रेम संबंध की है। लोरिक को सोनभद्र के अगोरी राज्य के मेहर की बेटी मंजरी से प्रेम हो गया था। उसने मंजरी के पास अपना प्रेम प्रस्ताव भेजा तो मंजरी की रातों की नींद उड़ गई और वह भी लोरिक के सपने देखने लगी। परंतु मंजरी पर अगोरी राज्य के राजा मोलागत की नजर थी क्योंकि वह भी मंजरी को हासिल करना चाहता था।
जब मेहर को लोरिक और मंजरी के प्रेम का पता चला तो वह भयभीत हो गया, क्योंकि उसे मोलागत के मंसूबों का पता था। अगोरी का राजा मोलागत बहुत अत्याचारी था। राजा को भी इस बात का पता चल गया कि लोरिक क्या चाहता है।
लोरिक एक महान योद्धा था और वह मां काली का भक्त था। कहते हैं कि उसकी तलवार 85 मन की थी। युद्ध में लोरिक अकेला ही हजारों के बराबर था। लोरिक को पता था कि बिना युद्ध के मंजरी को हासिल नहीं किया जा सकता था। तब उसकी सेना सोन नदी के तट पर पहुंच गई। राजा मोलागत ने तमाम उपाय किए कि बारात और सेना सोन नदी को पार ना कर सके, परंतु बारात नदी पार कर अगोरी किले तक जा पहुंची और फिर हुआ भीषण युद्ध।
कहते हैं कि इतना खून बहा कि अगोरी से निलकने वाले नाले का नाम ही रुधिरा नाला पड़ गया और आज भी इसी नाम से जाना जाता है। उसकी अधिकतर सेना और उसका अपार बलशाली इंद्रावत नामक हाथी भी इस युद्ध में मारा गया था। आज भी हाथी का एक प्रतीक प्रस्तर किले के सामने सोन नदी में स्थित है। अंतत: लोरिक की जीत हुई और मंजरी की डोली विदा हुई।
विदा के समय लोरिक ने मंजरी से पूछा, कहो मंजरी तुम्हारे लिए क्या करूं? तब मंजरी ने एक बड़ीसी चट्टान की ओर इशारा करके कहा कि इसके दो टूकड़े कर दो, ताकि यह हमारे प्रेम की निशानी सभी याद रखें। लोरिक ने अपनी तलवार से उस चट्टान को काट डाला था जो आज भी वहां पर है।