विक्रमादित्य : जिनका संवत् आज भी प्रचलित है

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महाराज विक्रमादित्य बड़े पराक्रमी, यशस्वी, विद्वान, वीर एवं प्रजावत्सल शासक थे। इन्होंने विक्रम संवत् को शास्त्रीय विधि से प्रचलित किया। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी संपूर्ण प्रजा के संपूर्ण ऋण को अपने राजकोष से चुकाकर प्रजा को ऋणमुक्त किया था।
 
संयमी राजा विक्रमादित्य अपने पीने के लिए जल भी स्वयं शिप्रा नदी में स्नान करके लाया करते थे। वे सदा धरती पर सोते थे। उनका सारा जीवन प्रजा की रक्षा और उसके हित में बीता। उनकी कीर्तिपताका आज भी विक्रम संवत् के रूप में भारतवर्ष में प्रचलित है। वे सदा प्रजा के सेवक बनकर न्याय, नीति और धर्म के आधार पर शासन करते थे। विक्रम संवत् भी उनके नाम से न होकर देश के नाम से अर्थात मालव संवत् के नाम से प्रचलित हुआ था, जो शताब्दियों बाद प्रजा द्वारा विक्रम संवत् के नाम से प्रसिद्ध किया गया।
 
उनका न्याय जगद्विख्यात था जिसकी कई कथाएं आज तक लोक में प्रसिद्ध हैं। धन्वंतरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, बेताल भट्ट, खटखर्पर, कालिदास, वररुचि और वराह मिहिर जैसे अनेक विद्वानों की उनकी सभा में उपस्थिति उनके विद्या प्रेमी होने का प्रमाण है और शकों पर विजय उनकी वीरता का। 

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साभार : देवपुत्र
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