भक्तभयहारी भगवान उसी क्षण द्रोपदी के समक्ष प्रकट हो गए और उन्होंने बटलोई में लगा हुआ शाक का एक पत्ता खाकर विश्व को तृप्त कर दिया। दुर्वासा को अपनी शिष्य मंडली के साथ बिना बताए पलायन करना पड़ा और पांडवों की रक्षा हुई।
महारानी द्रोपदी वनवास और राज्यकाल दोनों समय अपने पतियों की छाया बनकर उनके दुख-सुख की संगिनी रहीं। किसी को कभी भी शिकायत का अवसर नहीं मिला। उन्होंने अपने पुत्रघाती गुरुपुत्र अश्वत्थामा को क्षमा दान देकर दया और उदारता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
इस प्रकार महारानी द्रोपदी का चरित्र पातिव्रत्य, दया और भगवद्भक्ति का अनुपम उदाहरण है।
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