संत कंवर राम की प्रभु भक्ति

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सिंध में कंवर राम नामक एक प्रसिद्ध संत हो गए हैं। वे गांव-गांव जाकर भगवद्भजन के माध्यम से भक्ति का प्रचार करते और लोगों को अध्यात्म, नैतिक गुणों तथा सांप्रदायिक सद्भाव की सीख देते।

एक बार उनका मुकाम डहरकी नामक एक गांव में था। एक दिन एक गरीब विधवा का एकमात्र शिशु ईश्वर को प्यारा हो गया और वह उसके वियोग में जोर-जोर से विलाप करने लगी। उसका शोक एक वृद्ध पुरुष से देखा न गया।


उसने महिला से कहा, 'बेटी, वृथा शोक न कर। यहां संत कंवर राम नामक एक महात्मा पधारे हैं। उनका आज रात्रि में मंदिर में भजन-कीर्तन है। तू संत से उसके चिरायु होने का आशीर्वाद मांगना। उनकी कृपा से तुम्हारा शिशु जीवित हो सकता है। मगर इसके मृतक होने की बात उनसे छिपाए रखना।'

महिला ने सुना, तो उसके मन में आशा जागी और अपने मृत बालक को चादर में लपेटकर वह रात्रि को मंदिर पहुंच गई और शिशु को कंवर राम जी के चरणों पर रखकर कहा, 'भगत साहिब, मैं अपने इस नन्हे शिशु के चिरजीवन की कामना लिए आपके पास आई हूं। कृपया इसे भागवत्राम का मंत्र देकर मुझ अबला को कृतार्थ करें।'


महिला की बातों पर विश्वास करके संत जी ने शिशु को भागवत्राम का श्रवण कराया। मंत्र के समाप्त होने की देर थी कि बेजान शिशु के शरीर में जान आ गई और वह हाथ-पैर हिलाने लगा।

यह चमत्कार देखते ही महिला संत जी के चरणों पर गिर पड़ी। उसने सारी बात बताकर असत्य बोलने के लिए क्षमा मांगी। किंतु कंवर रामजी को बड़ा दुख हुआ।

उन्होंने महिला से कहा, 'आपको ऐसा नहीं करना था। हमें प्रभु की करनी को' होनी मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए। इसी में हमारी भलाई है। यह तो अच्छा ही हुआ कि प्रभु ने मेरी लाज रख ली और मुझे दुविधा से बचा लिया।'


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